Sardi Shayari
दिसम्बर की सर्दी है उसके ही जैसी
ज़रा सा जो छू ले बदन काँपता है
अमित शर्मा मीत
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थी बहुत तेज़ जो सर्दी की हवा,
ये भी मुश्किल है कि ठहरा होगा
अरग़वान रब्बही
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मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर
बड़ी तेज़ हवा है सर्दी आज ग़ज़ब की है
शहरयार
अब उदास फिरते हो सर्दियों की शामों में
इस तरह तो होता है इस तरह के कामों में
शोएब बिन अज़ीज़
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राजेन्द्र मनचंदा बानी के बेहतरीन शेर…
सर्दी में दिन सर्द मिला
हर मौसम बेदर्द मिला
मुहम्मद अल्वी
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वो गले से लिपट के सोते हैं
आज-कल गर्मियाँ हैं जाड़ों में
मुज़्तर ख़ैराबादी
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कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
परवीन शाकिर
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ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ
हम अपने शहर में होते तो घर गए होते
उम्मीद फ़ाज़ली
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यूनिवर्सिटी छात्रों को पसंद आने वाली शायरी
इक बर्फ़ सी जमी रहे दीवार-ओ-बाम पर
इक आग मेरे कमरे के अंदर लगी रहे
सालिम सलीम
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जब चली ठंडी हवा बच्चा ठिठुर कर रह गया
माँ ने अपने ला’ल की तख़्ती जला दी रात को
सिब्त अली सबा
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तुम तो सर्दी की हसीं धूप का चेहरा हो जिसे
देखते रहते हैं दीवार से जाते हुए हम
नोमान शौक़
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सूरज लिहाफ़ ओढ़ के सोया तमाम रात
सर्दी से इक परिंदा दरीचे में मर गया
अतहर नासिक
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कतराते हैं बल खाते हैं घबराते हैं क्यूँ लोग
सर्दी है तो पानी में उतर क्यूँ नहीं जाते
महबूब ख़िज़ां
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रात की ओस में जमी है क्या,
इक हवा सर्द शबनमी है क्या
अरग़वान रब्बही
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‘अल्वी’ ये मो’जिज़ा है दिसम्बर की धूप का
सारे मकान शहर के धोए हुए से हैं
मुहम्मद अल्वी
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सर्द झोंकों से भड़कते हैं बदन में शो’ले
जान ले लेगी ये बरसात क़रीब आ जाओ
साहिर लुधियानवी
Sardi Shayari