Manchanda Bani Best Sher
ख़त कोई प्यार भरा लिख देना
मशवरा लिखना दुआ लिख देना
कोई दीवार-ए-शिकस्ता ही सही
उस पे तुम नाम मिरा लिख देना
कितना सादा था वो इम्काँ का नशा
एक झोंके को हवा लिख देना
कुछ तो आकाश में तस्वीर सा है
मुस्कुरा दे तो ख़ुदा लिख देना
बर्ग-ए-आख़िर ने कहा लहरा के
मुझे मौसम की अना लिख देना
हाथ लहराना हवा में उस का
और पैग़ाम-ए-हिना लिख देना
सब्ज़ को सब्ज़ न लिखना ‘बानी’
फ़स्ल लिख देना फ़ज़ा लिख देना
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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जाने वो कौन था और किसको सदा देता था
उससे बिछड़ा है कोई इतना पता देता था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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मुझे पता था कि ये हादसा भी होना था
मैं उससे मिल के न था ख़ुश जुदा भी होना था
अजब सफ़र था कि हम रास्तों से कटते गए
फिर इस के बा’द हमें लापता भी होना था
मैं तेरे पास चला आया ले के शिकवे-गिले
कहाँ ख़बर थी कोई फ़ैसला भी होना था
ग़ुबार बन के उड़े तेज़-रौ कि उन के लिए
तो क्या ज़रूर कोई रास्ता भी होना था
सराए पर था धुआँ जम’ सारी बस्ती का
कुछ इस तरह कि कोई सानिहा भी होना था
मुझे ज़रा सा गुमाँ भी न था अकेला हूँ
कि दुश्मनों का कहीं सामना भी होना था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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मिर्ज़ा जाफ़र अली ‘हसरत’ की शायरी
बगूले उसके सर पर चीख़ते थे
मगर वो आदमी चुप ज़ात का था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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आज इक लहर भी पानी में न थी
कोई तस्वीर रवानी में न थी
कोई आहंग न अल्फ़ाज़ में था
कैफ़ियत कोई मआनी में न थी
ख़ूँ का नम सादा-नवाई में न था
ख़ूँ की बू शोख़-बयानी में न थी
कोई मफ़्हूम तसव्वुर में न था
कोई भी बात कहानी में न थी
रंग अब कोई ख़लाओं में न था
कोई पहचान निशानी में न थी
ख़ुश-यक़ीनी में न था अब कोई नूर
ज़ौ कोई ख़ंदा-गुमानी में न थी
जी सुलगने का धुआँ ख़त में न था
रौशनी हर्फ़-ए-ज़बानी में न थी
रंज भूले हुए वादे का न था
लज़्ज़त अब याद-दहानी में न थी
लो कि जामिद सी ग़ज़ल भी लिख दी
आज कुछ ज़िंदगी ‘बानी’ में न थी
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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ऐ दोस्त मैं ख़ामोश किसी डर से नहीं था
क़ाइल ही तिरी बात का अंदर से नहीं था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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कोई भी घर में समझता न था मिरे दुख सुख
एक अजनबी की तरह मैं ख़ुद अपने घर में था
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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उस्तादों के उस्ताद शायरों के 400 शेर…
अजीब तजरिबा था भीड़ से गुज़रने का
उसे बहाना मिला मुझसे बात करने का
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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ओस से प्यास कहाँ बुझती है
मूसला-धार बरस मेरी जान
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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वो टूटते हुए रिश्तों का हुस्न-ए-आख़िर था
कि चुप सी लग गई दोनों को बात करते हुए
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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‘बानी’ ज़रा सँभल के मुहब्बत का मोड़ काट
इक हादसा भी ताक में होगा यहीं कहीं
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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ज़रा छुआ था कि बस पेड़ आ गिरा मुझ पर
कहाँ ख़बर थी कि अंदर से खोखला है बहुत
राजेन्द्र मनचंदा बानी
आज फिर गर्दिश-ए-तक़दीर पे रोना आया – शकील बदायूँनी
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आज क्या लौटते लम्हात मयस्सर आए
याद तुम अपनी इनायात से बढ़ कर आए
राजेन्द्र मनचंदा बानी
साहिर लुधियानवी: संगीतकार से भी ज़्यादा शोहरत कमाने वाला गीतकार
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ढलेगी शाम जहाँ कुछ नज़र न आएगा
फिर इस के ब’अद बहुत याद घर की आएगी
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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उदास शाम की यादों भरी सुलगती हवा
हमें फिर आज पुराने दयार ले आई
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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Manchanda Bani Best Sher
अपनी शायरी में इन शब्दों का बार-बार इस्तेमाल करते हैं तहज़ीब हाफ़ी…
मन में गहरे पैठती हैं, ममता सिंह के कहानी संग्रह ‘किरकिरी’ की हर कहानी
दकनी शायर: बीजापुर और गोलकुंडा के दरबार की शायरी
मुहम्मद रफ़ी साहब द्वारा गायी गई ग़ज़लें…
यूनिवर्सिटी छात्रों को पसंद आने वाली शायरी