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Shayari Kya Hai? Qafiya शृ और श्री में अंतरsahityaduniya.com

Urdu Ke Behtreen Sher ~ यूँ तो उर्दू शाइरी के विकास में बहुत से शाइरों का नाम लिया जा सकता है. हालाँकि उर्दू शाइरी में स्तम्भ का दर्जा सिर्फ़ चार शायरों को दिया जा सकता है. इन चार शायरों में मीर (1723- 1810), ग़ालिब (1797-1869), इक़बाल(1877-1938) और फ़ैज़ (1911-1984) शामिल हैं. इन चारों को ही उर्दू शायरी के उस्ताद स्तम्भ क्यूँ मानते हैं ये एक बड़ी चर्चा है जो हम जल्द ही आपसे करेंगे लेकिन फ़िलहाल हम आपको इन चारों उस्तादों के उस्ताद शाइरों के 100-100 शेर पेश कर रहे हैं.

Urdu Ke Behtreen Sher
मीर तक़ी मीर के सौ शेर..

1.
फ़क़ीराना आए सदा कर चले,
मियाँ ख़ुश रहो हम दुआ कर चले

2.
जो तुझ बिन न जीने को कहते थे हम
सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले

3.
वो क्या चीज़ है आह जिसके लिए
हर इक चीज़ से दिल उठा कर चले

4.
कोई ना-उमीदाना करते निगाह
सो तुम हमसे मुँह भी छुपा कर चले

5.
बहुत आरज़ू थी गली की तिरी
सो याँ से लहू में नहा कर चले (याँ- यहाँ)

6.
जबीं सज्दा करते ही करते गई
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले

7.
दिखाई दिए यूँ कि बे-ख़ुद किया
हमें आपसे भी जुदा कर चले

8.
परस्तिश की याँ तक कि ऐ बुत तुझे
नज़र में सभों की ख़ुदा कर चले (याँ- यहाँ)

9.
झड़े फूल जिस रंग गुलबुन से यूँ
चमन में जहाँ के हम आ कर चले

10.
कहें क्या जो पूछे कोई हमसे ‘मीर’
जहाँ में तुम आए थे क्या कर चले

11.
आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम
अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये

12.
हमारे आगे तिरा जब किसू ने नाम लिया
दिल-ए-सितम-ज़दा को हम ने थाम थाम लिया

13.
होगा किसी दीवार के साए में पड़ा ‘मीर’
क्या काम मुहब्बत से उस आराम-तलब को

14.
मिरे सलीक़े से मेरी निभी मुहब्बत में
तमाम उम्र मैं नाकामियों से काम लिया

15.
देख तो दिल कि जाँ से उठता है
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है

16.
नाला सर खींचता है जब मेरा,
शोर इक आसमाँ से उठता है (नाला: चीख़-चीख़ कर रोना)

17.
बैठने कौन दे है फिर उसको
जो तिरे आस्ताँ से उठता है

18.
यूँ उठे आह उस गली से हम
जैसे कोई जहाँ से उठता है

19.
इश्क़ इक ‘मीर’ भारी पत्थर है
कब ये तुझ नातवाँ से उठता है (नातवाँ- कमज़ोर)

20.
जिनके लिए अपने तो यूँ जान निकलते हैं
इस राह में वे जैसे अंजान निकलते हैं

21.
मत सहल हमें जानो फिरता है फ़लक बरसों
तब ख़ाक के पर्दे से इंसान निकलते हैं

22.
करिए तो गिला किस से जैसी थी हमें ख़्वाहिश
अब वैसे ही ये अपने अरमान निकलते हैं

23.
बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो
ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो (याँ- यहाँ)

24.
हम को दीवानगी शहरों ही में ख़ुश आती है
दश्त में क़ैस रहो कोह में फ़रहाद रहो

25.
‘मीर’ हम मिल के बहुत ख़ुश हुए तुमसे प्यारे
इस ख़राबे में मिरी जान तुम आबाद रहो

26.
नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है

27.
‘मीर’ उन नीम-बाज़ आँखों में
सारी मस्ती शराब की सी है

28.
राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या
आगे आगे देखिए होता है क्या (राह-ए-दूर-ए-इश्क़: इश्क़ का लंबा सफ़र)

29.
ये निशान-ए-इश्क़ हैं जाते नहीं
दाग़ छाती के अबस धोता है क्या (अबस- बेकार)

30.
ग़ैरत-ए-यूसुफ़ है ये वक़्त-ए-अज़ीज़
‘मीर’ इसको राएगाँ खोता है क्या

31.
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है

32.
आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया में
जी के ज़ियाँ को इश्क़ में उसके अपना वारा जाने है

33.
सिरहाने ‘मीर’ के आहिस्ता बोलो
अभी टुक रोते रोते सो गया है

34.
अब कर के फ़रामोश तो नाशाद करोगे
पर हम जो न होंगे तो बहुत याद करोगे

35.
आवरगान-ए-इश्क़ का पूछा जो मैं निशां
मुश्त-ए-ग़ुबार ले के सबा ने उड़ा दिया

36.
फोड़ा सा सारी रात जो पकता रहेगा दिल
तो सुब्ह तक तो हाथ लगाया न जाएगा

37.
अपने शहीद-ए-नाज़ से बस हाथ उठा कि फिर
दीवान-ए-हश्र में उसे लाया न जाएगा

38.
अब देख ले कि सीना भी ताज़ा हुआ है चाक
फिर हम से अपना हाल दिखाया न जाएगा

39.
याद उसकी इतनी ख़ूब नहीं ‘मीर’ बाज़ आ
नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा

40.
अब जो इक हसरत-ए-जवानी है
उम्र-ए-रफ़्ता की ये निशानी है

41.
उसकी शमशीर तेज़ है हमदम
मर रहेंगे जो ज़िंदगानी है

42.
ख़ाक थी मौजज़न जहाँ में और
हमको धोका ये था कि पानी है

43.
याँ हुए ‘मीर’ तुम बराबर ख़ाक
वाँ वही नाज़ ओ सरगिरानी है (याँ- यहाँ)

44.
होती है गरचे कहने से यारो पराई बात
पर हमसे तो थंबे न कभू मुँह पर आई बात (गरचे- यद्यपि, थंबे- रुके, कभू- कभी)

45.
कहते थे उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिए लेक
वो आ गया तो सामने उसके न आई बात (लेक- लेकिन)

46.
अब तो हुए हैं हम भी तिरे ढब से आश्ना
वाँ तू ने कुछ कहा कि इधर हम ने पाई बात (वाँ- वहाँ)

47.
बुलबुल के बोलने में सब अंदाज़ हैं मिरे
पोशीदा कब रहे है किसू की उड़ाई बात (किसू- किसी)

48.
ख़त लिखते लिखते ‘मीर’ ने दफ़्तर किए रवाँ
इफ़रात-ए-इश्तियाक़ ने आख़िर बढ़ाई बात (रवाँ: जो बहाव में हो, इफ़रात-ए-इश्तियाक़: इच्छा की अधिकता)

49.
ऐसा तिरा रहगुज़र न होगा,
हर गाम पे जिस में सर न होगा

50.
धोका है तमाम बहर दुनिया
देखेगा कि होंठ तर न होगा

51.
अमीरों तक रसाई हो चुकी बस,
मिरी बख़्त-आज़माई हो चुकी बस (रसाई- पहुँच, बख़्त-आज़माई: भाग्य-परीक्षा)

52.
बहार अब के भी जो गुज़री क़फ़स में,
तो फिर अपनी रिहाई हो चुकी बस

53.
लगा है हौसला भी करने तंगी,
ग़मों की अब समाई हो चुकी बस Urdu Ke Behtreen Sher

54.
बातें हमारी याद रहें फिर बातें ऐसी न सुनिएगा,
पढ़ते किसू को सुनिएगा तो देर तलक सर धुनिएगा

55.
कोई हो महरम शोख़ी तिरा तो में पूछूँ,
कि बज़्म-ए-ऐश जहाँ क्या समझ के बरहम की

56.
क़फ़स में ‘मीर’ नहीं जोश दाग़ सीने पर
हवस निकाली है हमने भी गुल के मौसम की

57.
बज़्म में जो तिरा ज़ुहूर नहीं
शम-ए-रौशन के मुँह पे नूर नहीं

58.
कितनी बातें बना के लाऊँ एक
याद रहती तिरे हुज़ूर नहीं

59.
ख़ूब पहचानता हूँ तेरे तईं
इतना भी तो मैं बे-शुऊर नहीं

60.
फ़िक्र मत कर हमारे जीने का
तेरे नज़दीक कुछ ये दूर नहीं

61.
आम है यार की तजल्ली ‘मीर’
ख़ास मूसा व कोह-ए-तूर नहीं

62.
मुझे देख मुँह पर परेशाँ की ज़ुल्फ़
ग़रज़ ये कि जा तू हुई अब तो शाम

63.
न देखे जहाँ कोई आँखों की और
न लेवे कोई जिस जगह दिल का नाम

64.
जहाँ ‘मीर’ ज़ेर-ओ-ज़बर हो गया
ख़िरामाँ हुआ था वो महशर-ख़िराम

65.
अश्क आँखों में कब नहीं आता
लोहू आता है जब नहीं आता (लोहू- लहू)

66.
होश जाता नहीं रहा लेकिन
जब वो आता है तब नहीं आता

67.
दिल से रुख़्सत हुई कोई ख़्वाहिश
गिर्या कुछ बे-सबब नहीं आता (गिर्या- बुरी तरह रोना)

68.
इश्क़ को हौसला है शर्त अर्ना
बात का किसको ढब नहीं आता

69.
जी में क्या क्या है अपने ऐ हमदम
पर सुख़न ता-ब-लब नहीं आता

70.
तनिक तो लुत्फ़ से कुछ कह कि जाँ-ब-लब हूँ मैं
रही है बात मिरी जान अब कोई दम की

71.
बनी थी कुछ इक उससे मुद्दत के बाद
सो फिर बिगड़ी पहली ही सुहबत के बाद

72.
जुदाई के हालात मैं क्या कहूँ
क़यामत थी एक एक साअत के बाद

73.
लगा आग पानी को दौड़े है तू
ये गर्मी तिरी इस शरारत के बाद

74.
कहे को हमारे कब उनने सुना
कोई बात मानी सो मिन्नत के बाद

75.
सुख़न की न तकलीफ़ हमसे करो
लहू टपके है अब शिकायत के बाद

76.
नज़र ‘मीर’ ने कैसी हसरत से की
बहुत रोए हम उस की रुख़्सत के बाद

77.
सरापा आरज़ू होने ने बंदा कर दिया हमको
वगर्ना हम ख़ुदा थे गर दिल-ए-बे-मुद्दआ होते (सरापा- सर से पाँव तक)

78.
फ़लक ऐ काश हमको ख़ाक ही रखता कि इसमें हम
ग़ुबार-ए-राह होते या कसू की ख़ाक-ए-पा होते

79.
इलाही कैसे होते हैं जिन्हें है बंदगी ख़्वाहिश
हमें तो शर्म दामन-गीर होती है ख़ुदा होते

80.
कहीं जो कुछ मलामत गर बजा है ‘मीर’ क्या जानें
उन्हें मा’लूम तब होता कि वैसे से जुदा होते

81.
मैं ये कहता था कि दिल जन ने लिया कौन है वो
यक-ब-यक बोल उठा उस तरफ़ आ मैं ही हूँ

Urdu Ke Behtreen Sher
82.
जब कहा मैंने कि तू ही है तो फिर कहने लगा
क्या करेगा तू मिरा देखूँ तो जा मैं ही हूँ

83.
मुझसा ही हो मजनूँ भी ये कब माने है आक़िल
हर सर नहीं ऐ ‘मीर’ सज़ा-वार-ए-मुहब्बत

84.
दिल जो था इक आबला फूटा गया
रात को सीना बहुत कूटा गया

85.
मैं न कहता था कि मुँह कर दिल की और
अब कहाँ वो आईना टूटा गया

86.
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है
ये नगर सौ मर्तबा लूटा गया

87.
‘मीर’ किस को अब दिमाग़-ए-गुफ़्तुगू
उम्र गुज़री रेख़्ता छूटा गया

88.
आह किस ढब से रोइए कम-कम
शौक़ हद से ज़ियाद है हमको

89.
दोस्ती एक से भी तुझ को नहीं
और सब से इनाद है हमको

90.
नामुरादाना ज़ीस्त करता था
‘मीर’ का तौर याद है हमको

91.
कब तलक ये सितम उठाइएगा
एक दिन यूँही जी से जाइएगा

92.
सब से मिल चल कि हादसे से फिर
कहीं ढूँढा भी तो न पाइएगा

93.
कहियेगा उस से क़िस्सा-ए-मजनूँ
या’नी पर्दे में ग़म सुनाइएगा

94.
उसके पाँव को जा लगी है हिना
ख़ूब से हाथ उसे लगाइएगा

95.
अपनी डेढ़ ईंट की जद्दी मस्जिद
किसी वीराने में बनाइयेगा

96.
कब तलक जी रुके ख़फ़ा होवे
आह करिए कि टक हवा होवे

97.
जी ठहर जाए या हवा होवे
देखिए होते होते क्या होवे

98.
बेकली मारे डालती है नसीम
देखिए अब के साल क्या होवे

99.
मर गए हम तो मर गए तो जी
दिल-गिरफ़्ता तिरी बला होवे

100.
न सुना रात हमने इक नाला
ग़ालिबन ‘मीर’ मर रहा होवे

________ Urdu Ke Behtreen Sher

ग़ालिब के सौ बेहतरीन शेर…

1.
फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं,
फिर वही ज़िंदगी हमारी है

2.
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं ‘ग़ालिब’
कुछ तो है जिसकी पर्दा-दारी है

3.
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने,
ग़ैर को तुझसे मुहब्बत ही सही

4.
हम कोई तर्क-ए-वफ़ा करते हैं,
न सही इश्क़ मुसीबत ही सही

5.
यार से छेड़ चली जाए ‘असद’
गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही

6.
आ ही जाता वो राह पर ‘ग़ालिब’
कोई दिन और भी जिए होते

7.
कोई उम्मीद बर नहीं आती,
कोई सूरत नज़र नहीं आती

8.
मौत का एक दिन मुअय्यन है
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती

9.
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती

10.
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्ना क्या बात कर नहीं आती

11.
क्यूँ न चीख़ूँ कि याद करते हैं
मेरी आवाज़ गर नहीं आती

12.
हम वहाँ हैं जहाँ से हमको भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती

13.
मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती

14.
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुमको मगर नहीं आती

15.
की वफ़ा हमसे तो ग़ैर इसको जफ़ा कहते हैं,
होती आई है कि अच्छों को बुरा कहते हैं

16.
आज हम अपनी परेशानी-ए-ख़ातिर उनसे
कहने जाते तो हैं पर देखिए क्या कहते हैं

17.
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक

18.
हमने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन,
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको ख़बर होने तक

19.
इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई,
मेरे दुःख की दवा करे कोई

20.
चाल जैसे कड़ी कमान का तीर,
दिल में ऐसे कि जा करे कोई

21.
बात पर वाँ ज़बान कटती है
वो कहें और सुना करे कोई

22.
बक रहा हूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई

23.
न सुनो गर बुरा कहे कोई
न कहो गर बुरा करे कोई

24.
रोक लो गर ग़लत चले कोई
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई

25.
मिलना तिरा अगर नहीं आसाँ तो सहल है,
दुश्वार तो यही है कि दुश्वार भी नहीं
Urdu Ke Behtreen Sher
26.
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा,
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं

27.
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे (बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल: बच्चों का खेल)

28.
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तिरे पीछे,
तू देख कि क्या रंग है तेरा मिरे आगे

29.
ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र,
काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे Ghalib Best Sher

30.
ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यूँ मर नहीं जाते,
आई शब-ए-हिज्राँ की तमन्ना मिरे आगे

31.
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

32.
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है

33.
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ,
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ

34.
जम्अ करते हो क्यूँ रक़ीबों को
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ

35.
कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब
गालियाँ खा के बे-मज़ा न हुआ

36.
है ख़बर गर्म उनके आने की
आज ही घर में बोरिया न हुआ  Mirza Ghalib Shayari

37.
जान दी, दी हुई उसी की थी
हक़ तो यूँ है कि हक़ अदा न हुआ

38.
ज़ख़्म गर दब गया लहू न थमा
काम गर रुक गया रवा न हुआ

39.
कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं
आज ‘ग़ालिब’ ग़ज़ल-सरा न हुआ

40.
ज़िंदगी में तो वो महफ़िल से उठा देते थे
देखूँ अब मर गए पर कौन उठाता है मुझे

41.
बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना

Urdu Ke Behtreen Sher
42.
की मिरे क़त्ल के बा’द उसने जफ़ा से तौबा
हाए उस ज़ूद-पशीमां का पशेमां होना   (ज़ूद-पशीमां: बहुत जल्दी पछतावा करने वाला)

43.
चाहिए अच्छों को जितना चाहिए,
ये अगर चाहें तो फिर क्या चाहिए

44.
दुश्मनी ने मेरी खोया ग़ैर को,
किस क़दर दुश्मन है देखा चाहिए

45.
दिल लगा कर लग गया उनको भी तन्हा बैठना,
बारे अपनी बेकसी की हम ने पाई दाद याँ

46.
दिल, ए नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है

47.
हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है

48.
मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ
काश पूछो कि मुद्दआ’ क्या है

49.
जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद
फिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है

50.
हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है

51.
हाँ भला कर तिरा भला होगा
और दरवेश की सदा क्या है

52.
जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है

53.
मैंने माना कि कुछ नहीं ‘ग़ालिब’
मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या है

54.
दोनों जहान दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
याँ आ पड़ी ये शर्म कि तकरार क्या करें

55.
थक थक के हर मक़ाम पे दो चार रह गए,
तेरा पता न पाएँ तो नाचार क्या करें

56.
कहा है किस ने कि ‘ग़ालिब’ बुरा नहीं लेकिन,
सिवाए इस के कि आशुफ़्ता-सर है क्या कहिए (आशुफ़्ता-सर: जिसका सर फिर गया हो) Ghalib Best Sher

57.
हर-चंद हर एक शय में तू है
पर तुझ सी कोई शय नहीं है

58.
हस्ती है न कुछ अदम है ‘ग़ालिब’,
आख़िर तू क्या है ऐ नहीं है

59.
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता

60.
तिरे वा’दे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ए’तिबार होता

61.
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को,
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता

62.
कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है,
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता

63.
ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान ‘ग़ालिब’,
तुझे हम वली समझते जो न बादा-ख़्वार होता

64.
दर्द से मेरे है तुझको बे-क़रारी हाए हाए,
क्या हुई ज़ालिम तिरी ग़फ़लत-शिआरी हाए हाए

65.
इश्क़ ने पकड़ा न था ‘ग़ालिब’ अभी वहशत का रंग,
रह गया था दिल में जो कुछ ज़ौक़-ए-ख़्वारी हाए हाए

66.
दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा में रज़ा-मंद कर गई

67.
मारा ज़माने ने असदुल्लाह ख़ाँ तुम्हें,
वो वलवले कहाँ वो जवानी किधर गई

68.
गई वो बात कि हो गुफ़्तुगू तो क्यूँकर हो,
कहे से कुछ न हुआ फिर कहो तो क्यूँकर हो

69.
हमारे ज़हन में इस फ़िक्र का है नाम विसाल
कि गर न हो तो कहाँ जाएँ हो तो क्यूँकर हो

70.
उलझते हो तुम अगर देखते हो आईना,
जो तुमसे शहर में हों एक दो तो क्यूँकर हो  Ghalib Best Sher Urdu Ke Behtreen Sher

71.
हम थे मरने को खड़े पास न आया न सही,
आख़िर उस शोख़ के तरकश में कोई तीर भी था

72.
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’,
कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था (रेख़्ते: उर्दू का पुराना नाम)

73.
दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं,
ख़ाक ऐसी ज़िंदगी पे कि पत्थर नहीं हूँ मैं

74.
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा,
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा

75.
बेदाद-ए-इश्क़ से नहीं डरता मगर ‘असद’,
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा

76.
क़सम जनाज़े पे आने की मेरे खाते हैं ‘ग़ालिब’,
हमेशा खाते थे जो मेरी जान की क़सम आगे

77.
आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे,
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे

78.
‘ग़ालिब’ बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे,
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे (वाइज़: धर्मगुरु)

79.
जल्लाद से डरते हैं न वाइज़ से झगड़ते,
हम समझे हुए हैं उसे जिस भेस में जो आए

80.
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

81.
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन,
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले

82.
मगर लिखवाए कोई उसको ख़त तो हमसे लिखवाए,
हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले

83.
मुब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का,
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले

84.
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है

85.
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है

86.
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

87.
रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो
हम-सुख़न कोई न हो और हम-ज़बाँ कोई न हो Ghalib Best Sher

88.
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं

89.
‘ग़ालिब’-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं,
रोइए ज़ार ज़ार क्या कीजिए हाए हाए क्यूँ  Ghalib Best Sher

90.
नुक्ता-चीं है! ग़म-ए-दिल उसको सुनाए न बने,
क्या बने बात जहाँ बात बताए न बने

91.
ग़ैर फिरता है लिए यूँ तिरे ख़त को कि अगर,
कोई पूछे कि ये क्या है तो छुपाए न बने

92.
मौत की राह न देखूँ कि बिन आए न रहे,
तुमको चाहूँ कि न आओ तो बुलाए न बने

93.
बोझ वो सर से गिरा है कि उठाए न उठे,
काम वो आन पड़ा है कि बनाए न बने

94.
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने

95.
ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो,
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के

96.
दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर,
ये भी हल्क़े हैं तुम्हारे दाम के (हल्क़े: ज़ंजीर)

97.
इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया,
वर्ना हम भी आदमी थे काम के

98.
हाल-ए-दिल नहीं मा’लूम लेकिन इस क़दर या’नी,
हमने बारहा ढूँढा तुमने बारहा पाया

99.
न सताइश की तमन्ना न सिले की पर्वा,
गर नहीं हैं मिरे अशआ’र में मा’नी न सही

100.
नक़्श फ़रियादी है किसकी शोख़ी-ए-तहरीर का,
काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए-तस्वीर का

_____ Urdu Ke Behtreen Sher

मुहम्मद इक़बाल को सर मुहम्मद इक़बाल या फिर अल्लामा इक़बाल के नाम से भी जाना जाता है. इक़बाल उर्दू शाइरी के सबसे बड़े शाइरों में शुमार किए जाते हैं. इक़बाल का जन्म (Iqbal ka janm) 9 नवम्बर 1877 को सिआलकोट में हुआ था. इक़बाल के जन्मदिन को ‘विश्व उर्दू दिवस’ या ‘वर्ल्ड उर्दू डे’ के बतौर मनाया जाता है. इक़बाल ने अपनी शाइरी से अलग-अलग सब्जेक्ट पर बात की. उन्होंने उर्दू और फ़ारसी ज़बानों में शाइरी की और शोहरत हासिल की. 21 अप्रैल, 1938 को उन्होंने इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह दिया. Urdu Ke Behtreen Sher

1.
गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
चराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है

2.
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है

3.
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है

4.
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी

5.
इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा,
तू भी अभी ना-तमाम मैं भी अभी ना-तमाम

6.
आह कि खोया गया तुझसे फ़क़ीरी का राज़
वर्ना है माल-ए-फ़क़ीर सल्तनत-ए-रूम-ओ-शाम

7.
हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही
क्या चाँद तारे क्या मुर्ग़ ओ माही

8.
कुछ क़द्र अपनी तूने न जानी
ये बे-सवादी ये कम-निगाही

9.
ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
तिरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं

10.
हर इक मक़ाम से आगे मक़ाम है तेरा
हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं

अहमद फ़राज़ के बेहतरीन शेर…

11.
गिराँ-बहा है तो हिफ़्ज़-ए-ख़ुदी से है वर्ना
गुहर में आब-ए-गुहर के सिवा कुछ और नहीं

12.
सिखलाई फ़रिश्तों को आदम की तड़प उसने
आदम को सिखाता है आदाब-ए-ख़ुदावंदी

13.
अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है
शायद कि उतर जाए तिरे दिल में मिरी बात

14.
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन

15.
मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं
तन की दौलत छाँव है आता है धन जाता है धन

16.
पानी पानी कर गई मुझको क़लंदर की ये बात
तू झुका जब ग़ैर के आगे न मन तेरा न तन

17.
मन की दुनिया में न पाया मैं ने अफ़रंगी का राज,
मन की दुनिया में न देखे मैं ने शैख़ ओ बरहमन

18.
हुस्न-ए-बे-परवा को अपनी बे-नक़ाबी के लिए,
हों अगर शहरों से बन प्यारे तो शहर अच्छे कि बन

19.
फूल हैं सहरा में या परियाँ क़तार अंदर क़तार
ऊदे ऊदे नीले नीले पीले पीले पैरहन

20.
अनोखी वज़्अ’ है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं

21.
रुलाती है मुझे रातों को ख़ामोशी सितारों की
निराला इश्क़ है मेरा निराले मेरे नाले हैं

22.
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैंने बना कर फूँक डाले हैं

23.
मिरे अशआ’र ऐ ‘इक़बाल’ क्यूँ प्यारे न हों मुझको
मिरे टूटे हुए दिल के ये दर्द-अंगेज़ नाले हैं

24.
न फ़लसफ़ी से न मुल्ला से है ग़रज़ मुझको
ये दिल की मौत वो अंदेशा ओ नज़र का फ़साद

25.
अक़्ल गो आस्ताँ से दूर नहीं
उस की तक़दीर में हुज़ूर नहीं

26.
क्या ग़ज़ब है कि इस ज़माने में
एक भी साहब-ए-सुरूर नहीं

27.
हर गुहर ने सदफ़ को तोड़ दिया
तू ही आमादा-ए-ज़ुहूर नहीं

28.
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है

29.
किसे नहीं है तमन्ना-ए-सरवरी लेकिन
ख़ुदी की मौत हो जिस में वो सरवरी क्या है Urdu Ke Behtreen Sher

30.
ख़ुश आ गई है जहाँ को क़लंदरी मेरी
वगरना शेर मिरा क्या है शाइरी क्या है

31.
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं

32.
अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं

33.
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं

34.
इसी रोज़ ओ शब में उलझ कर न रह जा
कि तेरे ज़मान ओ मकाँ और भी हैं

35.
गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मिरे राज़-दाँ और भी हैं

36.
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है

37.
कब तक रहे महकूमी-ए-अंजुम में मिरी ख़ाक
या मैं नहीं या गर्दिश-ए-अफ़्लाक नहीं है

38.
बिजली हूँ नज़र कोह ओ बयाबाँ पे है मेरी
मेरे लिए शायाँ ख़स-ओ-ख़ाशाक नहीं है

39.
मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे
नज़्ज़ारे की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे

40.
सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे

41.
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल,
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे

42.
शबनम की तरह फूलों पे रो और चमन से चल
इस बाग़ में क़याम का सौदा भी छोड़ दे

43.
है आशिक़ी में रस्म अलग सब से बैठना
बुत-ख़ाना भी हरम भी कलीसा भी छोड़ दे

44.
सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे

45.
ना वो क्या जो हो नफ़स-ए-ग़ैर पर मदार
शोहरत की ज़िंदगी का भरोसा भी छोड़ दे

46.
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा (तुलू-ए-इस्लाम से)

47.
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है (जवाब-ए-शिकवा से)

48.
यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो
तुम सभी कुछ हो बताओ तो मुसलमान भी हो (जवाब-ए-शिकवा से)

49.
अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमां तेरा है या मेरा
मुझे फ़िक्र-ए-जहाँ क्यूँ हो जहाँ तेरा है या मेरा

50.
अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकां ख़ाली
ख़ता किस की है या रब ला-मकां तेरा है या मेरा

51.
उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा

52.
मुहम्मद भी तिरा जिबरील भी क़ुरआन भी तेरा
मगर ये हर्फ़-ए-शीरीं तर्जुमाँ तेरा है या मेरा

53.
इसी कौकब की ताबानी से है तेरा जहाँ रौशन
ज़वाल-ए-आदम-ए-ख़ाकी ज़ियाँ तेरा है या मेरा

54.
एजाज़ है किसी का या गर्दिश-ए-ज़माना
टूटा है एशिया में सेहर-ए-फ़िरंगियाना

55.
ये बंदगी ख़ुदाई वो बंदगी गदाई
या बंदा-ए-ख़ुदा बन या बंदा-ए-ज़माना Urdu Ke Behtreen Sher

56.
ग़ाफ़िल न हो ख़ुदी से कर अपनी पासबानी
शायद किसी हरम का तू भी है आस्ताना

57.
तेरी निगाह से दिल सीनों में काँपते थे
खोया गया है तेरा जज़्ब-ए-क़लंदराना

58.
जुगनू की रौशनी है काशाना-ए-चमन में
या शम्अ’ जल रही है फूलों की अंजुमन में

59.
आया है आसमाँ से उड़ कर कोई सितारा
या जान पड़ गई है महताब की किरन में

60.
या शब की सल्तनत में दिन का सफ़ीर आया
ग़ुर्बत में आ के चमका गुमनाम था वतन में

61.
हुस्न-ए-क़दीम की इक पोशीदा ये झलक थी
ले आई जिस को क़ुदरत ख़ल्वत से अंजुमन में

62.
छोटे से चाँद में है ज़ुल्मत भी रौशनी भी
निकला कभी गहन से आया कभी गहन में

63.
करेंगे अहल-ए-नज़र ताज़ा बस्तियाँ आबाद
मिरी निगाह नहीं सू-ए-कूफ़ा-ओ-बग़दाद

64.
ये मदरसा ये जवाँ ये सुरूर ओ रानाई
इन्हीं के दम से है मय-ख़ाना-ए-फ़रंग आबाद

65.
न फ़लसफ़ी से न मुल्ला से है ग़रज़ मुझको
ये दिल की मौत वो अंदेशा ओ नज़र का फ़साद

66.
ख़रीद सकते हैं दुनिया में इशरत-ए-परवाज़
ख़ुदा की देन है सरमाया-ए-ग़म-ए-फ़रहाद

67.
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं
इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख

68.
आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं
महव-ए-हैरत हूँ कि दुनिया क्या से क्या हो जाएगी

69.
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
होश ओ ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ नज़र शिकार कर

70.
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर

71.
तू है मुहीत-ए-बे-कराँ मैं हूँ ज़रा सी आबजू
या मुझे हम-कनार कर या मुझे बे-कनार कर

72.
मैं हूँ सदफ़ तो तेरे हाथ मेरे गुहर की आबरू
मैं हूँ ख़ज़फ़ तो तू मुझे गौहर-ए-शाहवार कर

73.
नग़्मा-ए-नौ-बहार अगर मेरे नसीब में न हो
उस दम-ए-नीम-सोज़ को ताइरक-ए-बहार कर Urdu Ke Behtreen Sher

74.
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर

75.
रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमल
आप भी शर्मसार हो मुझ को भी शर्मसार कर

76.
वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-काएनात में रंग,
उसी के साज़ से है ज़िंदगी का सोज़-ए-दरूँ (‘औरत’ से)

77.
मशहूर जिनके दम से है दुनिया में नाम-ए-हिंद
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़ (‘राम’ से)

78.
तलवार का धनी था शुजाअ’त में फ़र्द था,
पाकीज़गी में जोश-ए-मोहब्बत में फ़र्द था (‘राम’ से)

79.
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा (‘तराना-ए-हिंदी’ से)

80.
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा (‘तराना-ए-हिंदी’ से)

81.
यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा (‘तराना-ए-हिंदी’ से)

82.
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा (‘तराना-ए-हिंदी’ से) Urdu Ke Behtreen Sher

83.
‘इक़बाल’ कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा (‘तराना-ए-हिंदी’ से)

84.
हो मिरा काम ग़रीबों की हिमायत करना
दर्द-मंदों से ज़ईफ़ों से मुहब्बत करना (‘बच्चे की दुआ’ से)

85.
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
खुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही

86.
‘अत्तार’ हो ‘रूमी’ हो ‘राज़ी’ हो ‘ग़ज़ाली’ हो
कुछ हाथ नहीं आता बे-आह-ए-सहर-गाही

87.
ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी
जिस रिज़्क़ से आती हो पर्वाज़ में कोताही

88.
दारा ओ सिकंदर से वो मर्द-ए-फ़क़ीर औला
हो जिसकी फ़क़ीरी में बू-ए-असदूल-लाही

89.
आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही

90.
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में

91.
लज़्ज़त-ए-नग़्मा कहाँ मुर्ग़-ए-ख़ुश-अलहाँ के लिए
आह उस बाग़ में करता है नफ़स कोताही

92.
एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीक
एक सरमस्ती ओ हैरत है तमाम आगाही

93.
सिफ़त-ए-बर्क़ चमकता है मिरा फ़िक्र-ए-बुलंद
कि भटकते न फिरें ज़ुल्मत-ए-शब में राही

94.
नज़र आई न मुझे क़ाफ़िला-सालारों में
वो शबानी कि है तम्हीद-ए-कलीमुल-लाही

95.
तू बचा बचा के न रख इसे तिरा आइना है वो आइना
कि शिकस्ता हो तो अज़ीज़-तर है निगाह-ए-आइना-साज़ में

96.
न वो इश्क़ में रहीं गर्मियाँ न वो हुस्न में रहीं शोख़ियाँ
न वो ग़ज़नवी में तड़प रही न वो ख़म है ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ मैं

97.
परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए
जो मुश्किल अब है या रब फिर वही मुश्किल न बन जाए

98.
कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को
खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए

99.
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए

100.
बनाया इश्क़ ने दरिया-ए-ना-पैदा-कराँ मुझको
ये मेरी ख़ुद-निगह-दारी मिरा साहिल न बन जाए

____ Urdu Ke Behtreen Sher

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के सौ बेहतरीन शेर..

1.
दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के,
वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के

2.
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन
देखे हैं हमने हौसले पर्वरदिगार के

3.
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के

4.
भूले से मुस्कुरा तो दिए थे वो आज ‘फ़ैज़’
मत पूछ वलवले दिल-ए-ना-कर्दा-कार के

5.
सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं,
हम लोग सुर्ख़-रू हैं कि मंज़िल से आए हैं

6.
उठ कर तो आ गए हैं तिरी बज़्म से मगर
कुछ दिल ही जानता है कि किस दिल से आए हैं

7.
हर इक क़दम अजल था हर इक गाम ज़िंदगी
हम घूम फिर के कूचा-ए-क़ातिल से आए हैं

8.
कटते भी चलो बढ़ते भी चलो बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे

9.
और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया

10.
वो मिरे हो के भी मिरे न हुए
उन को अपना बना के देख लिया

11.
आज उनकी नज़र में कुछ हमने
सबकी नज़रें बचा के देख लिया

12.
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी,
सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी

13.
कब याद में तेरा साथ नहीं कब हाथ में तेरा हाथ नहीं
सद-शुक्र कि अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं

14.
मुश्किल हैं अगर हालात वहाँ दिल बेच आएँ जाँ दे आएँ,
दिल वालों कूचा-ए-जानाँ में क्या ऐसे भी हालात नहीं

15.
गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा,
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं

16.
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले,
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले

17.
क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले (सबा- बयार, धीरे-धीरे चलती हवा)

18.
बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही,
तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़म-गुसार चले

19.
जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ
हमारे अश्क तिरी आक़िबत सँवार चले (आक़िबत: आख़िरत, अंत)

20.
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिस में
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं (क़बा- लिबास)

21.
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं

22.
हर अजनबी हमें महरम दिखाई देता है,
जो अब भी तेरी गली से गुज़रने लगते हैं

23.
हमने सब शेर में सँवारे थे
हमसे जितने सुख़न तुम्हारे थे

24.
उम्र-ए-जावेद की दुआ करते
‘फ़ैज़’ इतने वो कब हमारे थे

25.
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है,
दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है

26.
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है,
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है

27.
भीगी है रात ‘फ़ैज़’ ग़ज़ल इब्तिदा करो,
वक़्त-ए-सरोद दर्द का हंगाम ही तो है

28.
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही,
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही

29.
गर इंतिज़ार कठिन है तो जब तलक ऐ दिल,
किसी के वादा-ए-फ़र्दा की गुफ़्तुगू ही सही

30.
वफ़ा-ए-वादा नहीं वादा-ए-दिगर भी नहीं,
वो मुझसे रूठे तो थे लेकिन इस क़दर भी नहीं

31.
न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ,
इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं

32.
निगाह-ए-शौक़ सर-ए-बज़्म बे-हिजाब न हो
वो बे-ख़बर ही सही इतने बे-ख़बर भी नहीं

33.
तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है
तलाश में है सहर बार बार गुज़री है

34.
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था,
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है

35.
न गुल खिले हैं न उनसे मिले न मय पी है,
अजीब रंग में अब की बहार गुज़री है

36.
“आपकी याद आती रही रात भर”,
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर

*फ़ैज़ की ये ग़ज़ल मख़दूम की मशहूर ग़ज़ल की ज़मीन पर है, ये फ़ैज़ ने मख़दूम की याद में कही थी. मिसरा-ए-ऊला (पहला मिसरा) मख़दूम ने कहा है.

37.
गाह जलती हुई गाह बुझती हुई,
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर

38.
कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
कोई तस्वीर गाती रही रात भर Urdu Ke Behtreen Sher

39.
एक उम्मीद से दिल बहलता रहा,
इक तमन्ना सताती रही रात भर

40.
बात बस से निकल चली है,
दिल की हालत सँभल चली है

41.
अब जुनूँ हद से बढ़ चला है
अब तबीअ’त बहल चली है

42.
लाख पैग़ाम हो गए हैं,
जब सबा एक पल चली है (सबा- बयार, धीरे-धीरे चलती हवा)

43.
जाओ अब सो रहो सितारो
दर्द की रात ढल चली है

44.
हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए,
काफ़िरों की नमाज़ हो जाए (मजाज़- वैध)

45.
मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन करे,
दर्द जब जाँ-नवाज़ हो जाए (मिन्नत-ए-चारा-साज़: डॉक्टर से विनती)

46.
इश्क़ दिल में रहे तो रुस्वा हो,
लब पे आए तो राज़ हो जाए

47.
उम्र बे-सूद कट रही है ‘फ़ैज़’,
काश इफ़शा-ए-राज़ हो जाए (इफ़शा-ए-राज़: राज़ का खुलना)

48.
कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे,
कब तक चैन की मुहलत दोगे कब तक याद न आओगे

49.
बीता दीद उम्मीद का मौसम ख़ाक उड़ती है आँखों में,
कब भेजोगे दर्द का बादल कब बरखा बरसाओगे

50.
हिम्मत-ए-इल्तिजा नहीं बाक़ी,
ज़ब्त का हौसला नहीं बाक़ी

51.
इक तिरी दीद छिन गई मुझसे
वर्ना दुनिया में क्या नहीं बाक़ी

52.
हो चुका ख़त्म अहद-ए-हिज्र-ओ-विसाल,
ज़िंदगी में मज़ा नहीं बाक़ी

53.
बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते,
तुम अच्छे मसीहा हो शिफ़ा क्यूँ नहीं देते (शिफ़ा- इलाज)

54.
मिट जाएगी मख़्लूक़ तो इंसाफ़ करोगे,
मुंसिफ़ हो तो अब हश्र उठा क्यूँ नहीं देते (मख़्लूक़- सृष्टि, मुंसिफ़- जज, हश्र- क़यामत का दिन)

55.
बर्बादी-ए-दिल जब्र नहीं ‘फ़ैज़’ किसी का,
वो दुश्मन-ए-जाँ है तो भुला क्यूँ नहीं देते

56.
हमीं से अपनी नवा हम-कलाम होती रही,
ये तेग़ अपने लहू में नियाम होती रही (हम-कलाम: एक साथ बातचीत, तेग़: तलवार, नियाम: म्यान)

57.
जो कुछ भी बन न पड़ा ‘फ़ैज़’ लुट के यारों से
तो रहज़नों से दुआ-ओ-सलाम होती रही

58.
दिल में अब यूँ तिरे भूले हुए ग़म आते हैं,
जैसे बिछड़े हुए काबे में सनम आते हैं

59.
एक इक करके हुए जाते हैं तारे रौशन
मेरी मंज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते हैं

60.
कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग़,
वो तो जब आते हैं माइल-ब-करम आते हैं

61.
और कुछ देर न गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो,
दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते हैं

62.
अब वही हर्फ़-ए-जुनूँ सबकी ज़बाँ ठहरी है
जो भी चल निकली है वो बात कहाँ ठहरी है

63.
वस्ल की शब थी तो किस दर्जा सुबुक गुज़री थी
हिज्र की शब है तो क्या सख़्त गिराँ ठहरी है (वस्ल- मिलन, हिज्र- जुदाई, शब- रात) 

64.
आते आते यूँही दम भर को रुकी होगी बहार,
जाते जाते यूँही पल भर को ख़िज़ाँ ठहरी है

65.
चाँद निकले किसी जानिब तिरी ज़ेबाई का,
रंग बदले किसी सूरत शब-ए-तन्हाई का (ज़ेबाई- सुन्दरता, जानिब- दिशा, तरफ़)

66.
एक बार और मसीहा-ए-दिल-ए-दिल-ज़दगाँ
कोई वा’दा कोई इक़रार मसीहाई का (मसीहा-ए-दिल-ए-दिल-ज़दगाँ: घायल दिल के दिल का मसीहा)

67.
दीदा ओ दिल को सँभालो कि सर-ए-शाम-ए-फ़िराक़
साज़-ओ-सामान बहम पहुँचा है रुस्वाई का

68.
गो सब को बहम साग़र ओ बादा तो नहीं था
ये शहर उदास इतना ज़ियादा तो नहीं था (साग़र- शराब का प्याला, बादा- शराब)

69.
गलियों में फिरा करते थे दो चार दिवाने
हर शख़्स का सद चाक लबादा तो नहीं था

70.
मंज़िल को न पहचाने रह-ए-इश्क़ का राही
नादाँ ही सही ऐसा भी सादा तो नहीं था

71.
हम सादा ही ऐसे थे की यूँ ही पज़ीराई
जिस बार ख़िज़ाँ आई समझे कि बहार आई (पज़ीराई: स्वीकृति)

72.
हम मुसाफ़िर यूँही मसरूफ़-ए-सफ़र जाएँगे
बे-निशाँ हो गए जब शहर तो घर जाएँगे (मसरूफ़-ए-सफ़र: सफ़र में व्यस्त)

73.
किस क़दर होगा यहाँ महर-ओ-वफ़ा का मातम
हम तिरी याद से जिस रोज़ उतर जाएँगे

74.
जौहरी बंद किए जाते हैं बाज़ार-ए-सुख़न
हम किसे बेचने अलमास-ओ-गुहर जाएँगे

75.
नेमत-ए-ज़ीस्त का ये क़र्ज़ चुकेगा कैसे
लाख घबरा के ये कहते रहें मर जाएँगे (ज़ीस्त- ज़िन्दगी)

76.
‘फ़ैज़’ आते हैं रह-ए-इश्क़ में जो सख़्त मक़ाम
आने वालों से कहो हम तो गुज़र जाएँगे

77.
है वही बात यूँ भी और यूँ भी
तुम सितम या करम की बात करो

78.
हिज्र की शब तो कट ही जाएगी
रोज़-ए-वस्ल-ए-सनम की बात करो

79.
जान जाएँगे जानने वाले
‘फ़ैज़’ फ़रहाद ओ जम की बात करो Urdu Ke Behtreen Sher

80.
न अब रक़ीब न नासेह न ग़म-गुसार कोई
तुम आश्ना थे तो थीं आश्नाइयाँ क्या क्या

81.
जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनी
बहम हुए तो पड़ी हैं जुदाइयाँ क्या क्या (बहम- साथ)

82.
पहुँच के दर पे तिरे कितने मो’तबर ठहरे
अगरचे रह में हुईं जग-हँसाइयाँ क्या क्या

83.
हम ऐसे सादा-दिलों की नियाज़-मंदी से
बुतों ने की हैं जहाँ में ख़ुदाइयाँ क्या क्या

84.
सितम पे ख़ुश कभी लुत्फ़-ओ-करम से रंजीदा
सिखाईं तुमने हमें कज-अदाइयाँ क्या क्या (रंजीदा- दुःख, कज-अदाइयाँ: अशिष्टता)  Faiz Ahmed Faiz Shayari

85.
नसीब आज़माने के दिन आ रहे हैं
क़रीब उनके आने के दिन आ रहे हैं

86.
जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है
सब उनको सुनाने के दिन आ रहे हैं

87.
अभी से दिल ओ जाँ सर-ए-राह रख दो
कि लुटने लुटाने के दिन आ रहे हैं

88.
टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं

89.
सबा फिर हमें पूछती फिर रही है
चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं (सबा- बयार, धीरे-धीरे चलती हवा)

90.
चलो ‘फ़ैज़’ फिर से कहीं दिल लगाएँ
सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं

91.
फिर हरीफ़-ए-बहार हो बैठे,
जाने किस किस को आज रो बैठे (हरीफ़-ए-बहार: बहार का दुश्मन)

92.
थी मगर इतनी राएगाँ भी न थी
आज कुछ ज़िंदगी से खो बैठे

93.
तेरे दर तक पहुँच के लौट आए
इश्क़ की आबरू डुबो बैठे

94.
सारी दुनिया से दूर हो जाए
जो ज़रा तेरे पास हो बैठे

95.
न गई तेरी बे-रुख़ी न गई
हम तिरी आरज़ू भी खो बैठे

96.
‘फ़ैज़’ होता रहे जो होना है
शेर लिखते रहा करो बैठे

97.
नहीं ख़ौफ़-ए-रोज़-ए-सियह हमें कि है ‘फ़ैज़’ ज़र्फ़-ए-निगाह में
अभी गोशा-गीर वो इक किरण जो लगन उस आईना-रू की है

(ख़ौफ़-ए-रोज़-ए-सियह: काले दिन का डर, ज़र्फ़-ए-निगाह: नज़र की मौत, गोशा-गीर: किनारे पर रहने वाला)

98.
फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ में लुत्फ़-ए-बहाराँ
बर्ग-ए-समन कुछ इस से ज़ियादा

(फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ: पतझड़ का मौसम, लुत्फ़-ए-बहाराँ: बहार का आनंद, बर्ग-ए-समन: चमेली के पंखुड़ियों)

99.
दिल-शिकनी भी दिलदारी भी
याद-ए-वतन कुछ इस से ज़ियादा

100.
इश्क़ में क्या है ग़म के अलावा
ख़्वाजा-ए-मन कुछ इस से ज़ियादा

Urdu Ke Behtreen Sher

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