दो शाइर, दो ग़ज़लें (23): राजेन्द्र मनचंदा बानी और अहमद फ़राज़
(अहमद फ़राज़ मनचंदा बानी) राजेन्द्र मनचंदा “बानी” की ग़ज़ल ऐ दोस्त मैं ख़ामोश किसी डर से नहीं था क़ाइल ही तिरी बात का अंदर से नहीं था हर आँख कहीं दौर के मंज़र पे लगी थी बेदार कोई अपने बराबर से नहीं था क्यूँ हाथ हैं ख़ाली कि हमारा कोई रिश्ता जंगल से नहीं था … Read more