Umair Najmi Best Shayari ~
तुम इस ख़राबे में चार छ: दिन टहल गई हो
सो ऐन-मुमकिन है दिल की हालत बदल गई हो
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किसी के आने पे ऐसे हलचल हुई है मुझमें
ख़मोश जंगल में जैसे बंदूक़ चल गई हो
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ये छोटे-छोटे कई हवादिस जो हो रहे हैं
किसी के सर से बड़ी मुसीबत न टल गई हो
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हमारा मलबा हमारे क़दमों में आ गिरा है
प्लेट में जैसे मोम-बत्ती पिघल गई हो
उमैर नज्मी की मशहूर ग़ज़लें..
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बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं
लगेगा लगने लगा है मगर लगेगा नहीं
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नहीं लगेगा उसे देख कर, मगर ख़ुश है
मैं ख़ुश नहीं हूँ, मगर देख कर लगेगा नहीं !
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ये रूह बरसों से दफ़्न है तुम मदद करोगे
बदन के मलबे से इसको ज़िन्दा निकालना है
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नज़र में रखना कहीं कोई ग़म-शनास का हक़
मुझे सुख़न बेचना है ख़र्चा निकालना है
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निकाल लाया हूँ एक पिंजरे से इक परिंदा
अब इस परिंदे के दिल से पिंजरा निकालना है
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किसी गली में किराए पे घर लिया उसने
फिर उस गली में घरों के किराए बढ़ने लगे
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दुःख मुझे इसका नहीं है कि दुःखी है वो शख़्स
दुःख तो ये है कि सबब मेरे इलावा है कोई
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रहमान फ़ारिस के बेहतरीन शेर
मिलते हैं मुश्किलों से यहाँ हम ख़याल लोग
तेरे तमाम चाहने वालों की ख़ैर हो
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हमें थोड़ा जुनूँ दरकार है थोड़ा सुकूँ भी
हमारी नस्ल में इक जीनियाती मसअला है
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दाएँ बाज़ू में गड़ा तीर नहीं खींच सका
इस लिए ख़ोल से शमशीर नहीं खींच सका
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शोर इतना था कि आवाज़ भी डब्बे में रही
भीड़ इतनी थी कि ज़ंजीर नहीं खींच सका
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मुझपे इक हिज्र मुसल्लत है हमेशा के लिए
ऐसा जिन है कि कोई पीर नहीं खींच सका
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मैंने जो राह ली दुश्वार ज़ियादा निकली
मेरे अंदाज़े से हर बार ज़ियादा निकली
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ये मिरी मौत के अस्बाब में लिक्खा हुआ है
ख़ून में इश्क़ की मिक़दार ज़ियादा निकली
उमैर नज्मी के बेहतरीन शेर…
Umair Najmi Best Shayari
दकनी शायर: बीजापुर और गोलकुंडा के दरबार की शायरी