Urdu Ke Pahle Shayar ~ वली:
वली दकनी (Wali Dakni) के नाम से जाने जाने वाले शम्सउद्दीन “वली” औरंगाबाद के रहने वाले थे. अपनी किताब “आब-ए-हयात” (Aab e Hayat) में मुहम्मद हुसैन आज़ाद (Muhammad Hussain Aazad) इन्हें उर्दू का पहला शा’इर मानते हैं. हालाँकि इनके पहले भी कई शा’इर हुए हैं लेकिन अधिकतर जानकार इन्हीं से उर्दू शा’इरी की असली शुरू’आत मानते हैं. इनकी मौत सन 1744 में हुई.
अजब कुछ लुत्फ़ आता है शबे ख़ल्वत में दिलबर से
सवाल आहिस्ता-आहिस्ता जवाब आहिस्ता आहिस्ता
…
याद करना हर घड़ी तुझ यार का,
है वज़ीफ़ा मुझ दिल ए बीमार का
…
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे,
उसे ज़िंदगी क्यूँ न भारी लगे
ना छोड़े मोहब्बत दम-ए-मर्ग तक
जिसे यार-ए-जानी सूँ यारी लगे
ना होवे उसे जग में हरगिज़ क़रार
जिसे इश्क़ की बे-क़रारी लगे
हर इक वक़्त मुझ आशिक़-ए-पाक कूँ
प्यारे तिरी बात प्यारी लगे
‘वली’ कूँ कहे तू अगर यक बचन
रक़ीबाँ के दिल में कटारी लगे
…
ख़ूबरू ख़ूब काम करते हैं,
इक निगाह में ग़ुलाम करते हैं
…
बेवफ़ाई ना कर, ख़ुदा सूँ डर,
जब हँसाई ना कर, ख़ुदा सूँ डर
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दाऊद:
मिर्ज़ा दाऊद औरंगाबाद (Mirza Daud Aurangabad) के रहने वाले थे. वो वली के समकालीन थे. उनका एक छोटा सा दीवान है.
रात दिन है पुकार में “दाऊद”
ज्यूँ पपीहा “पिया, पिया” तुम बिन
..
ए ज़ाहिदाँ! उठाओ जबींओ ज़मीन से,
जो सर्नविश्त है उसे काँ तक मिटाओगे
..
मेरे अहवाल चश्म ए याद से पूछ
हक़ीक़त दर्द की बीमार से पूछ
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सिराज औरंगाबादी (Siraj Aurangabadi) :
औरंगाबाद के निवासी सिराज वली और दाऊद के ही समय के शा’इर थे.
शुक्रे अल्लाह, इन दिनों तेरा करम होने लगा
शेवयेजौरोसितम फ़िलजुमला कम होने लगा
…
मुद्दत से गुम हुआ दिले बेगाना ए “सिराज”
शायद कि जा लगा है किसी आशना के साथ
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