Urdu Mein Shabdon ka prayog: आम बोलचाल की भाषा में और लिखने में भी हमने देखा है कि हम ‘मेरे’,’तेरे’,’एक’ इत्यादि अलफ़ाज़ का इस्तेमाल करते हैं लेकिन शा’इरी में हम देखते हैं कि कभी-कभी इन्हीं अलफ़ाज़ को ‘मिरे’,’तिरे’,’इक’ क्रमशः पढ़ा जाता है. ‘शाइरी की बातें‘ सीरीज़ में हमने आपको वज़्न के बारे में कुछ बातें बतायी हैं, देखा जाए तो बोलने का ये फ़र्क़ रवानी और वज़्न पर आधारित है. एक दौर में ये भी तरीक़ा बोलने का था और अभी भी कुछ जगह पर इस तरह से लोग बोलते हैं. हम आज ये समझने की कोशिश करेंगे कि ऐसा करने से वज़्न पर क्या प्रभाव पड़ता है.
जिन शब्दों का हम ज़िक्र कर रहे हैं अगर उनको हम समझें तो आमतौर पर इन शब्दों की जगह क्रमशः मेरे, तेरे, एक इत्यादि इस्तेमाल में लाये जाते हैं. असल में सही मिरे भी है और मेरे भी और दोनों के अर्थ में भी कोई अंतर नहीं है लेकिन एक अंतर है. दोनों के वज़्न में अंतर है. हमने आपको इसके पहले की पोस्ट में बताया है कि ‘इ’ और ‘उ’ की मात्रा के साथ अगर कोई अकेला अक्षर होता है तो उसका वज़्न 1 लेते हैं जबकि बाक़ी मात्राओं के साथ अक्षर हो तो वज़्न 2 लेते हैं. अब ‘मिरे’ और ‘मेरे’ से समझने की कोशिश करते हैं- मिरे का वज़्न 12 होगा क्यूँकि ‘मि’ का 1 और ‘रे’ का 2 होगा वहीं ‘मेरे’ का वज़्न 22 होगा क्यूँकि दोनों अक्षरों में ‘ए’ की मात्रा है. इसी नियम पर मिरे, तिरे, का वज़्न 12 होगा जबकि मेरे और तेरे का वज़्न 22.
इसी तरह से हम बाक़ी को देखें, सामने वज़्न लिखे गए हैं.
तेरे- 22
तिरे- 12
दीवाने- 222
दिवाने- 122
एक- 21 (एक को अगर उर्दू में लिखने के लिए तीन अक्षर की ज़रूरत होती है अलिफ़, ये और काफ़…इसलिए इसका वज्न 21 होता है)
इक- 2 (उर्दू में इक लिखने के लिए अलिफ़ और काफ़ की ज़रूरत होती है, इसलिए इसका वज़्न 2 है)
ख़ामोशी- 222
ख़मोशी- 122
ख़ामशी- 212
{नोट- ख़ामोशी, ख़मोशी, ख़ामशी तीनों सही हैं और तीनों का अर्थ सामान है}
अब एक शे’र की मदद से इसी बात को समझने की कोशिश करते हैं-
नज़र मिला के मिरे पास आ के लूट लिया,
नज़र हटी थी कि फिर मुस्कुरा के लूट लिया (जिगर मुरादाबादी)
जिगर के इस मतले को ग़ौर से देखें तो इसके पहले मिसरे में “मिरे” का इस्तेमाल हुआ है. अगर इस शेर की तक़ती’अ करें-
न-1, ज़र-2, मि-1, ला-2, के-1, मि-1, रे-2, पा-2, स-1, आ-2, के-1, लू-2, ट-1, लि-1, या-2
न-1, ज़र-2, ह-1, टी-2, थी-1, कि-1, फिर-2, मुस्-2,कु-1, रा-2, के-1, लू-2,ट-1, लि-1, या-2
इससे समझा जा सकता है कि अगर शेर के पहले मिसरे में “मेरे” का इस्तेमाल होता तो शेर बेवज़्नी हो जाता क्यूँकि यहाँ 21 वज़्न की दरकार है जबकि मेरे का वज़्न 22 होगा. एक बात ध्यान देने वाली ये भी है कि अगर किसी शब्द के अंत वाले अक्षर में ई, ऊ, आ, ए, ऐ, ओ, औ में से कोई एक मात्रा आती है तो उसका वज़्न गिरा कर भी ले सकते हैं, तब वज़्न 2 की बजाय 1 होगा जैसे इस शे’र में ‘के’,’थी’ को गिरा कर पढ़ा गया है और इनका वज़्न 1 लिया गया है.
Urdu Mein Shabdon ka prayog