Urdu Shayari Tree ~
वो जिसकी छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं
वो पेड़ मुझ से कोई बात क्यूँ नहीं करता
तहज़ीब हाफ़ी
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पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे
मैं जंगल में पानी लाया करता था
तहज़ीब हाफ़ी
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सो गए पेड़ जाग उठी ख़ुश्बू
ज़िंदगी ख़्वाब क्यूँ दिखाती है
जौन एलिया
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मिरे बच्चों को अल्लाह रखे इन ताज़ा हवा के झोंकों ने
मैं ख़ुश्क पेड़ ख़िज़ाँ का था मुझे कैसा बर्ग-ओ-बार दिया
उबैदुल्लाह अलीम
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देख मे’मार परिंदे भी रहें घर भी बने
नक़्शा ऐसा हो कोई पेड़ गिराना न पड़े
उमैर नजमी
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पेड़ पर पक गया है फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई
गुलज़ार
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यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
तहज़ीब हाफ़ी
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एक फलदार पेड़ हूँ लेकिन
वक़्त आने पे बे-समर भी हूँ
तहज़ीब हाफ़ी
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ये ख़िज़ाँ की ज़र्द सी शाल में जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है उसे आँसुओं से हरा करो
बशीर बद्र
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पेड़ की छाल से रगड़ खा कर
वो तने से फिसल रही होगी
जौन एलिया
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पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा
कैफ़ी आज़मी
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एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं
जावेद अख़्तर
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राहगीरों ने रह बदलनी है
पेड़ अपनी जगह खड़े रहे हैं
तहज़ीब हाफ़ी
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कौन हमारी प्यास पे डाका डाल गया
किस ने मश्कीज़ों के तस्मे खोले हैं
तहज़ीब हाफ़ी
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न जाने कितने परिंदों ने इसमें शिरकत की
कल एक पेड़ की तक़रीब-ए-रू-नुमाई थी
तहज़ीब हाफ़ी
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मुद्दत से मेरी आँख में इक ख़्वाब है मुक़ीम
पानी में पेड़ पेड़ की छाँव में रेत है
तहज़ीब हाफ़ी
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आ के पत्थर तो मिरे सहन में दो चार गिरे
जितने उस पेड़ के फल थे पस-ए-दीवार गिरे
शकेब जलाली
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लगाकर पेड़ हम भूले थे शायद,
शजर के आम बन्दर खा गया है
अरग़वान रब्बही
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नीम का पेड़ था गिलहरी का,
कट गया घर गया गिलहरी का
अरग़वान रब्बही
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ख़ुदा करे वो पेड़ ख़ैरियत से हो
कई दिनों से उस का राब्ता नहीं
तहज़ीब हाफ़ी
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