Aaj Phir Gardish e Taqdeer Pe Rona Aaya – Shakeel Budanyuni
आज फिर गर्दिश-ए-तक़दीर पे रोना आया
दिल की बिगड़ी हुई तस्वीर पे रोना आया
इश्क़ की क़ैद में अब तक तो उमीदों पे जिए
मिट गई आस तो ज़ंजीर पे रोना आया
क्या हसीं ख़्वाब मुहब्बत ने दिखाया था हमें
खुल गई आँख तो ता’बीर पे रोना आया
पहले क़ासिद की नज़र देख के दिल सहम गया
फिर तिरी सुर्ख़ी-ए-तहरीर पे रोना आया
दिल गँवा कर भी मोहब्बत के मज़े मिल न सके
अपनी खोई हुई तक़दीर पे रोना आया
कितने मसरूर थे जीने की दुआओं पे ‘शकील’
जब मिले रंज तो तासीर पे रोना आया
शकील बदायूँनी की इस ग़ज़ल में रदीफ़ “पे रोना आया” है। रदीफ़ से ठीक पहले जो अल्फ़ाज़ हैं वो क़ाफ़िए हैं। इस ग़ज़ल में ‘तक़दीर, तस्वीर, ज़ंजीर, ता’बीर, तहरीर, तक़दीर, तासीर’ बतौर क़ाफ़िया इस्तेमाल किए गए हैं।
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