Film Shayari
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
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सुब्ह होती है शाम होती है
उम्र यूँही तमाम होती है
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
*फ़िल्म पाकीज़ा में इस शेर का इस्तेमाल किया गया है।
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ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
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अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला
जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा
महशर बदायूँनी
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देर लगी आने में तुमको शुक्र है फिर भी आए तो
आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराए तो
अंदलीब शादानी
हसरत मोहानी के बेहतरीन शेर
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हज़ारों काम मुहब्बत में हैं मज़े के ‘दाग़’
जो लोग कुछ नहीं करते कमाल करते हैं
दाग़ देहलवी
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वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं
मिर्ज़ा ग़ालिब
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गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
इस शेर को शाहरुख़ ख़ान ने फ़िल्म ए दिल है मुश्किल में पढ़ा है। हालाँकि फ़िल्म के लिए शेर में कुछ बदलाव किए गए हैं।
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ के बेहतरीन शेर….
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हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
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हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
मिर्ज़ा ग़ालिब
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तुम्हें ग़ैरों से कब फ़ुर्सत हम अपने ग़म से कब ख़ाली,
चलो बस हो चुका मिलना, न तुम ख़ाली न हम ख़ाली
मिर्ज़ा जाफ़र अली ‘हसरत’
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कश्तियाँ सबकी किनारे पे पहुँच जाती हैं
नाख़ुदा जिनका नहीं उनका ख़ुदा होता है
अमीर मीनाई
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देख तो दिल कि जाँ से उठता है
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है
मीर तक़ी मीर
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इश्क़ इक ‘मीर’ भारी पत्थर है
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है
मीर तक़ी मीर
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तुम हमारे किसी तरह न हुए
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता
मोमिन
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तुम मिरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
मोमिन
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हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं
जिगर मुरादाबादी
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