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Arghwan Rabbhi Shayari

है इक तमीज़ कि बाहर निकल नहीं सकता,
तुम्हारा हाथ पकड़ कर मैं चल नहीं सकता

अरग़वान
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बदल गया जो ज़माने की आज़माइश से,
मिरे अज़ीज़ ! वो दुनिया बदल नहीं सकता

अरग़वान

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बदल के शाम भी साया निकल नहीं सकती,
उधर जो लाश पड़ी है वो चल नहीं सकती

अरग़वान
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बहुत दिनों से परेशाँ हूँ मैं सियासत में,
फ़क़त यक़ीन से शायद बदल नहीं सकती

अरग़वान
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फूल से हाथ मिलाने वाले,
याद आएँगे भुलाने वाले

अरग़वान
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हम नहीं ख़ुद को बचाने वाले,
अबकी आएँगे ज़माने वाले

अरग़वान
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उर्दू के 150 फ़ेमस शेर

लाश निकलेगी मिरे सीने से,
लेके जाएँगे जलाने वाले

अरग़वान
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यहाँ तलक तो अकेला ही आ गया हूँ मैं,
यहाँ से रास्ता मुश्किल है, तुम भी आ जाओ

अरग़वान
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तुम अपने इश्क़ पे मरते हो और दुनिया में,
हज़ार लोग तड़पते हैं ज़िन्दगी के लिए

अरग़वान

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जी रहे हैं तो करिश्मा होगा
लोग कहते थे कि मरना होगा

अरग़वान
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तितलियों का सफ़र ख़ुदा जाने,
रँग उड़ते हैं, ख़्वाब चलते हैं

अरग़वान
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सर धुनो गर तो बात फैले है,
सर जो खींचो तो सर निकलते हैं

अरग़वान
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गो एक और दफ़’अ तुझको चाह सकते हैं
पुराने इश्क़ का वादा तो कर नहीं सकते

अरग़वान
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वक़्त ठहरा हुआ मुक़द्दर है,
चल रहा है तो चल रहा हूँ मैं

अरग़वान

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जवाँ दरख़्त निगाहों से देखता है मुझे,
वो जानता भी नहीं है कि जानता है मुझे

अरग़वान
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मैं उसके सामने तन्हा खड़ा हुआ हूँ, मगर,
वो मेरे सामने यूँ है कि ढूँढता है मुझे

अरग़वान
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साँस जाती है साँस आती है
ज़िन्दगी मौत को हराती है

अरग़वान
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मैं जो हूँ गर, निकाल दे कोई,
ख़ुद के होने का हाल दे कोई

अरग़वान
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इस ज़माने की क़ैद से बाहर
मुझको पिंजड़े में डाल दे कोई

अरग़वान
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ख़ुदा जाने किसी लम्हे में यूँ ही,
मैं मिट्टी में कोई इंसां तलाशूँ

अरग़वान
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तू वही शख्स़ है जो तन्हा था
क्या तिरी ज़िन्दगी का मा’नी है

अरग़वान
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सोचता हूँ मैं सख्त़ सहरा में
ज़िन्दगी दश्त है कि पानी है ?

अरग़वान
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अब कहीं जाके इत्मिनान मिला,
मुझको पहले सा अरग़वान मिला

अरग़वान
नौजवानों को पसन्द आने वाली शायरी
Arghwan Rabbhi Shayari

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