Akhbaar Shayari ~~
अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी
अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते
महबूब ख़िज़ां (Mahboob KhizaaN)
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सुर्ख़ियाँ ख़ून में डूबी हैं सब अख़बारों की
आज के दिन कोई अख़बार न देखा जाए
मख़मूर सईदी (Makhmoor Saeedi)
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अर्से से इस दयार की कोई ख़बर नहीं
मोहलत मिले तो आज का अख़बार देख लें
आशुफ़्ता चंगेज़ी (Aashufta Changezi)
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खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
अकबर इलाहाबादी (Akbar Ilahabadi)
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रात-भर सोचा किए और सुब्ह-दम अख़बार में
अपने हाथों अपने मरने की ख़बर देखा किए
मुहम्मद अल्वी (Muhammad Alvi)
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हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है
कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना
अदा जाफ़री (Ada Jafri)
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उर्दू की बेहतरीन ग़ज़लें (रदीफ़ और क़ाफ़िए की जानकारी के साथ)
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
मुनव्वर राना (Munavvar Rana)
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तुझे शनाख़्त नहीं है मिरे लहू की क्या
मैं रोज़ सुब्ह के अख़बार से निकलता हूँ
शोएब निज़ाम (Shoeb Nizam)
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ज़रा सी चाय गिरी और दाग़ दाग़ वरक़
ये ज़िंदगी है कि अख़बार का तराशा है
आमिर सुहैल (Amir Sohail)
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प्रेरणादायक शायरी
अद्ल-गाहें तो दूर की शय हैं
क़त्ल अख़बार तक नहीं पहुँचा
साहिर लुधियानवी (Sahir Ludhianvi)
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सब की पगड़ी को हवाओं में उछाला जाए
सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए
राहत इंदौरी (Rahat Indori)
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इस वक़्त वहाँ कौन धुआँ देखने जाए
अख़बार में पढ़ लेंगे कहाँ आग लगी थी
अनवर मसूद (Anwar Masood)
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रात के लम्हात ख़ूनी दास्ताँ लिखते रहे
सुब्ह के अख़बार में हालात बेहतर हो गए
नुसरत ग्वालियारी (Nusrat Gwaliori)
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‘वसीम’ ज़हन बनाते हैं तो वही अख़बार
जो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते
वसीम बरेलवी (Waseem Barelvi)
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चाँद पर शायरी
नाख़ुदा देख रहा है कि मैं गिर्दाब में हूँ
और जो पुल पे खड़े लोग हैं अख़बार से हैं
गुलज़ार (Gulzar)
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कुछ हर्फ़ ओ सुख़न पहले तो अख़बार में आया
फिर इश्क़ मिरा कूचा ओ बाज़ार में आया
इरफ़ान सिद्दीक़ी (Irfan Siddiqui)
Akhbaar Shayari