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तूफ़ान – ख़लील जिब्रान Arabic Story in Hindi
घनी कहानी, छोटी शाखा: ख़लील जिब्रान की कहानी “तूफ़ान” का पहला भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: ख़लील जिब्रान की कहानी “तूफ़ान” का दूसरा भाग
भाग- 3

(अब तक आपने पढ़ा…. यूसूफ अल-फाख़री जिन्होंने मात्र तीस वर्ष की आयु में संसार का त्याग करके एक शांत निर्जन आश्रम में अपना बसेरा बना लिया है, उनके विषय में तरह-तरह की बातें प्रचलित हैं। फिर भी कोई उनके बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं रखता है। उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक होकर इस कहानी के सूत्रधार यूसूफ अल-फाख़री से मिलने की कोशिश करते हैं लेकिन उन्हें विफलता हाथ लगती है। किसी तरह कुछ दिन बीतने के बाद एक रोज़ घनी वर्षा और तूफ़ान में फँसने के कारण सूत्रधार यूसूफ अल-फाख़री के आश्रम में रुकते हैं। वहीं दोनों की बातचीत शुरू होती है और जब थोड़ी बातचीत चलने लगती है तो यूसूफ अल-फाख़री उसे खाना देते हैं, अच्छा खाना, मक्खन, कॉफ़ी, सिगरेट आदि देखकर सूत्रधार को अचंभा होता है। ये भाँपकर यूसूफ अल-फाख़री उसे अपने वहाँ रहने का प्रयोजन बताने लगते हैं। वो कहते हैं कि उन्होंने अकेले रहने के लिए ये जगह नहीं चुनी और न ही वो सारी चीज़ों का त्याग ही करना चाहते थे, ये बात चल निकलती है। अब आगे..)

यूसुफ साहब कहने लगे, “नहीं, मैंने एकान्तवास इसलिए नहीं अपनाया कि मैं एक संन्यासी की भाँति जीवन व्यतीत करूँ, क्योंकि प्रार्थना, जो हृदय का गीत है, चाहे सहस्त्रों की चीख-पुकार की आवाज़ से भी घिरी हो, ईश्वर के कानों तक अवश्य पहुँच जायेगी।

“एक बैरागी का जीवन बिताना तो शरीर और आत्मा को कष्ट देना है तथा इच्छाओं का गला घोंटना है। यह एक ऐसा अस्तित्व है, जिसके मैं नितान्त विरुद्ध हूँ; क्योंकि ईश्वर ने आत्माओं के मंदिर के रूप में ही शरीर का निमार्ण किया है। और हमारा यह कर्तव्य है कि उसे विश्वास को, जो परमात्मा ने हमें प्रदान किया हैं, योग्यतपूर्वक बनाये रखें। नहीं, मेरे भाई, मैंने परमार्थ के लिए एकान्तवास नहीं अपनाया, अपनाया तो केवल इसलिए कि आदमी और उसके विधान से, उसके विचारों तथा उसकी शिकायतों से उसके दु:ख और विलापों से दूर रहूँ”

“मैंने एकान्तवास इसलिए अपनाया कि उन मनुष्यों के चेहरे न देख सकूं, जो अपना विक्रय करते हैं और उसी मूल्य से ऐसी वस्तुएँ ख़रीदते हैं, जो आध्यात्मिक तथा भौतिक दोनों ही रुप उनसे भी घटिया हैं”

“मैंने एकान्तवास इसलिए ग्रहण किया कि कहीं उन स्त्रियों से मेरी भेंट न हो जाए, जो अपने ओठों पर अनेक विध मुस्कान फैलाये गर्व से घूमती रहती हैं- जबकि उनके सहस्त्रों हृदयों की गहराइयों में बस एक ही उद्देश्य विद्यमान है”

“मैंने एकान्तवास इसलिए ग्रहण किया कि मैं उन आत्म-सन्तुष्ट व्यक्तियों से बच सकूँ, जो अपने सपनों में ही ज्ञान की झलक पाकर यह विश्वास कर लेते हैं कि उन्होंने अपना लक्ष्य पा लिया”

Khaleel Jibran Ki Kahani
Arabic Story in Hindi
Kahlil Gibran

“मैं समाज से इसलिए भागा कि उनसे दूर रह सकूँ जो अपनी जागृति के समय में सत्य का आभास-मात्र पाकर संसार भर मे चिल्लाते फिरते हैं कि उन्होंने सत्य को पूर्णत: प्राप्त कर लिया है” Arabic Story in Hindi

“मैंने संसार का त्याग किया और एकांतवास को अपनाया, क्योंकि मैं ऐसे लोगों के साथ भद्रता बरतते थक गया था, जो नम्रता को एक प्रकार की कमज़ोरी, दया को एक प्रकार की कायरता तथा क्रूरता को एक प्रकार की शक्ति समझते हैं”

“मैंने एकान्तवस अपनाया, क्योंकि मेरी आत्मा उन लोगों के समागम से थक चुकी थी, जो वास्तव में इस बात पर विश्वास करते हैं कि सूर्य, चाँद और तारे उनके ख़जानों से ही उदय होते हैं और उनके बगीचों के अतिरिक्त कहीं अस्त नहीं होते। मैं उन पदलोलुपों के पास से भागा, जो लोगों की आँखों में सुनहरी धूल झोंककर और उनके कानों की अर्थ विहीन आवाज़ों से भरकर उनके सांसारिक जीवन को छिन्न- भिन्न कर देते हैं। मैंने एकान्तवास ग्रहण किया; क्योंकि मुझे तब तक कभी किसी से दया न मिली, जब तक मैंने जी-जान से उसका पूरा-पूरा मूल्य न चुका दिया।

“मैं उन धर्म-गुरुओं से अलग हुआ, जो धर्मोपदेशों के अनुकूल स्वयं जीवन नहीं बिताते, किन्तु अन्य लोगों से ऐसे आचरण की माँग करते हैं, जिसे वे स्वयं अपनाते नहीं। मैंने एकान्तवास अपनाया; क्योंकि उस महान और विकट संस्था से ही मैं विमुख था, जिसे लोग सभ्यता कहते हैं और जो मनुष्य जाति की अविच्छिन्न दुर्गति पर एक सुरुप दानवता के रुप में छाई हुई है”

“मैं एकान्तवासी इसलिए बना कि इसी में आत्मा के लिए, हृदय के लिए तथा शरीर के लिए पूर्ण जीवन है। अपने इस एकान्तवास में मैंने वह मनोहर देश ढूँढ निकाला है, जहाँ सूर्य का प्रकाश विश्राम करता है: जहाँ पुष्प अपनी सुगन्ध को अपने मुक्त श्वासों द्वारा शून्य में बिखेरते, हैं, और जहां सरिताएँ गाती हुई सागर को जाती हैं। मैंने ऐसे पहाड़ों को खोज निकाला है, जहां मैं स्वच्छ वसन्त को जागते हुए देखता हूँ और ग्रीष्म की रंगीन अभिलाषाओं, शरद के वैभवपूर्ण गीतों और शीत के सुन्दर रहस्यों को पाता हूं। ईश्वर के राज्य के इस दूर कोने में मैं इसलिए आया हूं। क्योंकि विश्व के रहस्यों को जानने और प्रभु के सिंहासन के निकट पहुंचने के लिए भी तो मैं भूखा हूँ ।”

यूसुफ साहब ने तब एक लम्बी सांस ली, मानों किसी भारी बोझ से अब मुक्ति पा गये हों। उनके नेत्र अनोखी तथा जादूभरी किरणों से सतेज हो उठे और उनके उज्जवल चेहरे पर गर्व, संकल्प संतोष झलकने लगा।

कुछ मिनट ऐसे ही गुजर गये। मैं उन्हें गौर से देखता रहा और जो मेरे लिए अभी तक अज्ञात था उस पर से आवरण हटता तब मैंने उनसे कहा, “निस्संदेह आपने जो कुछ कहा, उसमें अधिकांश सही है; किंतु लक्षणो को देखकर सामाजिक रोगों का सही अनुमान लगाने से यह प्रमाणित हो गया है कि आप एक अच्छे चिकित्सक हैं; मैं समझता हूं कि रोगी समाज को आज ऐसे चिकित्सक की अति आवश्यकता है, जो उसे रोग से मुक्त करे अथवा मृत्यु प्रदान करे। यह पीड़ित संसार सबसे दया की भीख चाहता है। क्या यह दयापूर्ण तथा न्यायोचित होगा कि आप एक पीड़ित रोगी को छोड़ जाएँ और उसे अपने उपकार से वंचित रहने दें?”

क्रमशः
घनी कहानी, छोटी शाखा: ख़लील जिब्रान की कहानी “तूफ़ान” का चौथा भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: ख़लील जिब्रान की कहानी “तूफ़ान” का अंतिम भाग
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