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तूफ़ान – ख़लील जिब्रान Kahlil Gibran Tufan
घनी कहानी, छोटी शाखा: ख़लील जिब्रान की कहानी “तूफ़ान” का पहला भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: ख़लील जिब्रान की कहानी “तूफ़ान” का दूसरा भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: ख़लील जिब्रान की कहानी “तूफ़ान” का तीसरा भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: ख़लील जिब्रान की कहानी “तूफ़ान” का चौथा भाग
भाग- 5

(अब तक आपने पढ़ा… तीस वर्ष की आयु वाले यूसूफ अल-फाख़री दुनिया का त्याग करके एक निर्जन शांत आश्रम में निवास करते हैं। उनके बारे में अच्छी तरह किसी को नहीं पता लेकिन सब अपने- अपने अंदाज़े लगाते हैं कोई उन्हें प्रेम में हारा हुआ प्रेमी मानता है तो कोई कवि; लेकिन सब एक बात में सहमत हैं और वो ये कि तीस वर्ष की आयु में इस तरह संसार त्याग देना पागलपन है। कहानी के सूत्रधार को भी यूसूफ अल-फाख़री के जीवन में बहुत ज़्यादा रुचि है। उन्होंने कई बार कोशिश भी की लेकिन हर बार उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। इन कोशिशों के दो वर्ष पश्चात आख़िर उन्हें एक मौक़ा मिलता है, जब वो तूफ़ान में फँसने के कारण यूसूफ अल-फाख़री के आश्रम में शरण लेते हैं। दोनों की बातचीत शुरू होती है और सूत्रधार उनके संसार त्यागने के रहस्य को जानने की कोशिश करता है, इसी बीच उसकी उत्सुकता और बढ़ जाती है जब यूसूफ अल-फाख़री के खानपान और रहनसहन में वो ऐसी वस्तुएँ देखता है जो किसी भी संसार को त्यागे हुए व्यक्ति के जीवन में कल्पना भी नहीं की जाती। यूसूफ अल-फाख़री की बातों से उसे पता चलता है कि वो समाज के विषय में गहन जानकारी रखने वाले व्यक्ति हैं। सूत्रधार उन्हें समाज में चलकर समाज के लोगों के लिए अच्छा काम करने की बात कहता है। लेकिन वो उसे कहते हैं कि हर इंसान किसी न किसी चीज़ का ग़ुलाम है और जब तक वो ख़ुद न चाहे उसे कोई शांति हासिल नहीं हो सकती। उनकी बातें आगे भी चलती हैं। अब आगे…)

क्षण भर उन्होंने मुझे देखा और तब अपनी आँखें मीच लीं। अपने हाथ छाती पर रखे। उनका चेहरा तमतमाने लगा और विश्वसनीय तथा गंभीर आवाज में बोले, “वह है आत्मा की जागृति, वह है हृदय की आन्तरिक गहराइयों का उद्बोधन। वह सब पर छा जानेवाली एक महाप्रतापी शक्ति है, जो मनुष्य-चेतना में कभी भी प्रबुद्ध होती है और उसकी आँखें खोल देती है। तब उस महान् संगीत की उज्ज्वल धारा के बीच, जिसे अनंत प्रकाश घेरे रहता है, वह जीवन दिखाई पड़ता है, जिससे लगा हुआ मनुष्य सुन्दरता के स्तम्भ के समान आकाश और पृथ्वी के बीच खड़ा रहता है”

Khaleel Jibran Ki Kahani Arabic Story in Hindi Arabic Short Story in Hindi
Kahlil Gibran Tufan
Kahlil Gibran

“वह एक ऐसी ज्वाला है, जो आत्मा में अचानक सुलग उठती है और हृदय को तपाकर पवित्र बना देती है, पृथ्वी पर उतर आती है और विस्तृत आकाश में चक्कर लगाने लगती है” Kahlil Gibran Tufan

“वह एक दया है, जो मनुष्य के हृदय को आ घेरती है, ताकि उसकी प्रेरणा से मनुष्य उन सबको आवाक् बनाकर अमान्य कर दे, जो उसका विरोध करते है और जो उसके महान् अर्थ समझने में असमर्थ रहते हैं, उनके विरुद्ध वह शक्ति विद्रोह पैदा करती है”

“वह एक रहस्यमय हाथ है, जिसने मेरे नेत्रो के आवरण को तभी हटा दिया, जब मैं समाज का सदस्य बना हुआ अपने परिवार, मित्रों तथा हितैषियों के बीच रहा करता था।

“कई बार मैं विस्मत हुआ और मन-ही-मन कहता रहा, -‘क्या है यह सृष्टि और क्यों मैं उन लोगों से भिन्न हूँ, जो मुझे देखते हैं? मैं उन्हें कैसे जानता हूँ, उन्हें मैं कहाँ मिला और क्यों मैं उनके बीच रह रहा हूँ? क्या मैं उन लोगों में एक अजनबी हूँ। अथवा वे ही इस प्रकार अपरिचित है-ऐसे संसार के लिए जो दिव्य चेतना से निर्मित है और जिसका मुझे पर पूर्ण विश्वास है?”

अचानक वे चुप हो गये, जैसे कोई भूली बात स्मरण कर रहें हो, जिसे वह प्रकट नहीं करना चाहते। तब उन्होंने अपनी बाहें फैला दीं और फुसफुसाए, “आज से चार वर्ष पूर्व, जब मैंने संसार का त्याग किया, मेरे साथ यही तो हुआ था। इस निर्जन स्थान में मैं इसलिए आया कि जागृत चेतना में रह सकूँ और समनयस्कता और सौग्य नीरवता के आनंद को भोग सकूँ”

गहन अंधकर की ओर घूरते हुए वे द्वार की ओर बढ़े, मानों तूफ़ान से कुछ कहना चाहते हो, पर वे प्रकम्पित स्वर में बोले, “यह आत्मा के भीतर की जागृति है। जो इसे जानता है, वह इसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता, और जो नहीं जानता, वह अस्तित्व को विवश करनेवाले किंतु सुंदर रहस्यों के बारे में कभी ने सोच सकेगी”

एक घंटा बीत गया, यूसुफ –अल फाख़री कमरे में एक कोने से दूसरे कोने तक लम्बे डग भरते घूम रहे थे। वे कभी-कभी रुककर तूफ़ान के कारण अत्यधिक भूरे आकाश को ताकने लगते थे। मैं ख़ामोश ही बना रहा और उनके एकांतवासी जीवन की दु:ख-सुख की मिली-जुली तान पर सोचता रहा।

कुछ देर बाद रात्रि होने पर वे मेरे पास आये और देर तक मेरे चेहरे को घूरते रहे, मानों उस मनुष्य के चित्र को अपने मानस-पट पर अंकिट कर लेना सोच हो, जिसकें सम्मुख उन्होंने अपने जीवन के गूढ रहस्यों का उद्धघाटन कर दिया हो। विचारो की व्याकुलता से मेरा मन भारी हो गया था। और तूफ़ान की धुन्ध के कारण मेरी आँख बोझिल हो चली थीं।

तब उन्होंने शांतिपूर्वक कहा, “मैं अब रात भर तूफ़ान में घूमने जा रहा हूँ, ताकि प्रकृति के भावाभिव्यंजन की समीपता भाँप सकूँ। यह मेरा अभ्यास है, जिसका आनंद मैं अधिकतर शरद तथा शीत में लेता हूँ। लो, यह थोड़ी मदिरा है और यह तम्बाकू। कृपा कर आज रात भर के लिए मेरा घर अपना ही समझो।” Kahlil Gibran Tufan

उन्होंने अपने आपको एक काले लबादे से ढाँक लिया और मुस्कराकर बोले, “मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ कि सुबह जब तुम जाओ तो बिना आज्ञा के प्रवेश करनेवालों के लिए मेरे द्वार बन्द करते जाना: क्योंकि मेरा कार्यक्रम है कि मैं सारा दिन पवित्र देवदारो के वन में घूमते बिताऊँगा”

तब वे द्वार की ओर बढ़े और एक लम्बी छड़ी साथ लेकर बोले, “यदि तूफ़ान फिर कभी तुम्हें अचानक इस जगह के आपपास घूमते हुए आ घेरे, तो इस आश्रम में आश्रय लेने में संकोच न करना। मुझे आशा है कि अब तुम तूफ़ान से प्रेम करना सीखोगे, भयभीत होना नही! सलाम, मेरे भाई!”

उन्होंने द्वार खोला और अन्धकार में अपने सिर को ऊपर उठाये बाहर निकल गये। यह देखने के लिए कि वे कौन-से रास्ते से गये हैं, मैं ड्योढ़ी पर ही खड़ा रहा, किंतु शीघ्र ही वे मेरी आँखों से ओझल हो गये। कुछ मिनटों तक मैं घाटी के कंकड़ –पत्थरो पर उनकी पदचाप सुनता रहा।

गहन विचारों की उस रात्रि के पश्चात जब सुबह हुई तब तूफ़ान जा चुका था और आसमान निर्मल हो गया था। सूर्य की गर्म किरणों से मैदान और घाटियाँ तमतमा रही थीं। नगर को लौटते समय मैं उस आत्मिक जागृति के सम्बन्ध में सोचता जाता था, जिसके लिए यूसुफ-अल-फाख़री ने इतना कुछ कहा था। वह जागृति मेरे अंग-अंग में व्याप रही थी। मैंने सोचा कि मेरा यह स्फरण अवश्य ही प्रकट होना चाहिए। जब मैं कुछ शान्त हुआ तो मैंने देखा कि मेरे चारों ओर पूर्णता तथा सुन्दरता बसी हुई है।

जैसे ही मैं उन चीखते-पुकारते नगर के लोगों के पास पहुंचा मैंने उनकी आवाज़ों को सुना और उनके कार्यो को देखा, तो मैं रूक गया और अपने अन्त:करण से बोला, “हाँ आत्मबोध मनुष्य के जीवन में अति आवश्यक है और यही मानव-जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। क्या स्वयं सभ्यता समस्त दु:खपूर्ण बहिरंग में आत्मिक जागृति के लिए एक महान ध्येय नहीं है? तब हम किस प्रकार एक ऐसे पदार्थ के अस्तित्व से इनकार कर सकते हैं, जिसका अस्तित्व ही अभीप्सित योग्यता की समानता का पक्का प्रमाण है? वर्तमान सभ्यता चाहे नाशकारी प्रयोजन ही रखती हो, किंतु ईश्वरीय विधान ने उस प्रयोजन के लिए एक ऐसी सीढ़ी प्रदान की है, जो स्वतन्त्र अस्तित्व की ओर ले जाती है”

मैंने फिर कभी यूसुफ-अल फाख़री को नहीं देखा, क्योंकि मेरे अपने प्रयत्नों के कारण, जिनके द्वारा मैं सभ्यता की बुराइयों को दूर करना चाहता था, उसी शरद ऋतु के अन्त में मुझे उत्तरी लेबनान से देश निकाला दे दिया गया और मुझे एक ऐसे दूर देश में प्रवासी का जीवन बिताना पड़ा है, जहाँ के तूफ़ान बहुत कमज़ोर हैं और उस देश में एक आश्रमवासी का-सा जीवन बिताना एक अच्छा-ख़ासा पागलपन हैं, क्योंकि यहाँ का समाज भी बीमार है।

समाप्त
Kahlil Gibran Tufan

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