नौजवानों को पसन्द आने वाली शायरी

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ख़ुशी से काँप रही थीं ये उँगलियाँ इतनी
डिलीट हो गया इक शख़्स सेव करने में

फ़हमी बदायूनी
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मैंने उस की तरफ़ से ख़त लिक्खा
और अपने पते पे भेज दिया

फ़हमी बदायूनी
अहमद सलमान की शायरी
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अबके हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

अहमद फ़राज़

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मैं तुझसे मिलने समय से पहले पहुँच गया था
सो तेरे घर के क़रीब आ कर भटक रहा हूँ

पल्लव मिश्रा
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मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इससे ज़ियादा मैं तिरा हो नहीं सकता

मुनव्वर राना
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मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा

अमीर क़ज़लबाश

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किसी रईस की महफ़िल का ज़िक्र ही क्या है
ख़ुदा के घर भी न जाएँगे बिन बुलाए हुए

अमीर मीनाई
तहज़ीब हाफ़ी: आज के दौर की शायरी का चमकता सितारा
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बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा

शौक़ बहराइची
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तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया

तहज़ीब हाफ़ी

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कौन इस घर की देख-भाल करे
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है

जौन एलिया

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दिल की बेताबी नहीं ठहरने देती है मुझे
दिन कहीं रात कहीं सुब्ह कहीं शाम कहीं

नज़ीर अकबराबादी
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कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए

रहमान फ़ारिस
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अब उनको याद कर के रो रहे हैं
बिछड़ते वक़्त रोना चाहिए था

फ़हमी बदायूनी

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पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा
कितना आसान था इलाज मिरा

फ़हमी बदायूनी

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टहलते फिर रहे हैं सारे घर में
तिरी ख़ाली जगह को भर रहे हैं

फ़हमी बदायूनी

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तुम्हारी शक्ल किसी शक्ल से मिलाते हुए
मैं खो गया हूँ नया रास्ता बनाते हुए

आशू मिश्रा

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याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा
कल रस्ते में उसने हमको पहचाना तो होगा

जावेद अख़्तर

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तब हम दोनों वक़्त चुरा कर लाते थे
अब मिलते हैं जब भी फ़ुर्सत होती है

जावेद अख़्तर

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तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद
निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो

जावेद अख़्तर

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अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला
जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा

महशर बदायूँनी

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हमको उनसे वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है

मिर्ज़ा ग़ालिब

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ज़िया मज़कूर की शायरी

तुमको अच्छे लगे तो तुम रख लो
फूल तोड़े थे बेचने के लिए

ज़िया मज़कूर

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