fbpx
Romantic Shayari

गुप्तकथा- गोपालराम गहमरी  Gopalram Gahmari Kahani Guptkatha

घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का पहला भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का दूसरा भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का तीसरा भाग
भाग-4

(अब तक आपने पढ़ा..अपने इलाक़े के जाने-माने दयालु और दीन-दुखियों की मदद करने वाले चिराग़ अली के बेटे हैदर की दोस्ती एक जासूस से है। कलकत्ते से लौटे जासूस के पास आकर हैदर अपनी परेशानी बता रहा है। हैदर जासूस को बताता है कि उसके पिता के पास एक दिन इब्राहिम नाम का एक आदमी आया और उसके आने के बाद से चिराग़ अली का व्यवहार बदल गया, उन्होंने इब्राहिम को अपने घर में रहने की जगह दे दी थी और इब्राहिम सभी पर मालिकाना हक़ जताता। नौकरों से ज़्यादती करता और उन्हें बात-बेबात डाँटता, चिराग़ अली फिर भी उसे कुछ न कहते, धीरे-धीरे कई नौकरों ने सालों की नौकरी छोड़ दी। इब्राहिम इतने में भी नहीं सुधरा और एक दिन हैदर से ही उलझ गया और उसे चिलम भरने के लिए कहता है, हैदर के मना करने पर वो उससे उलझता है और हैदर ग़ुस्से में उसकी पिटाई कर देता है। ये बात पता चलते ही चिराग़ अली, हैदर को बुलाकर इब्राहिम के सामने ही उससे माफ़ी माँगने कहते हैं लेकिन हैदर कहता है कि दंड दोनों को मिलना चाहिए। उसके पिता बहुत नाराज़ होते हैं लेकिन हैदर भी मानता नहीं बल्कि इब्राहिम को और भी मारने की बात कहता है और पिता के ग़ुस्सा होने पर वहाँ से चला जाता है। लेकिन दरवाज़े की ओट से उनकी बातें सुनता है। इब्राहिम चिराग़ अली को धमकी देकर उसी रोज़ घर से चला जाता है। चिराग़ अली इस घटना के बाद से ही उदास से रहने लगते हैं और उनका खाना-पीना भी कम हो जाता है, चेहरा स्याह पड़ने लगता है। हैदर उस दिन के बाद से उनके सामने तो नहीं जाता है पर छुपकर उनकी देखभाल पर पूरी निगरानी रखता है, साथ ही नौकरों से उनका हाल भी लेता है। ऐसे में ही एक रोज़ चिराग़ अली के लिए एक चिट्ठी आती है, जिसे पढ़ते हुए चिराग़ अली के चेहरे पर उत्साह की झलक दिखती है। अब आगे…)

चिट्ठी पढ़ने के पीछे पिताजी का चेहरा बदल गया। उनके कालिमामय बदन पर हँसी की उज्जवल रेखा दीख पड़ी। बहुत दिनों की प्रसन्नता जो उनके बदन से एक तरह से दूर हो गई थी, उस दिन फिर मेरे देखने में आई।

चिट्ठी के पढ़ने के पीछे पिताजी को खुश होते देख मुझे भी बडा आनंद हुआ। मैंने समझा कि पिताजी ने चिट्ठी में कुछ ऐसा शुभ समाचार पाया है जिससे उनकी चिंता दूर हो गई है। किंतु पीछे जब देखा कि उनका ख़ुश होना बहुत थोड़ी देर के लिए था तब मन में बहुत डरा। मुझे मालूम हुआ कि बुझता हुआ चिराग जैसे अंत में एक बार चमक उठता है। मरते समय मनुष्य जैसे एक बार थोड़ी देर को सब रोगों से छुटकारा पा जाता है, पिताजी का खुश होना भी ठीक वैसा ही था।

पिताजी उस चिट्ठी को पढ़ते ही प्रसन्न होकर उठे और एक नौकर को बुलाकर हुक्म दिया कि देखो बीमारी से कई अठवाड़े बीते मेरा नहाना खाना ठीक नहीं होता, आज स्नान भोजन का ठीक-ठीक प्रबंध करना। मेरा शरीर आज भला चंगा है। हुक्म पाकर नौकर ने ऐसा ही किया। उस दिन खुशी मन से पिताजी ने आहार भी अच्छी तरह किया। आहार करने के पीछे कुछ समय लेट जाने का उनको अभ्यास था लेकिन उस दिन उसका उल्टा देखकर मुझे बड़ी चिंता हुई।

पिताजी ने आहार के पीछे ही बैठक में आकर चिट्ठी लिखना शुरू किया। इस बात से मुझे और चिंता हुई। पिताजी सदा चिट्ठी लिखने का काम नौकरों को देते थे। उस दिन पिताजी को अपने हाथ से चिट्ठी लिखते मैंने पहले पहल देखा। चिट्ठी लिखना पिताजी ने भोजन करने के बाद ही शुरू किया था किंतु अंत कब किया सो मुझे मालूम नहीं। रात के दो बजे तक जब मैंने देखा कि उनका चिट्ठी लिखना ख़त्म नहीं हुआ तब मैं सो गया फिर कब उनकी चिट्ठी पूरी हुई सो मुझे मालूम नहीं हुआ। Gopalram Gahmari Kahani Guptkatha

दूसरे दिन जब मैं पलंग से उठा तो देखा कि पिताजी सो रहे हैं। सदा सवेरे जब वह पलंग से उठते थे उससे दो तीन घंटे बाद भी नहीं उठे तब एक नौकर ने उनको जगाना चाहा। पिताजी ने उसको कहा कि –

“मेरा शरीर अच्छा नहीं है, न मुझे सेज से उठने की ताक़त है”

‘नौकर के मुँह से ऐसी बात सुनकर मुझसे अब रहा नहीं गया। जिस दिन इब्राहिम भाई को मैंने जूते लगाए थे उसी दिन से मैं पिताजी के सामने नहीं जाता था, लेकिन जब पिताजी की वैसी बीमारी सुनी तो नहीं रहा गया। उसी दम उनके कमरे में जाकर सेज पर एक कोने में बैठा। उनके बदन पर हाथ फेरकर देखा तो सारा शरीर आग हो रहा था। मैंने पिताजी से पूछा कि आपको क्या हुआ है? शरीर कैसा है?”

मेरी बात सुनकर पिताजी बोले – “बेटा! मुझे क्या हुआ है सो मैं ख़ुद नहीं जान सकता तुम्हें क्या बतलाऊँगा। लेकिन इतना मालूम पड़ता है कि मुझे बड़े जोर का ज्वर हुआ है और इस ज्वर से मैं अब बच नहीं सकूँगा। इसी के हाथ मेरा काल है”

उनकी बात सुनकर मैंने कहा – “पिताजी! ज्वर तो बहुत लोगों को हुआ करता है। आप इससे इतना क्यों डरते हैं? फिर कलकत्ते में डाक्टर वैद्यों की भी कमी नहीं है। उनकी दवा से आप ठीक हो जाएँगे”

मेरी बात सुनकर पिताजी बोले – “जब मैं ख़ूब जानता हूँ कि इस बार मेरा आराम होना नहीं लिखा है तब बेकाम रुपया फेंकने से क्या लाभ होगा?”

मैंने उनके जवाब में कहा – “रुपया है किसके वास्ते। यह सब अपार धन किसका है। जिंदगी भर कमाई करके आपने यह धन जमा किया फिर आप ही के लिए यह धन नहीं खर्च किया जाए तो इस धन से क्या होगा? किस काम में लगाया जाएगा। आप चाहे मानें या न मानें मैं इसमें अब देर नहीं करूँगा। आपका शरीर सुधारने और आपको भला करने के लिए जितना रुपया लगेगा लगाऊँगा। इसमें आपके मना करने से मैं नहीं मानूँगा। मैं अभी जाकर उसका उपाय करता हूँ” इतना कहकर वहाँ से चला गया। और उनकी सेवा सहाय के लिए जितने दास-दासी थे उनसे और अधिक नौकर-नौकरानी लगा दिए। अपने पुराने और विश्वासी कर्मचारीगणों से सलाह लेकर कलकत्ते के चतुर अनुभवी नामी डाक्टर वैद्यों को बुलाकर पिताजी के इलाज में लगाए। लेकिन सब कुछ होने पर भी दिनोंदिन पिताजी की बीमारी बढ़ने लगी।

वैद्य और डाक्टरों ने जितना ही सावधानी से दवा की उतना ही रोग बढ़ता गया। किसी दवा से लाभ नहीं हुआ। सबने उल्टा फल दिखलाया। इस शहर में अब ऐसे कोई नामी डाक्टर नहीं रहे जिन्होंने पिताजी को एक बार नहीं देखा हो। इस समय उनकी दशा बहुत ख़राब है। अब उनके जीने का कुछ भी भरोसा नहीं है। उनको आप भी मरती बार चलकर देख लें तो अच्छा हो। आप अभी मेरे साथ चलें तो बेहतर है।

क्रमशः

Gopalram Gahmari Kahani Guptkatha

घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का पाँचवां भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का छटवाँ भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का सातवाँ भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का आठवाँ भाग
घनी कहानी, छोटी शाखा: गोपालराम गहमरी की कहानी “गुप्तकथा” का अंतिम भाग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *