लन्दन सन 1922 के क़रीब
(नॉकर बॉय या नॉकर गर्ल की नौकरी तब थी जब अलार्म क्लॉक भरोसेमंद नहीं होते थे। इनका काम लोगों को नींद से जगाना था। खिड़की पर डंडा खटखटाकर ये तब तक जगाते जब तक कोई जाग न जाए।)
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खिड़की पर ज़ोरदार आवाज़ हुई और उसकी नींद खुल गयी। कुछ देर बाद फिर वही खटखटाहट…
“कौन है यार…” वो बड़बड़ाते हुए उठी और खिड़की के पास गई।
“ये क्या डंडे से खटखटा रहे हो?” उसने दूसरी मंज़िल से नीचे झाँका।
“मैडम, मैं नॉकर बॉय हूँ। आपके पति ने मुझे जगाने को कहा था।”
“क्या पागलों जैसी बात कर रहे हो, मेरी ना तो शादी हुई है ना ही मेरा कोई पति है।” सफ़ेद शर्ट पहने लड़की ने झुंझलाहट और ग़ुस्से के साथ कहा।
“पर कल तो आपके पति ने…”
“तुम पागल हो क्या? और लंदन में भी सब तुम्हारे जैसे पागल भरे हैं क्या?”
“मैडम, लंदन को कुछ मत कहिए… अगर पति नहीं है, तो शायद बॉयफ्रेंड हो?”
“Excuse me! ना पति है और ना ही बॉयफ्रेंड… और अब अगर एक शब्द भी और बोला ना तो सीढ़ियाँ उतरने में देर नहीं लगेगी!”
“तो… ये एडवर्ड का घर नहीं है?”
“नहीं! ये किसी एडवर्ड का घर नहीं है ये मेरा घर है!”
इतने में किसी राहगीर ने इस बहस के बीच में दख़ल दिया,”वो सामने है एडवर्ड का घर।”
अपनी ग़लती का एहसास होते ही उसने खिड़की की ओर देखकर माफ़ी मांगी।
“ओह! माफ कीजिए… ग़लती हो गई।”
“बदतमीज़…” वो बड़बड़ाती हुई किचन में पानी पीने चली गई।
कुछ देर बाद उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई। रंगीन क़ालीन पर ख़ूबसूरत पाँव आगे बढ़ाते हुए वो दरवाज़े पर पहुँची, आहिस्ता से दरवाज़ा खोला…
नीचे वाला लड़का उसके दरवाज़े पर आ गया था, और कुछ शर्म और कुछ शरारत के साथ उसने एक फूल उसकी ओर बढ़ाया। “मैडम सॉरी, थोड़ी बदतमीज़ी हो गई… आपके लिए ये फूल।”
“अरे…मैं तुमसे क्यूँ लूँ ये फूल और ऐसे भी मुझे फूल पेड़ पर ही अच्छे लगते हैं।”
“मुझे भी… पर अब पेड़ तो लाना मुश्किल है ना”
“तुम वाक़ई बदतमीज़ हो… अच्छा ठीक है, रख दो।”
“शुक्रिया मैडम… आपका नाम जान सकता हूँ?”
“नहीं… अब जाओ और सोने दो।”
“गुड बाय…”
उसने दरवाज़ा धीरे से बंद कर दिया। लेकिन कुछ ही सेकंड में उसकी नज़र पास रखे मोगरे के फूल पर पड़ी। उसने उसे उठाया, आंखें बंद कीं… और बस एक पल में मानो सारी नींद, सारे ग़ुस्से की जगह कोई मीठी सी ताज़गी भर दी।
उसने तुरंत खिड़की खोली… नीचे वही लड़का डंडा कंधे पर टाँगे जा रहा था।
“सुनो!” उसने पुकारा।
“जी, मैडम?”
“मेरा नाम… सोफ़ी है।”
लड़का मुस्कुराया, उसने एक पल के लिए खिड़की से झाँकती सोफ़ी को ध्यान से देखा..
वो मुड़कर जाने लगा…
“सुनो…” इस बार उसकी आवाज़ में एक अलग नरमी थी।
“तुम्हारा नाम?”
“एडवर्ड।”
सोफ़ी की आँखें चमकने लगीं, कुछ देर दोनों एक दूसरे को देखते रहे, दोनों के चेहरे पे मुस्कान आ गई।
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