14 साल की उम्र से शुरू’अ हुआ ज़हरा निगाह की शा’इरी का सफ़र…

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Zehra Nigah Shayari

“हिकायत ए ग़म ए दुनिया तवील थी कह दी,
हिकायत ए ग़म ए दिल मुख़्तसर है क्या कहिये”

ज़हरा निगाह का ये शे’र अपने आप में बहुत कुछ कह देता है. कहते हैं कि शा’इरा/शा’इर जो बातें शा’इरी के ज़रिये कहती/कहता है वो असल में कहीं ना कहीं ज़िन्दगी की उधेड़बुन का हिस्सा होता है. कुछ ऐसी बातें जो हम कह नहीं पाते वो हम लिखते हैं और कुछ इस तरह से कि बात अपनी होके भी अपनी ना लगे. ज़हरा निगाह की शा’इरी कुछ इसी तरह से है, इंसान के मासूम जज़्बात को जितनी मासूमियत से ज़हरा अपनी शा’इरी में शामिल करती हैं वो इस दौर के कम ही शा’इर कर पाते हैं.

ज़हरा निगाह का जन्म 14 मई 1937 को हैदराबाद में हुआ था. ज़हरा के पिता सिविल सर्वेंट थे और उन्हें शा’इरी का ख़ूब शौक़ था. 1922 के दौर में उनके घर में इक़बाल, मख़्दूम, फै़ज़ और मजाज़ जैसे शा’इरों की बैठकें लगती थीं, अदब पर ख़ूब चर्चा हुआ करती थी. वो कहती हैं कि academics, शा’इरी और संगीत ने मेरे घर को पूरा किया था. ज़हरा ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनकी माँ संगीत सीखा करती थीं और उनके उस्ताद उन्हें पर्दे के पीछे से संगीत सिखाते थे. फ्रंटलाइन मैगज़ीन के मुताबिक़ वो कहती हैं कि उनके नाना बच्चों से कहते थे कि हाली और इक़बाल के अश’आर का सही अर्थ, उच्चारण और बोलने का तरीक़ा याद करो. उन्होंने बताया कि उनके नाना कहते थे,”अगर तुम इक़बाल की ‘जवाब ए शिकवा’ या ‘मुसद्दस ए हाली’ याद कर लोगे तो तुम्हें 5 रूपये मिलेंगे’ और हम सारी ताक़त से उन्हें याद करने लगते थे. ज़हरा ने बताया कि जब वो चार साल की थीं तभी उनका तलफ़्फु़ज़ ठीक हो गया था और 14 की उम्र तक तो उन्होंने कई शा’इरों की उत्कृष्ट रचनाओं को याद कर लिया था.

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मिर्ज़ा ग़ालिब की रुबाइयाँ…

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मिर्ज़ा ग़ालिब (27 दिसंबर, 1796 – 15 फ़रवरी 1869) (Ghalib Shayari Rubai) उर्दू के सबसे महान शा’इरों में शुमार किये जाते हैं.उनकी ग़ज़लें तो सभी जानते हैं कि कितनी मक़बूल हैं लेकिन उनकी रुबाइयाँ भी उतनी ही मज़ेदार और प्यारी हैं. 1. आताशबाज़ी है जैसे शग़्ले-अत्फ़ाल है सोज़े-जिगर का भी इसी तौर का हाल था … Read more

“एक लेखक क़लम तभी उठाता है जब उसकी समझ को आघात पहुँचता है”

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Saadat Hasan Manto Biography ~ आज एक मेसेज मेरे पास आया, उस मेसेज में ये बताने की कोशिश की गयी है कि उर्दू के मशहूर कहानीकार मंटो की पैदाइश लोग भूल गए हैं. गोया ये बात सच भी है लेकिन शायद नहीं भी है. ब-तारीख़ हम भूल भी गए हों लेकिन मंटो हमारे आस पास ही है, मेरे आपके, हम सबके अन्दर है. मंटो की शख्सियत के ख़त्म होने का दावा कोई नहीं कर सकता, वो ज़िंदा है… मंटो ज़िंदा है.. !

उर्दू के मशहूर अफ़साना-निगार सआदत हसन मंटो का जन्म आज ही के रोज़ हुआ था. उर्दू कहानीकारों में मंटो से बड़ा नाम कोई नहीं है. सआदत हसन मंटो की पैदाइश 11 मई 1912 को लुधियाना ज़िले के समराला शहर में हुई.21 साल की उम्र में उनकी मुलाक़ात अब्दुल बारी से हो गयी, इस दौरान उन्होंने रूसी और फ़्रांसीसी लेखकों को पढ़ा. मुल्क के बंटवारे के बाद मंटो पाकिस्तान में जा बसे. लाहौर में उन्हें फ़ैज़, अहमद नदीम क़ासमी और नासिर काज़मी जैसे लोगों का साथ मिला. लाहौर के मशहूर पाकिस्तान टी हाउस में इन लोगों की अक्सर बैठकें होने लगीं . पाकिस्तान टी हाउस ने उस वक़्त की यादों को समेटा हुआ है.

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एक ज़मीन, दो ग़ज़लें (1): मख़दूम और फ़ैज़..

Subah Shayari Ghazal Zameen Shayari

साहित्य दुनिया की आज हम एक और सीरीज़ शुरू’अ कर रहे हैं, “एक ज़मीन दो ग़ज़लें”. Ghazal Zameen Shayari इस सीरीज़ में हम एक ही ज़मीन में कही गयीं दो ग़ज़लें आपके सामने पेश करेंगे (हालाँकि एक ज़मीन में कई ग़ज़लें हो सकती हैं). इस सीरीज़ की पहली क़िश्त में हम “मख़दूम मुहीउद्दीन और फ़ैज़ … Read more

दो शा’इर, दो ग़ज़लें सीरीज़ (12): फ़ानी बदायूँनी और राहत इन्दौरी

Famous Urdu Shayari Hum Maut Bhi Aaye to Masroor Nahin Hote

फ़ानी बदायूँनी की ग़ज़ल: हम मौत भी आए तो मसरूर नहीं होते Hum Maut Bhi Aaye to Masroor Nahin Hote हम मौत भी आए तो मसरूर नहीं होते, मजबूर-ए-ग़म इतने भी मजबूर नहीं होते दिल ही में नहीं रहते आँखों में भी रहते हो, तुम दूर भी रहते हो तो दूर नहीं होते पड़ती हैं … Read more

दो शा’इर, दो नज़्में (2): मख़दूम और फै़ज़…

Makhdoom Aur Faiz Ki Nazm Urdu Shayari Lafz Lucknow

Makhdoom Aur Faiz Ki Nazm मख़दूम मुहिउद्दीन की नज़्म: “चारागर” इक चमेली के मंडवे-तले मय-कदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर दो बदन प्यार की आग में जल गए प्यार हर्फ़-ए-वफ़ा प्यार उन का ख़ुदा प्यार उन की चिता दो बदन ओस में भीगते चाँदनी में नहाते हुए जैसे दो ताज़ा-रौ ताज़ा-दम फूल पिछले-पहर ठंडी … Read more

दो कहानीकार, दो कहानियाँ (3): ख़लील जिब्रान और सआदत हसन मंटो…

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Khalil Jibran Manto Hindi ख़लील जिब्रान की कहानी: तीन चीटियाँ एक व्यक्ति धूप में गहरी नींद में सो रहा था.तीन चींटियाँ उसकी नाक पर आकर इकट्ठी हुईं.तीनों ने अपने-अपने क़बीले की रिवायत के अनुसार एक दूसरे का अभिवादन किया और फिर खड़ी होकर बातचीत करने लगीं. पहली चींटी ने कहा, ‘मैंने इन पहाड़ों और मैदानों … Read more

उर्दू शायरी और शब्द : सागर, साग़र और जलील, ज़लील…

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Jaleel aur Zaleel सागर(ساگر) और साग़र (ساغر) दो ऐसे लफ़्ज़ हैं जिनके उच्चारण में जो अंतर है वो यूँ तो साफ़ है लेकिन अक्सर लोग इसका उच्चारण ग़लत कर जाते हैं। कुछ लोगों को दोनों लफ़्ज़ों का अर्थ भी एक ही लगता है लेकिन दोनों लफ़्ज़ों के बोलने का तरीक़ा और अर्थ दोनों ही अलग-अलग … Read more

उर्दू शायरी और शब्द : क़मर, कमर और उरूज, अरूज़..

Hindi Kahani Hairat Maryana Urdu Shayari Ke Lafz Farhat Ehsas Nazm Urdu Shayari Mein Wazn ट वाले शब्द

Urdu Shayari Ke Lafz क़मर (قمر)  और कमर (کمر)  Urdu Shayari Ke Lafz: अक्सर लोगों को कमर और क़मर एक से लगते हैं पर थोड़े से अलग हैं. दोनों शब्दों का अर्थ भी बिलकुल जुदा है.  पहला शब्द क़मर है, जिसका अर्थ होता है चाँद जबकि दूसरा शब्द कमर है, कमर का अर्थ होता है शरीर … Read more

दो शा’इर, दो नज़्में (1): परवीन शाकिर और सरदार जाफ़री…

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Parveen Shakir Sardar Jafri: साहित्य दुनिया में हम आज ‘दो शा’इर, दो नज़्में’ सीरीज़ शुरू’अ कर रहे हैं.आज हम परवीन शाकिर की नज़्म “ख्व़ाब” और अली सरदार जाफ़री की नज़्म “एक बात” आपके सामने पेश कर रहे हैं. परवीन शाकिर की नज़्म: ख्व़ाब खुले पानियों में घिरी लड़कियाँ, नर्म लहरों के छीॅंटे उड़ाती हुई, बात … Read more