निदा फ़ाज़ली के बेहतरीन शेर..

Nida Fazli Best Sher

Nida Fazli Best Sher घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए निदा फ़ाज़ली ______ दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए निदा फ़ाज़ली _____ नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए इस शहर में तो सब से … Read more

उर्दू की बेहतरीन ग़ज़लें (रदीफ़ और क़ाफ़िए की जानकारी के साथ)

Dard Bhari Shayari Best Urdu Ghazals Bewafai Shayari

Best Urdu Ghazals ~ मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) की ग़ज़ल (Ghazal):  बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना गिर्या चाहे है ख़राबी मिरे काशाने की दर ओ दीवार से टपके है बयाबाँ होना वा-ए-दीवानगी-ए-शौक़ कि हर दम मुझ को आप … Read more

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता …. निदा फ़ाज़ली

Nida Fazli Ki Shayari waseem barelvi Ada Shayari

Nida Fazli Ki Shayari कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो जहाँ उमीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता कहाँ चराग़ जलाएँ कहाँ गुलाब रखें छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता Nida Fazli Ki Shayari ये क्या अज़ाब है सब … Read more

“ये खटमल ये मक्खी ये मच्छर की दुनिया”- अहमद अल्वी

ये खटमल ये मक्खी ये मच्छर की दुनिया ये लंगूर भालू ये बंदर की दुनिया ये कुत्तों गधों और ख़च्चर की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ये चोरों ये लुच्चों लफ़ंगों की दुनिया ये कमज़ोरों की और दबंगों की दुनिया तप-ए-दिक़ के बीमार चंगों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल … Read more

‘मेरे बुज़ुर्गों ने मुझको तहज़ीब सिखाई चार बजे’

बैठे-बिठाए हो गई घर में मार-कुटाई चार बजे मेरे बुज़ुर्गों ने मुझको तहज़ीब सिखाई चार बजे उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दुआ ने काम किया अम्मी और अब्बा ने मिल कर मेरा काम तमाम किया आज मुहल्ले-भर में गूँजी मेरी दुहाई चार बजे मेरे बुज़ुर्गों ने मुझको तहज़ीब सिखाई चार बजे नाहक़ हम … Read more

दो शाइर, दो ग़ज़लें (23): राजेन्द्र मनचंदा बानी और अहमद फ़राज़

अहमद फ़राज़ मनचंदा बानी

(अहमद फ़राज़ मनचंदा बानी) राजेन्द्र मनचंदा “बानी” की ग़ज़ल ऐ दोस्त मैं ख़ामोश किसी डर से नहीं था क़ाइल ही तिरी बात का अंदर से नहीं था हर आँख कहीं दौर के मंज़र पे लगी थी बेदार कोई अपने बराबर से नहीं था क्यूँ हाथ हैं ख़ाली कि हमारा कोई रिश्ता जंगल से नहीं था … Read more

दो शाइर, दो नज़्में(12): मजाज़ और मख़दूम

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Majaz Shayari Hindi असरार उल हक़ ‘मजाज़’ की नज़्म: बोल! अरी ओ धरती बोल! बोल! अरी ओ धरती बोल! राज सिंघासन डाँवाडोल बादल बिजली रैन अँधयारी दुख की मारी प्रजा सारी बूढ़े बच्चे सब दुखिया हैं दुखिया नर हैं दुखिया नारी बस्ती बस्ती लूट मची है सब बनिए हैं सब ब्योपारी बोल! अरी ओ धरती … Read more

दो शाइर, दो ग़ज़लें (23): असग़र गोंडवी और अल्लामा इक़बाल

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असग़र गोंडवी अल्लामा इक़बाल असग़र गोंडवी की ग़ज़ल: जीने का न कुछ होश न मरने की ख़बर है जीने का न कुछ होश न मरने की ख़बर है ऐ शोबदा-पर्दाज़ ये क्या तर्ज़-ए-नज़र है सीने में यहाँ दिल है न पहलू में जिगर है अब कौन है जो तिश्ना-ए-पैकान-ए-नज़र है है ताबिश-ए-अनवार से आलम तह-ओ-बाला … Read more

दो शाइर, दो ग़ज़लें (22): मिर्ज़ा ग़ालिब और परवीन शाकिर…

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Parveen Shakir Shayari उर्दू की बेहतरीन ग़ज़लें (रदीफ़ और क़ाफ़िए की जानकारी के साथ) मिर्ज़ा ग़ालिब की ग़ज़ल घर हमारा जो न रोते भी तो वीराँ होता बहर गर बहर न होता तो बयाबाँ होता तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर-दिल है कि अगर तंग न होता तो परेशाँ होता बाद यक-उम्र-ए-वरा बार तो … Read more

मजरूह सुल्तानपुरी की ग़ज़लें

Majrooh Sultanpuri Ki Ghazal

Majrooh Sultanpuri Ki Ghazal ग़ज़ल 1 डरा के मौज ओ तलातुम से हम-नशीनों को यही तो हैं जो डुबोया किए सफ़ीनों को शराब हो ही गई है ब-क़द्र-ए-पैमाना ब-अज़्म-ए-तर्क निचोड़ा जब आस्तीनों को जमाल-ए-सुब्ह दिया रू-ए-नौ-बहार दिया मिरी निगाह भी देता ख़ुदा हसीनों को हमारी राह में आए हज़ार मय-ख़ाने भुला सके न मगर होश … Read more