यक-ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बे-कार बाग़ का ~ मिर्ज़ा ग़ालिब

Mirza Ghalib ki shayari Ghalib Shayari Rubai Naqsh Fariyadi Hai Dard Minnat Kash Yak Zarra e Zamin Nahini Bekaar Baagh Ka Mirza Ghalib ke sher

Yak Zarra e Zamin Nahini Bekaar Baagh Ka ~ Mirza Ghalib यक-ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बे-कार बाग़ का याँ जादा भी फ़तीला है लाले के दाग़ का बे-मय किसे है ताक़त-ए-आशोब-ए-आगही खींचा है इज्ज़-ए-हौसला ने ख़त अयाग़ का बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल कहते हैं जिसको इश्क़ ख़लल है दिमाग़ का ताज़ा नहीं है नश्शा-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न मुझे … Read more

उर्दू के चार सबसे बड़े शाइरों की एक-एक ग़ज़ल…

Urdu ke ustaad shayar ki shayari Acharya Chatur Sen Ki Kahani

Urdu ke ustaad shayar: हम यहाँ चार ग़ज़लें पेश कर रहे हैं. मीर, ग़ालिब, इक़बाल और फ़ैज़ की इन ग़ज़लों के हमने चार-चार शेर ही लिए हैं. हमने सभी ग़ज़लों में रदीफ़ और क़ाफ़िए की पहचान के लिए हमने उन्हें रँग दिया है. लाल रँग से नज़र आ रहा हिस्सा रदीफ़ है और रदीफ़ के … Read more

“ये खटमल ये मक्खी ये मच्छर की दुनिया”- अहमद अल्वी

ये खटमल ये मक्खी ये मच्छर की दुनिया ये लंगूर भालू ये बंदर की दुनिया ये कुत्तों गधों और ख़च्चर की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ये चोरों ये लुच्चों लफ़ंगों की दुनिया ये कमज़ोरों की और दबंगों की दुनिया तप-ए-दिक़ के बीमार चंगों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल … Read more

‘मेरे बुज़ुर्गों ने मुझको तहज़ीब सिखाई चार बजे’

बैठे-बिठाए हो गई घर में मार-कुटाई चार बजे मेरे बुज़ुर्गों ने मुझको तहज़ीब सिखाई चार बजे उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दुआ ने काम किया अम्मी और अब्बा ने मिल कर मेरा काम तमाम किया आज मुहल्ले-भर में गूँजी मेरी दुहाई चार बजे मेरे बुज़ुर्गों ने मुझको तहज़ीब सिखाई चार बजे नाहक़ हम … Read more

दो शाइर, दो ग़ज़लें (23): राजेन्द्र मनचंदा बानी और अहमद फ़राज़

अहमद फ़राज़ मनचंदा बानी

(अहमद फ़राज़ मनचंदा बानी) राजेन्द्र मनचंदा “बानी” की ग़ज़ल ऐ दोस्त मैं ख़ामोश किसी डर से नहीं था क़ाइल ही तिरी बात का अंदर से नहीं था हर आँख कहीं दौर के मंज़र पे लगी थी बेदार कोई अपने बराबर से नहीं था क्यूँ हाथ हैं ख़ाली कि हमारा कोई रिश्ता जंगल से नहीं था … Read more

दो शाइर, दो नज़्में(12): मजाज़ और मख़दूम

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Majaz Shayari Hindi असरार उल हक़ ‘मजाज़’ की नज़्म: बोल! अरी ओ धरती बोल! बोल! अरी ओ धरती बोल! राज सिंघासन डाँवाडोल बादल बिजली रैन अँधयारी दुख की मारी प्रजा सारी बूढ़े बच्चे सब दुखिया हैं दुखिया नर हैं दुखिया नारी बस्ती बस्ती लूट मची है सब बनिए हैं सब ब्योपारी बोल! अरी ओ धरती … Read more

दो शाइर, दो ग़ज़लें (23): असग़र गोंडवी और अल्लामा इक़बाल

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असग़र गोंडवी अल्लामा इक़बाल असग़र गोंडवी की ग़ज़ल: जीने का न कुछ होश न मरने की ख़बर है जीने का न कुछ होश न मरने की ख़बर है ऐ शोबदा-पर्दाज़ ये क्या तर्ज़-ए-नज़र है सीने में यहाँ दिल है न पहलू में जिगर है अब कौन है जो तिश्ना-ए-पैकान-ए-नज़र है है ताबिश-ए-अनवार से आलम तह-ओ-बाला … Read more

दो शाइर, दो नज़्में(11): हबीब जालिब और नून मीम राशिद

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Habib Jalib Shayari Hindi हबीब जालिब की नज़्म- औरत बाज़ार है वो अब तक जिस में तुझे नचवाया दीवार है वो अब तक जिस में तुझे चुनवाया दीवार को आ तोड़ें बाज़ार को आ ढाएँ इंसाफ़ की ख़ातिर हम सड़कों पे निकल आएँ मजबूर के सर पर है शाही का वही साया बाज़ार है वो अब … Read more

दो शा’इर, दो ग़ज़लें (20): दुष्यंत कुमार और मजाज़

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Dushyant Kumar Shayari दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल: ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो अब कोई ऐसा तरीक़ा भी निकालो यारो दर्द-ए-दिल वक़्त को पैग़ाम भी पहुँचाएगा इस कबूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे आज … Read more

दो शाइर, दो नज़्में(10): कैफ़ी आज़मी और मुनीर नियाज़ी

Ishq ki shayari Kaifi Azmi Shayari Hindi Noshi Gilani Shayari Qateel Shifai Daagh Dehlvi Hari Shankar Parsai Jaishankar Prasad Amrita Pritam Ki Kahani Vrahaspativar ka vrat ~ "बृहस्पतिवार का व्रत" Rajendra Bala Ghosh Ki Kahani Dulaiwali

Kaifi Azmi Shayari Hindi कैफ़ी आज़मी की नज़्म- दाएरा रोज़ बढ़ता हूँ जहाँ से आगे, फिर वहीं लौट के आ जाता हूँ बार-हा तोड़ चुका हूँ जिन को उन्हीं दीवारों से टकराता हूँ रोज़ बसते हैं कई शहर नए रोज़ धरती में समा जाते हैं ज़लज़लों में थी ज़रा सी गर्मी वो भी अब रोज़ ही … Read more