मीर मेंहदी के नाम मिर्ज़ा ग़ालिब का ख़त
जाने-ग़ालिब !
अब की ऐसा बीमार हो गया था कि मुझको ख़ुद अफ़सोस था. पांचवें दिन ग़िज़ा खायी. अब अच्छा हूँ. तंदरुस्त हूँ, ज़िलहिज्ज १२७६ हिजरी तक कुछ खटका नहीं है. मुहर्रम की पहली तारीख़ से अल्लाह मालिक है. मीर नसीर उद्दीन आये कई बार. मैंने उनको देखा नहीं. अबकी बार दर्द में मुझको ग़फ़लत बहुत रही. अक्सर अह्बाब के आने की ख़बर नहीं हुई. जब से अच्छा हुआ हूँ सैय्यद साहब नहीं आये. तुम्हारे आँखों के ग़ुबार की वजह ये है कि जो मकान दिल्ली में धाये गए और जहां जहां सड़कें निकलीं. जितनी गर्द उड़ी उसको आपने अज़राहे मोहब्बत अपनी आँखों में जगह दी.
बहरहाल अच्छे हो जाओ और जल्द आओ.
(मिर्ज़ा ग़ालिब)