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Jigar aur dil ko bachana
जिगर और दिल को बचाना भी है,
नज़र आप ही से मिलाना भी है

मुहब्बत का हर भेद पाना भी है
मगर अपना दामन बचाना भी है

जो दिल तेरे ग़म का निशाना भी है
क़तील-ए-जफ़ा-ए-ज़माना भी है

ये बिजली चमकती है क्यूँ दम-ब-दम
चमन में कोई आशियाना भी है

ख़िरद की इताअत ज़रूरी सही
यही तो जुनूँ का ज़माना भी है

न दुनिया न उक़्बा कहाँ जाइए
कहीं अहल-ए-दिल का ठिकाना भी है

मुझे आज साहिल पे रोने भी दो
कि तूफ़ान में मुस्कुराना भी है

ज़माने से आगे तो बढ़िए ‘मजाज़’
ज़माने को आगे बढ़ाना भी है
_________________

माँ पर बेहतरीन शेर..
अहमद फ़राज़ के बेहतरीन शेर…

मजाज़ की इस ग़ज़ल में रदीफ़ “भी है” है और क़ाफ़िए ‘बचाना, मिलाना, बचाना,ज़माना, आशियाना, ज़माना, ठिकाना, मुस्कुराना, बढ़ाना’ हैं. 

جگر اور دل کو بچانا بھی ہے
نظر آپ ہی سے ملانا بھی ہے

محبت کا ہر بھید پانا بھی ہے
مگر اپنا دامن بچانا بھی ہے

جو دل تیرے غم کا نشانہ بھی ہے
قتیل جفائے زمانہ بھی ہے

یہ بجلی چمکتی ہے کیوں دم بدم
چمن میں کوئی آشیانہ بھی ہے

خرد کی اطاعت ضروری سہی
یہی تو جنوں کا زمانا بھی ہے

نہ دنیا نہ عقبیٰ کہاں جائیے
کہیں اہل دل کا ٹھکانا بھی ہے

مجھے آج ساحل پہ رونے بھی دو
کہ طوفان میں مسکرانا بھی ہے

زمانے سے آگے تو بڑھیے مجازؔ
زمانے کو آگے بڑھانا بھی ہے

اسرار الحق مجاز

Jigar aur dil ko bachana

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