Iqbal Shayari Hindi
मुहम्मद इक़बाल को सर मुहम्मद इक़बाल या फिर अल्लामा इक़बाल के नाम से भी जाना जाता है. इक़बाल उर्दू शाइरी के सबसे बड़े शाइरों में शुमार किए जाते हैं. इक़बाल का जन्म (Iqbal ka janm) 9 नवम्बर 1877 को सिआलकोट में हुआ था. इक़बाल के जन्मदिन को ‘विश्व उर्दू दिवस’ या ‘वर्ल्ड उर्दू डे’ के बतौर मनाया जाता है. इक़बाल ने अपनी शाइरी से अलग-अलग सब्जेक्ट पर बात की. उन्होंने उर्दू और फ़ारसी ज़बानों में शाइरी की और शोहरत हासिल की. 21 अप्रैल, 1938 को उन्होंने इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह दिया.
1.
गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर
चराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है
2.
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
3.
कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है
4.
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी
5.
इश्क़ तिरी इंतिहा इश्क़ मिरी इंतिहा,
तू भी अभी ना-तमाम मैं भी अभी ना-तमाम
6.
आह कि खोया गया तुझसे फ़क़ीरी का राज़
वर्ना है माल-ए-फ़क़ीर सल्तनत-ए-रूम-ओ-शाम
7.
हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही
क्या चाँद तारे क्या मुर्ग़ ओ माही
8.
कुछ क़द्र अपनी तूने न जानी
ये बे-सवादी ये कम-निगाही
9.
ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं
तिरा इलाज नज़र के सिवा कुछ और नहीं
10.
हर इक मक़ाम से आगे मक़ाम है तेरा
हयात ज़ौक़-ए-सफ़र के सिवा कुछ और नहीं
11.
गिराँ-बहा है तो हिफ़्ज़-ए-ख़ुदी से है वर्ना
गुहर में आब-ए-गुहर के सिवा कुछ और नहीं
12.
सिखलाई फ़रिश्तों को आदम की तड़प उसने
आदम को सिखाता है आदाब-ए-ख़ुदावंदी
13.
अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है
शायद कि उतर जाए तिरे दिल में मिरी बात
14.
अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन
15.
मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं
तन की दौलत छाँव है आता है धन जाता है धन
16.
पानी पानी कर गई मुझको क़लंदर की ये बात
तू झुका जब ग़ैर के आगे न मन तेरा न तन
17.
मन की दुनिया में न पाया मैं ने अफ़रंगी का राज,
मन की दुनिया में न देखे मैं ने शैख़ ओ बरहमन
गुलज़ार के बेहतरीन शेर..
18.
हुस्न-ए-बे-परवा को अपनी बे-नक़ाबी के लिए,
हों अगर शहरों से बन प्यारे तो शहर अच्छे कि बन
19.
फूल हैं सहरा में या परियाँ क़तार अंदर क़तार
ऊदे ऊदे नीले नीले पीले पीले पैरहन
20.
अनोखी वज़्अ’ है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं
21.
रुलाती है मुझे रातों को ख़ामोशी सितारों की
निराला इश्क़ है मेरा निराले मेरे नाले हैं
22.
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
नशेमन सैकड़ों मैंने बना कर फूँक डाले हैं
23.
मिरे अशआ’र ऐ ‘इक़बाल’ क्यूँ प्यारे न हों मुझको
मिरे टूटे हुए दिल के ये दर्द-अंगेज़ नाले हैं
24.
न फ़लसफ़ी से न मुल्ला से है ग़रज़ मुझको
ये दिल की मौत वो अंदेशा ओ नज़र का फ़साद
25.
अक़्ल गो आस्ताँ से दूर नहीं
उस की तक़दीर में हुज़ूर नहीं
26.
क्या ग़ज़ब है कि इस ज़माने में
एक भी साहब-ए-सुरूर नहीं
27.
हर गुहर ने सदफ़ को तोड़ दिया
तू ही आमादा-ए-ज़ुहूर नहीं
28.
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है
29.
किसे नहीं है तमन्ना-ए-सरवरी लेकिन
ख़ुदी की मौत हो जिस में वो सरवरी क्या है
राहत इन्दौरी के बेहतरीन शेर
30.
ख़ुश आ गई है जहाँ को क़लंदरी मेरी
वगरना शेर मिरा क्या है शाइरी क्या है
31.
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
32.
अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
33.
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं
34.
इसी रोज़ ओ शब में उलझ कर न रह जा
कि तेरे ज़मान ओ मकाँ और भी हैं
35.
गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मिरे राज़-दाँ और भी हैं
36.
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है
37.
कब तक रहे महकूमी-ए-अंजुम में मिरी ख़ाक
या मैं नहीं या गर्दिश-ए-अफ़्लाक नहीं है
38.
बिजली हूँ नज़र कोह ओ बयाबाँ पे है मेरी
मेरे लिए शायाँ ख़स-ओ-ख़ाशाक नहीं है
39.
मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे
नज़्ज़ारे की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे
40.
सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे
41.
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल,
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
42.
शबनम की तरह फूलों पे रो और चमन से चल
इस बाग़ में क़याम का सौदा भी छोड़ दे
43.
है आशिक़ी में रस्म अलग सब से बैठना
बुत-ख़ाना भी हरम भी कलीसा भी छोड़ दे
44.
सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे
शकील बदायूँनी के बेहतरीन शेर
45.
ना वो क्या जो हो नफ़स-ए-ग़ैर पर मदार
शोहरत की ज़िंदगी का भरोसा भी छोड़ दे
46.
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा (तुलू-ए-इस्लाम से)
47.
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है (जवाब-ए-शिकवा से)
48.
यूँ तो सय्यद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़्ग़ान भी हो
तुम सभी कुछ हो बताओ तो मुसलमान भी हो (जवाब-ए-शिकवा से)
49.
अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमां तेरा है या मेरा
मुझे फ़िक्र-ए-जहाँ क्यूँ हो जहाँ तेरा है या मेरा
50.
अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकां ख़ाली
ख़ता किस की है या रब ला-मकां तेरा है या मेरा
51.
उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा
52.
मुहम्मद भी तिरा जिबरील भी क़ुरआन भी तेरा
मगर ये हर्फ़-ए-शीरीं तर्जुमाँ तेरा है या मेरा
रहमान फ़ारिस के बेहतरीन शेर
53.
इसी कौकब की ताबानी से है तेरा जहाँ रौशन
ज़वाल-ए-आदम-ए-ख़ाकी ज़ियाँ तेरा है या मेरा
54.
एजाज़ है किसी का या गर्दिश-ए-ज़माना
टूटा है एशिया में सेहर-ए-फ़िरंगियाना
55.
ये बंदगी ख़ुदाई वो बंदगी गदाई
या बंदा-ए-ख़ुदा बन या बंदा-ए-ज़माना
56.
ग़ाफ़िल न हो ख़ुदी से कर अपनी पासबानी
शायद किसी हरम का तू भी है आस्ताना
57.
तेरी निगाह से दिल सीनों में काँपते थे
खोया गया है तेरा जज़्ब-ए-क़लंदराना
58.
जुगनू की रौशनी है काशाना-ए-चमन में
या शम्अ’ जल रही है फूलों की अंजुमन में
59.
आया है आसमाँ से उड़ कर कोई सितारा
या जान पड़ गई है महताब की किरन में
60.
या शब की सल्तनत में दिन का सफ़ीर आया
ग़ुर्बत में आ के चमका गुमनाम था वतन में
61.
हुस्न-ए-क़दीम की इक पोशीदा ये झलक थी
ले आई जिस को क़ुदरत ख़ल्वत से अंजुमन में
62.
छोटे से चाँद में है ज़ुल्मत भी रौशनी भी
निकला कभी गहन से आया कभी गहन में
63.
करेंगे अहल-ए-नज़र ताज़ा बस्तियाँ आबाद
मिरी निगाह नहीं सू-ए-कूफ़ा-ओ-बग़दाद
64.
ये मदरसा ये जवाँ ये सुरूर ओ रानाई
इन्हीं के दम से है मय-ख़ाना-ए-फ़रंग आबाद
65.
न फ़लसफ़ी से न मुल्ला से है ग़रज़ मुझको
ये दिल की मौत वो अंदेशा ओ नज़र का फ़साद
66.
ख़रीद सकते हैं दुनिया में इशरत-ए-परवाज़
ख़ुदा की देन है सरमाया-ए-ग़म-ए-फ़रहाद
लखनवी शायरी ~ ग़ुलाम हमदानी ‘मुसहफ़ी’
67.
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं
इश्क़ पर आमाल की बुनियाद रख
68.
आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं
महव-ए-हैरत हूँ कि दुनिया क्या से क्या हो जाएगी
69.
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
होश ओ ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ नज़र शिकार कर
70.
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर
71.
तू है मुहीत-ए-बे-कराँ मैं हूँ ज़रा सी आबजू
या मुझे हम-कनार कर या मुझे बे-कनार कर
72.
मैं हूँ सदफ़ तो तेरे हाथ मेरे गुहर की आबरू
मैं हूँ ख़ज़फ़ तो तू मुझे गौहर-ए-शाहवार कर
73.
नग़्मा-ए-नौ-बहार अगर मेरे नसीब में न हो
उस दम-ए-नीम-सोज़ को ताइरक-ए-बहार कर
74.
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर
75.
रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमल
आप भी शर्मसार हो मुझ को भी शर्मसार कर
76.
वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-काएनात में रंग,
उसी के साज़ से है ज़िंदगी का सोज़-ए-दरूँ (‘औरत’ से)
77.
मशहूर जिनके दम से है दुनिया में नाम-ए-हिंद
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़ (‘राम’ से)
78.
तलवार का धनी था शुजाअ’त में फ़र्द था,
पाकीज़गी में जोश-ए-मोहब्बत में फ़र्द था (‘राम’ से)
79.
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा (‘तराना-ए-हिंदी’ से)
80.
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा (‘तराना-ए-हिंदी’ से)
81.
यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा (‘तराना-ए-हिंदी’ से)
82.
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा (‘तराना-ए-हिंदी’ से)
83.
‘इक़बाल’ कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा (‘तराना-ए-हिंदी’ से)
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद के बेहतरीन शेर
84.
हो मिरा काम ग़रीबों की हिमायत करना
दर्द-मंदों से ज़ईफ़ों से मुहब्बत करना (‘बच्चे की दुआ’ से)
85.
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
खुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही
86.
‘अत्तार’ हो ‘रूमी’ हो ‘राज़ी’ हो ‘ग़ज़ाली’ हो
कुछ हाथ नहीं आता बे-आह-ए-सहर-गाही
87.
ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी
जिस रिज़्क़ से आती हो पर्वाज़ में कोताही
88.
दारा ओ सिकंदर से वो मर्द-ए-फ़क़ीर औला
हो जिसकी फ़क़ीरी में बू-ए-असदूल-लाही
89.
आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही
90.
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
91.
लज़्ज़त-ए-नग़्मा कहाँ मुर्ग़-ए-ख़ुश-अलहाँ के लिए
आह उस बाग़ में करता है नफ़स कोताही
92.
एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीक
एक सरमस्ती ओ हैरत है तमाम आगाही
93.
सिफ़त-ए-बर्क़ चमकता है मिरा फ़िक्र-ए-बुलंद
कि भटकते न फिरें ज़ुल्मत-ए-शब में राही
94.
नज़र आई न मुझे क़ाफ़िला-सालारों में
वो शबानी कि है तम्हीद-ए-कलीमुल-लाही
95.
तू बचा बचा के न रख इसे तिरा आइना है वो आइना
कि शिकस्ता हो तो अज़ीज़-तर है निगाह-ए-आइना-साज़ में
96.
न वो इश्क़ में रहीं गर्मियाँ न वो हुस्न में रहीं शोख़ियाँ
न वो ग़ज़नवी में तड़प रही न वो ख़म है ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ मैं
97.
परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए
जो मुश्किल अब है या रब फिर वही मुश्किल न बन जाए
98.
कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को
खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए
99.
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए
100.
बनाया इश्क़ ने दरिया-ए-ना-पैदा-कराँ मुझको
ये मेरी ख़ुद-निगह-दारी मिरा साहिल न बन जाए
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नोट: कुछ शेर इसमें नज़्मों से भी लिए गए हैं. ऐसे शेरों के सामने ब्रैकेट में जानकारी दी गयी है. हालाँकि नज़्म मुकम्मल तौर पर एक विषय पर बात करती है लेकिन हमने वो दो पंक्तियाँ ली हैं जो अपने आप में कोई अर्थ भी बताती हों.
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