fbpx
Mirza Ghalib ki shayari Ghalib Shayari Rubai Naqsh Fariyadi Hai Dard Minnat Kash Yak Zarra e Zamin Nahini Bekaar Baagh Ka Mirza Ghalib ke sherMirza Ghalib ki shayari

Dard Minnat Kash e Dava Na Hua ~ Mirza Ghalib

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ

जम्अ’ करते हो क्यूँ रक़ीबों को
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ

हम कहाँ क़िस्मत आज़माने जाएँ
तू ही जब ख़ंजर-आज़मा न हुआ

कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब
गालियाँ खा के बे-मज़ा न हुआ

है ख़बर गर्म उनके आने की
आज ही घर में बोरिया न हुआ

क्या वो नमरूद की ख़ुदाई थी
बंदगी में मिरा भला न हुआ

जान दी दी हुई उसी की थी
हक़ तो यूँ है कि हक़ अदा न हुआ

ज़ख़्म गर दब गया लहू न थमा
काम गर रुक गया रवा न हुआ

रहज़नी है कि दिल-सितानी है
ले के दिल दिल-सिताँ रवाना हुआ

कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं
आज ‘ग़ालिब’ ग़ज़ल-सरा न हुआ

~ मिर्ज़ा ग़ालिब

उस्ताद शाइर ग़ालिब की इस ग़ज़ल में “न हुआ” रदीफ़ है जबकि “दवा, बुरा, गिला, आज़मा, मज़ा, बोरिया, भला, अदा, रवा, सिताँ-रवाना, ग़ज़ल-सरा” क़ाफ़िए हैं.

Dard Minnat Kash e Dava Na Hua ~ Mirza Ghalib

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *