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Firaq Gorakhpuri Ki ShayariFiraq Gorakhpuri Ki Shayari

Firaq Gorakhpuri Ki Shayari
1.
तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं
समझ लो साँस लेना ख़ुद-कुशी करना समझते हैं

2.
बस इतने पर हमें सब लोग दीवाना समझते हैं
कि इस दुनिया को हम इक दूसरी दुनिया समझते हैं

सोशल मीडिया और Instagram रील के लिए बेहतरीन शायरी का संकलन…

3.
कहाँ का वस्ल तन्हाई ने शायद भेस बदला है
तिरे दम भर के मिल जाने को हम भी क्या समझते हैं

4.
हमारा ज़िक्र क्या हमको तो होश आया मुहब्बत में
मगर हम क़ैस का दीवाना हो जाना समझते हैं

5.
यही ज़िद है तो ख़ैर आँखें उठाते हैं हम उस जानिब
मगर ऐ दिल हम इस में जान का खटका समझते हैं

6.
न शोख़ी शोख़ है इतनी न पुरकार इतनी पुरकारी
न जाने लोग तेरी सादगी को क्या समझते हैं

7.
जहाँ की फितरत-ए-बेगाना में जो कैफ़-ए-ग़म भर दें
वही जीना समझते हैं वही मरना समझते हैं

8.
भुला दीं एक मुद्दत की जफ़ाएँ उस ने ये कह कर
तुझे अपना समझते थे तुझे अपना समझते हैं

9.
‘फ़िराक़’ इस गर्दिश-ए-अय्याम से कब काम निकला है
सहर होने को भी हम रात कट जाना समझते हैं

दिल्ली शहर पर ख़ूबसूरत शेर…

10.
सितारों से उलझता जा रहा हूँ
शब-ए-फ़ुर्क़त बहुत घबरा रहा हूँ Firaq Gorakhpuri Ki Shayari

11.
जो उलझी थी कभी आदम के हाथों
वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हूँ

12.
मुहब्बत अब मुहब्बत हो चली है
तुझे कुछ भूलता सा जा रहा हूँ

13.
तिरे पहलू में क्यूँ होता है महसूस
कि तुझसे दूर होता जा रहा हूँ

14.
जो उन मासूम आँखों ने दिए थे
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ Firaq Gorakhpuri Ki Shayari

15.
तिरे ग़म को भी कुछ बहला रहा हूँ
जहाँ को भी समझता जा रहा हूँ

16.
यक़ीं ये है हक़ीक़त खुल रही है
गुमाँ ये है कि धोके खा रहा हूँ

17.
अगर मुमकिन हो ले ले अपनी आहट
ख़बर दो हुस्न को मैं आ रहा हूँ

18.
हदें हुस्न-ओ-मोहब्बत की मिला कर
क़यामत पर क़यामत ढा रहा हूँ

19.
ख़बर है तुझको ऐ ज़ब्त-ए-मुहब्बत
तिरे हाथों में लुटता जा रहा हूँ

20.
असर भी ले रहा हूँ तेरी चुप का
तुझे क़ाइल भी करता जा रहा हूँ

21.
भरम तेरे सितम का खुल चुका है
मैं तुझ से आज क्यूँ शरमा रहा हूँ

सआदत हसन ‘मंटो’ की कहानी ‘नया क़ानून’
22.
उन्हीं में राज़ हैं गुल-बारियों के
मैं जो चिंगारियाँ बरसा रहा हूँ

23.
शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाह-ए-नाज़ की बातें करो
बे-ख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो

24.
निकहत-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ दास्तान-ए-शाम-ए-ग़म
सुब्ह होने तक इसी अंदाज़ की बातें करो

25.
कुछ क़फ़स की तीलियों से छन रहा है नूर सा
कुछ फ़ज़ा कुछ हसरत-ए-परवाज़ की बातें करो

26.
अब कमी क्या है तिरे बे-सर-ओ-सामानों को
कुछ न था तेरी क़सम तर्क-ए-वफ़ा से पहले

27.
मौत के नाम से डरते थे हम ऐ शौक़-ए-हयात
तू ने तो मार ही डाला था क़ज़ा से पहले

28.
बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में
वहशतें बढ़ गईं हद से तिरे दीवानों में

29.
सैर कर उजड़े दिलों की जो तबीअ’त है उदास
जी बहल जाते हैं अक्सर इन्हीं वीरानों में

30.
अब तो उन की याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ

31.
अभी तो कुछ ख़लिश सी हो रही है चंद काँटों से
इन्हीं तलवों में इक दिन जज़्ब कर लूँगा बयाबाँ को

स्टेट्स पर लगाने के लिए बेहतरीन शायरी…

32.
आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो
जब भी उनको ध्यान आएगा तुमने ‘फ़िराक़’ को देखा है

33.
इश्क़ अभी से तन्हा तन्हा
हिज्र की भी आई नहीं नौबत

34.
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें
और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं

35.
कम से कम मौत से ऐसी मुझे उम्मीद नहीं
ज़िंदगी तू ने तो धोके पे दिया है धोका

36.
कह दिया तूने जो मा’सूम तो हम हैं मा’सूम
कह दिया तूने गुनहगार गुनहगार हैं हम Firaq Gorakhpuri Ki Shayari
37.
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं,
लेकिन इस तर्क-ए-मुहब्बत का भरोसा भी नहीं

38.
कोई आया न आएगा लेकिन
क्या करें गर न इंतिज़ार करें

39.
ग़रज़ कि काट दिए ज़िंदगी के दिन ऐ दोस्त
वो तेरी याद में हों या तुझे भुलाने में

40.
ख़ुश भी हो लेते हैं तेरे बे-क़रार
ग़म ही ग़म हो इश्क़ में ऐसा नहीं

One thought on “फ़िराक़ गोरखपुरी की शायरी”
  1. आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ
    उफ़ ले गई है मुझको मोहब्बत कहाँ कहाँ।

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