Meraj Faizabadi Shayari
बिखरे बिखरे सहमे सहमे रोज़ ओ शब देखेगा कौन
लोग तेरे जुर्म देखेंगे सबब देखेगा कौन
___
आज भी गाँव में कुछ कच्चे मकानों वाले
घर में हम-साए के फ़ाक़ा नहीं होने देते
__
हमें पढ़ाओ न रिश्तों की कोई और किताब
पढ़ी है बाप के चेहरे की झुर्रियाँ हमने
__
हम ग़ज़ल में तिरा चर्चा नहीं होने देते
तेरी यादों को भी रुस्वा नहीं होने देते
ख़्वाब पर बेहतरीन शेर…
_____
एक टूटी हुई ज़ंजीर की फ़रियाद हैं हम
और दुनिया ये समझती है कि आज़ाद हैं हम
___
कुछ तो हम ख़ुद भी नहीं चाहते शोहरत अपनी
और कुछ लोग भी ऐसा नहीं होने देते
___
तेरे बारे में जब सोचा नहीं था
मैं तन्हा था मगर इतना नहीं था
__
शायरी में ‘मीर’-ओ-‘ग़ालिब’ के ज़माना अब कहाँ
शोहरतें जब इतनी सस्ती हों अदब देखेगा कौन
__
हमको इस दौर-ए-तरक़्क़ी ने दिया क्या ‘मेराज’
कल भी बर्बाद थे और आज भी बर्बाद हैं हम
___
मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते
__
प्यास कहती है चलो रेत निचोड़ी जाए
अपने हिस्से में समुंदर नहीं आने वाला
__
ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना
पाँव बख़्शें हैं तो तौफ़ीक़-ए-सफ़र भी देना
__
जो कह रहे थे कि जीना मुहाल है तुम बिन
बिछड़ के मुझ से वो दो दिन उदास भी न रहे
__
आज भी गाँव में कुछ कच्चे मकानों वाले
घर में हम-साए के फ़ाक़ा नहीं होने देते
फ़हमी बदायूनी के बेहतरीन शेर..__
यूँ हुआ फिर बंद कर लीं उस ने आँखें एक दिन
वो समझ लेता था दिल का हाल चेहरा देख कर
____
मुझ को रुस्वा भी बहुत करती है शोहरत की हवस
और शोहरत मिरा पीछा भी नहीं छोड़ती है
Meraj Faizabadi Shayari