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Rehman Faris Shayari

~ मैं कार-आमद हूँ या बे-कार हूँ मैं
मगर ऐ यार तेरा यार हूँ मैं

जो देखा है किसी को मत बताना
इलाक़े भर में इज़्ज़त-दार हूँ मैं
मेराज फ़ैज़ाबादी के बेहतरीन शेर…
नज़र उठाएँ तो क्या क्या फ़साना बनता है
सौ पेश-ए-यार निगाहें झुकाना बनता है

पराई आग मिरा घर जला रही है सो अब
ख़मोश रहना नहीं ग़ुल मचाना बनता है

कहानी ख़त्म हुई और ऐसी ख़त्म हुई
कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते हुए

दिल को दरून-ए-ख़ाना ही बहलाओ घर रहो
तुमको क़सम है भीड़ में मत जाओ घर रहो

तेरे बिन घड़ियाँ गिनी हैं रात दिन
नौ बरस ग्यारह महीने सात दिन

वो पहले सिर्फ़ मिरी आँख में समाया था
फिर एक रोज़ रगों तक उतर गया मुझ में

मुझको ख़ुद में जगह नहीं मिलती
तू है मौजूद इस क़दर मुझ में

मिरी तो सारी दुनिया बस तुम्ही हो
ग़लत क्या है जो दुनिया-दार हूँ मैं

मुहम्मद रफ़ी साहब द्वारा गायी गई ग़ज़लें…

तुम तो दरवाज़ा खुला देख के दर आए हो
तुमने देखा नहीं दीवार को दर होने तक

माना कि ईद मिलना भी दस्तूर है मगर
सीनों से लग के मौत न फैलाओ घर रहो

फ़ारिस! हमें भी शौक़-ए-मुलाक़ात है मगर
पूरे करेंगे बा’द में सब चाव घर रहो

फ़हमी बदायूनी के बेहतरीन शेर..

Rehman Faris Shayari

One thought on “रहमान फ़ारिस के बेहतरीन शेर..”

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