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Moid Rasheedi ShayariSeaport by Moonlight (1771) by Claude Joseph Vernet

Moid Rasheedi Shayari ~

लगता है तबाही मिरी क़िस्मत से लगी है
ये कौन सी आँधी मिरे अंदर से उठी है

मुईद रशीदी
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आते आते जो तिरा नाम सा रह जाता है
मेरे सीने में वो कोहराम सा रह जाता है

मुईद रशीदी
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ऐ ज़माने की हवा अब तो रिहा कर मुझ को
इश्क़ के बाद भी कुछ काम सा रह जाता है

मुईद रशीदी
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ख़ौफ़ है धुंद भरी रात है तन्हाई है
मेरे कमरे में अभी रात है तन्हाई है

मुईद रशीदी
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अब इससे पहले कि रुस्वाई अपने घर आती
तुम्हारे शहर से हम बा-अदब निकल आए

मुईद रशीदी
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ठहरे हुए पानी का मुक़द्दर नहीं होता
बहते हुए पानी का तक़ाज़ा है गुज़र जा

मुईद रशीदी
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ये मोजज़ा है कि मैं रात काट देता हूँ
न जाने कैसे तिलिस्मात काट देता हूँ

मुईद रशीदी
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इसी जवाब के रस्ते सवाल आते हैं
इसी सवाल में सारा जवाब ठहरा है

मुईद रशीदी
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मुझको पाने की तमन्ना में वो ग़र्क़ाब हुआ
मैंने साहिल की तमन्ना में उसे खोया है

मुईद रशीदी
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उस बार उजालों ने मुझे घेर लिया था
इस बार मिरी रात मिरे साथ चली है

मुईद रशीदी

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ज़िंदगी हम तिरे कूचे में चले आए तो हैं
तेरे कूचे की हवा हम से ख़फ़ा लगती है

मुईद रशीदी
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ख़्वाब में तोड़ता रहता हूँ अना की ज़ंजीर
आँख खुलती है तो दीवार निकल आती है

मुईद रशीदी
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ये हिजरतों के तमाशे, ये क़र्ज़ रिश्तों के
मैं ख़ुद को जोड़ते रहने में टूट जाता हूँ

मुईद रशीदी
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ऐ अक़्ल नहीं आएँगे बातों में तिरी हम
नादान थे नादान हैं नादान रहेंगे

मुईद रशीदी
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इतना आसाँ नहीं लफ़्ज़ों को ग़ज़ल कर लेना
शोर को शेर बनाने में जिगर लगता है

मुईद रशीदी
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चंद यादों के दिए थोड़ी तमन्ना कुछ ख़्वाब
ज़िंदगी तुझ से ज़ियादा नहीं माँगा हम ने

मुईद रशीदी
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जो बिछड़ गया वो मिला नहीं ये सवाल था
जो मिला नहीं वो बिछड़ गया ये कमाल है

मुईद रशीदी
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कोई आता है या नहीं आता
आज ख़ुद को पुकार कर देखें

मुईद रशीदी
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Moid Rasheedi Shayari

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