मत’ला: ग़ज़ल या क़सीदे का वो शे’र जिसके दोनों मिसरों में रदीफ़ और क़ाफ़िये का इस्तेमाल होता है उसे मत’ला कहते हैं. अक्सर को ग़ज़ल का पहला शे’र मत’ला होता है लेकिन एक ग़ज़ल में एक से अधिक मत’ले भी हो सकते हैं, इसको लेकर कोई पाबंदी नहीं है. एक बात और बता देना ज़रूरी है कि किसी ग़ज़ल में मत’ला ना होना कोई दोष नहीं है. हालाँकि क़सीदों के लिहाज़ से कहा जाता है कि बग़ैर मत’ला क़सीदे वो मज़ा नहीं देते.
जलील मानिकपुरी की ग़ज़ल देखिए. इसमें पहला शेर मत’ला है.
मार डाला मुस्कुरा कर नाज़ से
हाँ मिरी जाँ फिर इसी अंदाज़ से
किसने कह दी उनसे मेरी दास्ताँ
चौंक चौंक उठते हैं ख़्वाब-ए-नाज़ से
फिर वही वो थे वहाँ कुछ भी न था
जिस तरफ़ देखा निगाह-ए-नाज़ से
दर्द-ए-दिल पहले तो वो सुनते न थे
अब ये कहते हैं ज़रा आवाज़ से
मिट गए शिकवे जब उस ने ऐ ‘जलील’
डाल दें बाँहें गले में नाज़ से
जलील मानिकपुरी