ग़ज़ल में मक़ता क्या होता है?

मक़ता: ग़ज़ल का आख़िरी शे’र मक़ता कहलाता है.अक्सर इसमें शा’इर अपने तख़ल्लुस (pen name) का इस्तेमाल करता है. Ghazal Shayari Maqta

तख़ल्लुस: शा’इर जिस नाम से शा’इरी करता है उसे तख़ल्लुस कहते हैं जैसे रघुपति सहाय गोरखपुरी का तख़ल्लुस ‘फ़िराक़’ है जिन्हें हम ‘फ़िराक़’ गोरखपुरी के नाम से जानते हैं.

मुहम्मद अल्वी की इस ग़ज़ल में मक़ता क्या है अब आप समझ जाएँगे..

अच्छे दिन कब आएँगे
क्या यूँ ही मर जाएँगे

अपने-आप को ख़्वाबों से
कब तक हम बहलाएँगे

बम्बई में ठहरेंगे कहाँ
दिल्ली में क्या खाएँगे

खिलते हैं तो खिलने दो
फूल अभी मुरझाएँगे

कितनी अच्छी लड़की है
बरसों भूल न पाएँगे

मौत न आई तो ‘अल्वी’
छुट्टी में घर जाएँगे

Ghazal Shayari Maqta

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