~ Ashu Mishra Shayari
पुरानी चाहत के ज़ख़्म अब तक भरे नहीं हैं
और एक लड़की पड़ी है पीछे बड़े जतन से
तुम्हारी शक्ल किसी शक्ल से मिलाते हुए
मैं खो गया हूँ नया रास्ता बनाते हुए
एक पतझड़ सा है लगा मुझमें
फिर कोई गुल नहीं खिला मुझमें
तेरी यादें भी कर गईं हिजरत
अब तो कुछ भी नहीं बचा मुझमें
कौन है जिस पर नहीं खुलता मिरा दस्त-ए-हुनर
किस की मिट्टी एक मुद्दत से रखी है चाक पर
जो भी आया वो तिरी आँखों का होके रह गया
ये भँवर अब तक न खुल पाए किसी तैराक पर
हमारे सर पे तब कोई जहाँ होता नहीं था
ज़मीं होती थी लेकिन आसमाँ होता नहीं था
मैं ख़ाली वक़्त में टूटे सितारे जोड़ता था
तुम्हारा हिज्र ऐसा राएगाँ होता नहीं था
जहाँ से आ गए हैं उस जहाँ की याद आती है
कि हम उर्यां-सरों को साएबाँ की याद आती है
वहाँ जब तक रहे तब तक यहाँ की फ़िक्र रहती थी
यहाँ जब आ गए हैं तो वहाँ की याद आती है
ये शहर-ए-अजनबी में अब किसे जा कर बताएँ हम
कहाँ के रहने वाले हैं कहाँ की याद आती है
हमारे सर पे तब कोई जहाँ होता नहीं था
ज़मीं होती थी लेकिन आसमाँ होता नहीं था
ख़ुदा भी साथ रहता था हमारे इस ज़मीं पर
ये तब की बात है जब आसमाँ होता नहीं था
~
Ashu Mishra Shayari
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