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Ghazal Likhne Ka Tareeka ख और ख़ वाले शब्द ज और ज़ वाले शब्दwww.sahityaduniya.com

Ghazal Likhne Ka Tareeka शा’इरी में यूँ तो ख़याल की पुख़्तगी बहुत अहम् है लेकिन सिर्फ़ अच्छा या नया ख़याल होना ही शा’इरी नहीं हो जाएगा. ये बात बहुत ठीक से समझने की है कि शा’इरी सिर्फ़ फ़िलोसफ़ी नहीं है, फ़लसफ़े के साथ आहंग या मौसिक़ीयत (संगीत) का होना भी उतना ही ज़रूरी है. आजकल के दौर में जबकि सभी लोग अपनी कही बातें सोशल मीडिया पर साझा कर रहे हैं तो कई बार लोग “दो लाइन” की कोई कविता साझा करते हैं और उसे शे’र का नाम दे देते हैं लेकिन ये ठीक नहीं है,असल में एक शे’र तभी शे’र कहलाता है जब इसके दोनों मिसरे एक ही वज़्न के होते हैं और बह्र में होते हैं. जब एक ही बह्र, रदीफ़ और क़ाफ़िए की पाबंदी के साथ कई शे’र कहे जाते हैं तो उसे ग़ज़ल कहा जाता है. बात लेकिन ये है कि शा’इरी में मौसिक़ीयत कैसे पैदा की जाए. पिछले दिनों इस बारे में हमने बात की भी है, चलिए आज इन्हीं बातों को तकनीकी ज़बान में समझने की कोशिश करते हैं. शा’इरी में मौसिक़ीयत पैदा करने वाली कम अज़ कम 8 तरतीबें पहचान की गयी हैं, इन तरतीबों को रुक्न कहते हैं. Ghazal Likhne Ka Tareeka

फ़-ऊ-लुन (1-2-2): इस रुक्न का नाम मुतक़ारिब है. “फ़-ऊ-लुन” वज़्न पर कुछ शब्द- उदासी (उ-1, दा,-2, सी-2), ग़ुलामी (ग़ु-1, ला-2, मी-2), इरादा (इ-1,रा-2,दा-2), तबस्सुम, ख़मोशी.

फ़ा-इ-लुन(2-1-2): इस रुक्न का नाम मुतदारिक है. “फ़ा-इ-लुन” वज़्न पर कुछ शब्द- क़ाइदा (क़ा-2, इ-1, दा-2), आख़िरी(आ-2,ख़ि-1, री-2), ख़ामुशी, आदमी, फ़ारसी.

मु-फ़ा-ई-लुन(1-2-2-2): इस रुक्न का नाम हज़ज है. “मु-फ़ा-ई-लुन” वज़्न पर कुछ शब्द- परेशानी (प-1, रे-2, शा-2, नी-2), कलासीकी (क-1,ला-2,सी-2,की-2)

फ़ा-इ-ला-तुन (2-1-2-2): इस रुक्न का नाम रमल है. “फ़ा-इ-ला-तुन” वज़्न पर कुछ शब्द- बादशाही (बा-2, द-1, शा-2, ही-2), आदमीयत (आ-2,द-1, मी-2,यत-2), ज़िन्दगानी(ज़िन्-2, द-1, गा-2, नी-2), कामयाबी (का-2, म-1, या-2, बी-2), अरग़वानी.

मस-तफ़-इ-लुन(2-2-1-2): इस रुक्न का नाम रजज़ है.”मस-तफ़-इ-लुन” वज़्न पर कुछ शब्द- दरयादिली (दर-2, या-2, दि-1, ली-2){दरियादिली}, दौलतकदा(दौ-2,लत-2, क-1,दा-2), हैरतज़दा,

मु-त-फ़ा-इ-लुन(1-1-2-1-2): इस रुक्न का नाम कामिल है.”मु-त-फ़ा-इ-लुन” वज़्न पर कुछ शब्द- दरेमैकदा (द-1,रे-1,मै-2, क-1, दा).

मु-फ़ा-इ-ल-तुन (1-2-1-1-2): इस रुक्न का नाम वाफ़िर है. “मु-फ़ा-इ-ल-तुन” वज़्न पर कुछ शब्द- सलाख़े-क़फ़स (स-1, ला-2, ख़े-1, क़-1, फ़स-2)

मफ़-ऊ-ला-त(2-2-2-1): इस रुक्न का नाम हज़ज अक्सी है.उर्दू में इसकी कोई मिसाल नहीं है.

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आज का शे’र

आदमी आदमी से मिलता है,
दिल मगर कम किसी से मिलता है (जिगर मुरादाबादी)

वज़्न के साथ..

आ(2)द(1)मी(2) आ(2)द(1)मी(2) से(1) मिल(2)ता(2) है(2),
दिल(2) म(1)गर(2) कम(2) कि(1)सी(2) से(1) मिल(2)ता(2) है(2)

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One thought on “वज़्न करने का तरीक़ा (7)”
  1. शा’इरी के इस इल्म को हम तक पहुँचाने का बहुत शुक्रिया अरग़वान भैया !

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