Sher Ka Wazn इसके पहले हमने आपको वज़्न करने के बारे में भी बताया है और साथ ही साथ हमने आपको शाइरी के आठ रुक्न भी बताये हैं. हम आज आपको बताने जा रहे हैं उर्दू शाइरी में इस्तेमाल में लायी जाने वाली बह्र के बारे में. ग़ज़ल के बारे में ये बात जाननी बहुत ज़रूरी है कि कोई भी ग़ज़ल किसी ना किसी बह्र में ज़रूर होती है. कोई ग़ज़ल किस बह्र में है ये ग़ज़ल के किसी एक मिसरे से भी पता लगाया जा सकता है. यूँ तो उर्दू शाइरी में 35-36 बहरें इस्तेमाल में लायी जाती हैं लेकिन बुनियादी तौर पर देखा जाए तो इनकी संख्या 19 है. बह्र देखा जाए तो सालिम शक्ल में भी हो सकती है और मुज़ाहिफ़ शक्ल में भी.
सालिम शक्ल से मुराद ये है कि इसमें अरकान का इस्तेमाल शुद्ध रूप में होता है और मुज़ाहिफ़ की बात करें तो इसमें अरकान की शक्ल बिगड़ी होती है. सालिम शक्ल में आठ में से कोई एक अरकान इस्तेमाल होता है जबकि इन्हीं आठ अरकान में से जब किसी अरकान को थोड़ा सा बदल कर इस्तेमाल करते हैं तो मुज़ाहिफ़ शक्ल हो जाती है. इसके बारे में आगे गुफ़्तगू होती रहेगी और बातें साफ़ होती जाएँगी. बह्र को समझने के लिए कुछ और शब्दों के पारिभाषिक अर्थ को समझ लेते हैं.
मुरब’अ: सालिम बह्र में जब कोई रुक्न एक मिसरे में दो बार और शेर में 4 बार आता है तो उसे मुरब’अ कहते हैं.
मुसद्दस: सालिम बह्र में जब कोई रुक्न एक मिसरे में 3 बार और शेर में 6 बार आता है तो उसे मुसद्दस कहते हैं.
मुसम्मन: सालिम बह्र में जब कोई रुक्न एक मिसरे में 4 बार और शेर में 8 बार आता है तो उसे मुसम्मन कहते हैं.
मुइज़ाफ़ी मुसम्मन: सालिम बह्र में जब कोई रुक्न एक मिसरे में 8 बार और शेर में 16 बार आता है तो उसे मुइज़ाफ़ी मुसम्मन कहते हैं.
बह्र ए मुतक़ारिब सालिम (रुक्न- मुतक़ारिब, फ़’ऊ’लुन = 122)
आज हम आपको उर्दू शाइरी में इस्तेमाल होने वाली बहुत मक़बूल बह्र के बारे में बताएंगे. ये बह्र है “बह्र ए मुतक़ारिब”. इसका रुक्न “फ़-ऊ-लुन” (1-2-2) है जिसके बारे में हम पहले भी चर्चा कर चुके हैं. इस बात को समझना बहुत ज़रूरी है कि जो भी ग़ज़ल इस बह्र में होगी उसमें फ़-ऊ-लुन ही इस्तेमाल में आएगा, अब वो चाहे एक मिसरे में दो बार आये, तीन बार आये, चार बार आये, 8 बार आये. Sher Ka Wazn
मुरब’अ: फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन (122 122) [इसमें फ़-ऊ-लुन रुक्न दो बार आया है, जैसा कि ऊपर मुरब’अ की परिभाषा में बताया गया है]
शे’र:
नहीं कुछ तो क्या ग़म,
अगर साथ हैं हम
इस शेर को तक़ती’अ करके देखिये-
न-1, हीं-2, कुछ-2, तो-1, क्या-2, ग़म-2
अ-1, गर-2, सा-2, थ-1, हैं-2, हम-2
दोनों मिसरों को ध्यान से देखिये, मिसरा ए ऊला (पहले मिसरे) में 122 122 का इस्तेमाल हुआ है और यही दूसरे मिसरे में हुआ है. एक भी गिनती इधर से उधर होने पर शेर बे-वज़्नी कहा जाएगा.
इसी ज़मीन में एक और शेर देखिये-
ज़रा सा तो ठहरो,
हुई बात है कम
…
मुसद्दस: फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन (122 122 122) [इसमें फ़-ऊ-लुन रुक्न में तीन बार आया है, जैसा कि ऊपर मुसद्दस की परिभाषा में बताया गया है]
शेर:
चराग़ों में हिम्मत बहुत थी,
बहुत तेज़ तूफ़ाँ उठा था
इस शेर को तक़ती’अ करके देखिये-
च-1, रा-2, ग़ों-2, में-1, हिम्-2 मत-2, ब-1, हुत-2,थी-2
ब-1, हुत-2, ते-2, ज़-1, तू-2, फ़ाँ-2, उ-1, ठा-2,था-2
…
मसम्मन: फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन (122 122 122 122)[इसमें फ़-ऊ-लुन रुक्न चार बार आया है, जैसा कि ऊपर मसम्मन की परिभाषा में बताया गया है]
शेर:
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं. (इक़बाल)
इस शेर को तक़ती’अ करके देखिये-
सि-1, ता-2, रों-2, से-1, आ-2, गे-2, ज-1, हाँ-2, औ-2,र-1, भी-2, हैं-2
अ-1, भी-2, इश्-2, क़-1, के-2, इम्-2, ति-1, हाँ-2 औ-2 र-1, भी-2, हैं-2
बह्र ए मुतक़ारिब मसम्मन सालिम बहुत मक़बूल बह्र है. इसी ज़मीन पर कही गयी कुछ और ग़ज़लों के मतला हम दे रहे हैं. आप ख़ुद चेक करियेगा.
“जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं,
ख़याबाँ ख़याबाँ इरम देखते हैं” (ग़ालिब)
“कोई पास आया सवेरे सवेरे,
मुझे आज़माया सवेरे सवेरे” (सईद राही)
इस बह्र में कई गीत भी लिखे गए हैं जैसे- अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो, हमें साथ ले लो जहाँ जा रहे हो
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मुइज़ाफ़ी मुसम्मन: फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन फ़-ऊ-लुन (122 122 122 122 122 122 122 122) [इसमें फ़-ऊ-लुन रुक्न आठ बार आया है, जैसा कि ऊपर मुइज़ाफ़ी मुसम्मन की परिभाषा में बताया गया है]
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