Saleem Sarmad Shayari

तू मयस्सर था तो दिल में थे हज़ारों अरमाँ
तू नहीं है तो हर इक सम्त अजब रंग-ए-मलाल

दिल तुझे पा के भी तन्हा होता
दूर तक हिज्र का साया होता

आरज़ू फिर नई करते ता’बीर
फिर नया कोई तमाशा होता

आवाज़ की मल्लिका: एम एस सुब्बुलक्ष्मी का प्रभावशाली जीवन
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Ahmad Hamdani Best Sher

वो मेरी राह में काँटे बिछाए मैं लेकिन
उसी को प्यार करूँ उस पे ए’तिबार करूँ

क्यूँ हमारे साँस भी होते हैं लोगों पर गिराँ
हम भी तो इक उम्र ले कर इस जहाँ में आए थे

अजीब वहशतें हिस्से में अपने आई हैं
कि तेरे घर भी पहुँच कर सकूँ न पाएँ हम

किस को बताएँ अब कि न चल कर तमाम उम्र
हम ने ख़ुद अपने आप में कितना सफ़र किया

न जाने आज ये किस का ख़याल आया है
ख़ुशी का रंग लिए हर मलाल आया है

अब ये होगा शायद अपनी आग में ख़ुद जल जाएँगे
तुम से दूर बहुत रह कर भी क्या पाया क्या पाएँगे

दुख भी सच्चे सुख भी सच्चे फिर भी तेरी चाहत में
हमने कितने धोके खाए कितने धोके खाएँगे

हम से आबला-पा जब तन्हा घबराएँगे सहरा में
रास्ते सब तेरे ही घर की जानिब को मुड़ जाएँगे

Ahmad Hamdani Best Sher

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