Ghazal ka Matla मत’ला: ग़ज़ल या क़सीदे का वो शे’र जिसके दोनों मिसरों में रदीफ़ और क़ाफ़िये का इस्तेमाल होता है उसे मत’ला कहते हैं. अक्सर को ग़ज़ल का पहला शे’र मत’ला होता है लेकिन एक ग़ज़ल में एक से अधिक मत’ले भी हो सकते हैं, इसको लेकर कोई पाबंदी नहीं है. एक बात और बता देना ज़रूरी है कि किसी ग़ज़ल में मत’ला ना होना कोई दोष नहीं है. हालाँकि क़सीदों के लिहाज़ से कहा जाता है कि बग़ैर मत’ला क़सीदे वो मज़ा नहीं देते.
जलील मानिकपुरी की ग़ज़ल देखिए. इसमें पहला शेर मत’ला है.
मार डाला मुस्कुरा कर नाज़ से
हाँ मिरी जाँ फिर इसी अंदाज़ से
किसने कह दी उनसे मेरी दास्ताँ
चौंक चौंक उठते हैं ख़्वाब-ए-नाज़ से
फिर वही वो थे वहाँ कुछ भी न था
जिस तरफ़ देखा निगाह-ए-नाज़ से
दर्द-ए-दिल पहले तो वो सुनते न थे
अब ये कहते हैं ज़रा आवाज़ से
मिट गए शिकवे जब उस ने ऐ ‘जलील’
डाल दें बाँहें गले में नाज़ से
जलील मानिकपुरी Ghazal ka Matla
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निदा फ़ाज़ली की ये ग़ज़ल देखें. इसमें भी पहला शेर मतला है.
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता
तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो
जहाँ उमीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता
कहाँ चराग़ जलाएँ कहाँ गुलाब रखें
छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता Nida Fazli Ki Shayari
ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं
ज़बाँ मिली है मगर हम-ज़बाँ नहीं मिलता
चराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है
ख़ुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता
~ निदा फ़ाज़ली
शेर क्या है?
ग़ज़ल क्या है?
शायरी सीखें: क़ाफ़िया क्या है?
रदीफ़ क्या है?
शायरी क्या है?
नज़्म क्या है?
शायरी सीखें: क्या होती है ज़मीन, रदीफ़, क़ाफ़िया….
क्या होता है ‘फ़र्द’ ?
ग़ज़ल में मक़ता क्या होता है?
न’अत क्या होती है?
शायरी सीखें ~ क़त्आ, रूबाई, हम्द….