शे’र: दो मिसरों की ऐसी कविता जिसके दोनों मिसरे एक बह्र और एक ही ज़मीन पर हों, शे’र कहलाती है. शे’र अगर मत’ला है तो दोनों मिसरों में रदीफ़ और क़ाफ़िए की पाबंदी होगी अन्यथा सिर्फ़ मिसरा-ए-सानी (दूसरे मिसरे) में रदीफ़, क़ाफ़िए की पाबंदी होगी.
मिसरा: किसी भी पंक्ति (लाइन) को मिसरा कहते हैं.
मिसरा-ए-ऊला: शे’र के पहले मिसरे को मिसरा ए ऊला (ऊला मिसरा) कहते हैं.
मिसरा-ए-सानी: शे’र के दूसरे या’नी अंतिम मिसरे को मिसरा-ए-सानी कहते हैं.
मोमिन का ये शेर देखें..
तुम मेरे पास होते हो गोया,
जब कोई दूसरा नहीं होता (मोमिन)
[इस शेर में “तुम मेरे पास होते हो गोया” मिसरा ए ऊला है जबकि “जब कोई दूसरा नहीं होता” मिसरा ए सानी है]
*रदीफ़, क़ाफ़िया क्या होता है? इसकी जानकारी आपको अगली पोस्ट में मिलेगी.