तेरे लिए सब छोड़ के तेरा न रहा मैं – अब्बास ताबिश

तेरे लिए सब छोड़ के तेरा न रहा मैं दुनिया भी गई इश्क़ में तुझ से भी गया मैं इक सोच में गुम हूँ तिरी दीवार से लग कर मंज़िल पे पहुँच कर भी ठिकाने न लगा मैं वर्ना कोई कब गालियाँ देता है किसी को ये उस का करम है कि तुझे याद रहा … Read more

फ़ाएदा क्या है हमें और ख़सारा क्या है – अजमल सिराज

फ़ाएदा क्या है हमें और ख़सारा क्या है जो भी है आप का सब कुछ है हमारा क्या है हम ने कुछ ऐसी बना रक्खी है हालत अपनी पूछता कोई नहीं हाल तुम्हारा क्या है कुछ नहीं देखते कुछ भी हो तिरे दीवाने देखते हैं तिरी जानिब से इशारा क्या है दूर से जो नज़र … Read more

कहाँ हो तुम चले आओ मुहब्बत का तक़ाज़ा है – बहज़ाद लखनवी

कहाँ हो तुम चले आओ मुहब्बत का तक़ाज़ा है ग़म-ए-दुनिया से घबरा कर तुम्हें दिल ने पुकारा है तुम्हारी बे-रुख़ी इक दिन हमारी जान ले लेगी क़सम तुमको ज़रा सोचो कि दस्तूर-ए-वफ़ा किया है न जाने किस लिए दुनिया की नज़रें फिर गईं हम से तुम्हें देखा तुम्हें चाहा क़ुसूर इस के सिवा किया है … Read more

कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ – अहमद फ़राज़

Ranjish Hi Sahi

सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते वर्ना इतने तो मरासिम थे कि आते जाते शिकवा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब से तो कहीं बेहतर था अपने हिस्से की कोई शम्अ’ जलाते जाते कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते जश्न-ए-मक़्तल ही न बरपा हुआ वर्ना हम भी पा-ब-जौलाँ ही … Read more

जुदाई की पहली रात – परवीन शाकिर

Parveen Shakir Best Sher

आँख बोझल है मगर नींद नहीं आती है मेरी गर्दन में हमाइल तिरी बाँहें जो नहीं किसी करवट भी मुझे चैन नहीं पड़ता है सर्द पड़ती हुई रात माँगने आई है फिर मुझ से तिरे नर्म बदन की गर्मी और दरीचों से झिझकती हुई आहिस्ता हवा खोजती है मिरे ग़म-ख़ाने में तेरी साँसों की गुलाबी … Read more

बादल को घिरते देखा – नागार्जुन

अमल धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है। छोटे-छोटे मोती जैसे उसके शीतल तुहिन कणों को मानसरोवर के उन स्वर्णिम कमलों पर गिरते देखा है, बादल को घिरते देखा है। तुंग हिमालय के कंधों पर छोटी बड़ी कई झीलें हैं, उनके श्यामल नील सलिल में समतल देशों से आ-आकर पावस की ऊमस … Read more

कफ़न- प्रेमचंद

झोंपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए थे और अंदर बेटे की जवान बीवी बुधिया प्रसव-वेदना में पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी, कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़ों की रात थी, प्रकृति सन्नाटे … Read more

क्या कहेगा कभी मिलने भी अगर आएगा वो

क्या कहेगा कभी मिलने भी अगर आएगा वो अब वफ़ादारी की क़स्में तो नहीं खाएगा वो हम समझते थे कि हम उस को भुला सकते हैं वो समझता था हमें भूल नहीं पाएगा वो कितना सोचा था पर इतना तो नहीं सोचा था याद बन जाएगा वो ख़्वाब नज़र आएगा वो सब के होते हुए … Read more

अब वो मंजर, ना वो चेहरे ही नज़र आते हैं ~ अहमद फ़राज़

अब वो मंजर, ना वो चेहरे ही नज़र आते हैं मुझको मालूम ना था ख्वाब भी मर जाते हैं जाने किस हाल में हम हैं कि हमें देख के सब एक पल के लिये रुकते हैं गुज़र जाते हैं साकिया तूने तो मयख़ाने का ये हाल किया रिन्द अब मोहतसिबे-शहर के गुण गाते हैं जैसे … Read more

आईना ~ परवीन शाकिर

Parveen Shakir Best Sher

परवीन शाकिर की नज़्म – आईना लड़की सर को झुकाए बैठी कॉफ़ी के प्याले में चमचा हिला रही है लड़का हैरत और मुहब्बत की शिद्दत से पागल लम्बी पलकों के लर्ज़ीदा सायों को अपनी आँख से चूम रहा है दोनों मेरी नज़र बचा कर इक दूजे को देखते हैं हँस देते हैं मैं दोनों से … Read more