अरग़वान रब्बही के शेर…
Arghwan Rabbhi Shayari है इक तमीज़ कि बाहर निकल नहीं सकता, तुम्हारा हाथ पकड़ कर मैं चल नहीं सकता अरग़वान ____ बदल गया जो ज़माने की आज़माइश से, मिरे अज़ीज़ ! वो दुनिया बदल नहीं सकता अरग़वान ___ बदल के शाम भी साया निकल नहीं सकती, उधर जो लाश पड़ी है वो चल नहीं सकती … Read more