Category: ग़ज़ल

ताज़ा मुहब्बतों का नशा जिस्म-ओ-जाँ में है – परवीन शाकिर

ताज़ा मुहब्बतों का नशा जिस्म-ओ-जाँ में है फिर मौसम-ए-बहार मिरे गुल्सिताँ में है इक ख़्वाब है कि बार-ए-दिगर देखते हैं…