मई दिवस: सलाम मछलीशहरी की नज़्म….”सड़क बन रही है”

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मई दिवस पर साहित्य दुनिया की ओर से पाठकों के लिए पेश कर रहे हैं सलाम मछली शहरी की मशहूर नज़्म “सड़क बन रही है”. Salam Machhlishahri Ki Nazm मई के महीने का मानूस मंज़र ग़रीबों के साथी ये कंकर ये पत्थर वहाँ शहर से एक ही मील हट कर सड़क बन रही है ज़मीं … Read more

ग़ालिब के ख़तों के बारे में और उनका मुंशी हरगोपाल ‘तफ़्ता’ को लिखा ख़त

Ghalib ka khat .. मिर्ज़ा ग़ालिब परवीन शाकिर Urdu Shayari Shabd Ghalib Shayari Parveen Shakir Shayari Top Urdu Shayari Ghalib Ke Khat Ghalib Ke Baare Mein

Ghalib Ke Khat : मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) की शा’इरी के तो सभी दीवाने हैं लेकिन बात नस्र की करें तो उसमें भी ग़ालिब अव्वल ही आते हैं. उनके बारे में फ़िराक़ गोरखपुरी अपनी किताब ‘उर्दू भाषा और साहित्य’ में लिखते हैं,”ग़ालिब से पहले फ़ारसी के ढंग पर उर्दू के मुंशी लोग बनावटी और भारी … Read more

उर्दू शायरी और शब्द : ज़िम्’मदार, ज़ियादा, ज़ियादत…

Urdu Shayari Mein Shabdon ka Prayog Jaleel aur Zaleel Urdu ke words Urdu Bhasha Ka Itihas Urdu Shayari Ke Shabd

Urdu ke words :  ज़िम्’मदार (ज़िम्मेदार)– इसका अर्थ होता है ज़मानत, जवाबदेही, कार्यभार। ये लफ़्ज़ ज़िम्मा से बनता है, ज़िम्मा का अर्थ है उत्तरदायित्व। ज़िम्मेदार एक ऐसा लफ़्ज़ है जिसे अधिकतर लोग जिम्मेवार पढ़ने और लिखने लगे हैं, इतना ही नहीं एक साल सिविल सेवा की परीक्षा के प्रश्न पत्र में इसे जिम्मेवार लिख दिया … Read more

दो शा’इर, दो ग़ज़लें सीरीज़ (11): फै़ज़ अहमद फै़ज़ और असग़र गोंडवी…

Best Urdu Rubai Shaam Shayari Har Haqeeqat Majaz Ho Jaye Tagore ki Kahani Bhikharin Parveen Shakir Shayari

फै़ज़ अहमद फै़ज़ की ग़ज़ल-हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए Har Haqeeqat Majaz Ho Jaye हर हक़ीक़त मजाज़ हो जाए काफ़िरों की नमाज़ हो जाए मिन्नत-ए-चारा-साज़ कौन करे, दर्द जब जाँ-नवाज़ हो जाए इश्क़ दिल में रहे तो रुस्वा हो लब पे आए तो राज़ हो जाए लुत्फ़ का इंतिज़ार करता हूँ जौर ता हद्द-ए-नाज़ हो … Read more

उर्दू शायरी और शब्द : ख़ुलासा, ख़िलाफ़त, बिलकुल और भूक…

Urdu Shayari se jude lafz Urdu ke words Khulasa Habib Jalib Shayari Hindi Parveen Shakir Sardar Jafri Nazm Kya Hoti Hai

Urdu ke words Khulasa:  ख़ुलासा (خلاصہ): ख़ुलासा का जो अर्थ आजकल मीडिया में इस्तेमाल हो रहा है वो इसके सही अर्थ से बिलकुल जुदा है. ख़ुलासा का अर्थ होता है सारांश जबकि मीडिया में इसे इस तरह इस्तेमाल किया जाता है मानो इसका अर्थ राज़ खोलना हो. इस लफ़्ज़ का वज़़्न 122 होता है. (ख़ु-1, … Read more

उर्दू शायरी और शब्द : शब्बा खै़र नहीं शब-ब’खै़र,अजीज़ नहीं अज़ीज़, शम्मा नहीं शम’अ…

Ghalib ka khat .. मिर्ज़ा ग़ालिब परवीन शाकिर Urdu Shayari Shabd Ghalib Shayari Parveen Shakir Shayari Top Urdu Shayari Ghalib Ke Khat Ghalib Ke Baare Mein

Urdu Shayari Shabd अज़ीज़(عزیز): अज़ीज़ एक ऐसा लफ़्ज़ है जिसे अक्सर लोग अजीज़ बोलते हैं. कुछ लोगों का नाम भी अज़ीज़ है लेकिन उनको भी लोग अजीज़ ही कहते पाए जाते हैं, हालाँकि सही लफ़्ज़ अज़ीज़ है. अजीज़ भी लफ़्ज़ होता है लेकिन उसका अर्थ अलग होता है.अज़ीज़ का अर्थ प्यारा होता है लेकिन अजीज़ का … Read more

उर्दू शायरी और शब्द : तजुर्बा नहीं तज’रबा, जमा नहीं जम’अ, शुरू नहीं शुरू’अ…

Aanand Naaraayan Mullaah Urdu Poetry Words Hindi Ki Best Kahaniyan Jayshankar Prasad Ki Kahani Chooriwali

Urdu Poetry Words आज हम कुछ ऐसे ज़रूरी अलफ़ाज़ के बारे में आपसे बात करने जा रहे हैं जो आम बोलचाल में अक्सर ग़लत ही तरह से बोले जाते हैं. तज’रबा या तज’रिबा (تجربہ): तज’रबा का अर्थ है अनुभव. इस लफ़्ज़ को अक्सर करके लोग ‘तजुर्बा’ पढ़ते हैं जबकि ये सही नहीं है, सही लफ़्ज़ तजरबा … Read more

दो कहानीकार, दो कहानियाँ (2): अमृता प्रीतम और मंटो

Amrita Pritam Manto Kahani

Amrita Pritam Manto Kahani अमृता प्रीतम की कहानी- जंगली बूटी अगूरी, मेरे पड़ोसियों के पड़ोसियों के पड़ोसियों के घर, उनके बड़े ही पुराने नौकर की बिलकुल नई बीवी है। एक तो नई इस बात से कि वह अपने पति की दूसरी बीवी है, सो उसका पति ‘दुहाजू’ हुआ। जू का मतलब अगर ‘जून’ हो तो … Read more

उर्दू शायरी और शब्द : फ़िर नहीं फिर, गम नहीं ग़म, मिजाज़ नहीं मिज़ाज…

Momin ki shayari Urdu Shabd Gham Gam हिन्दी व्याकरण वाला वाली द वाले शब्द

Urdu Shabd Gham Gam कुछ ऐसे लफ़्ज़ हैं जो हमारी ज़िन्दगी का अहम् हिस्सा हैं और लगभग रोज़ हम इनका इस्तेमाल करते हैं.कुछ इसी तरह के पाँच अलफ़ाज़ लेकर हम आज उनके बोलने के तरीक़े पर बात करेंगे. ये पाँच अलफ़ाज़ हैं- फिर, ग़म, मिज़ाज, ग़ज़ब, और ग़लत. फिर (پھر) – लफ़्ज़ ‘फिर’ को अधिकतर आबादी फ़िर … Read more

दो शा’इर, दो ग़ज़लें(10): जाँ निसार अख़्तर और ज़ौक़…

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जाँ निसार अख़्तर की ग़ज़ल: अशआ’र मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं (Ashaar mere yoon to zamane ke liye hain)

अशआ’र मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं,
कुछ शेर फ़क़त उन को सुनाने के लिए हैं

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं

सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की
वर्ना ये फ़क़त आग बुझाने के लिए हैं

आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं

देखूँ तिरे हाथों को तो लगता है तिरे हाथ
मंदिर में फ़क़त दीप जलाने के लिए हैं

ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
[रदीफ़- के लिए हैं]
[क़ाफ़िए- ज़माने, सुनाने, लगाने, बुझाने, सजाने, जलाने, भुलाने]
Ashaar mere yoon to zamane ke liye hain
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