मीर मेंहदी के नाम मिर्ज़ा ग़ालिब का ख़त..

Ghalib ka khat .. मिर्ज़ा ग़ालिब परवीन शाकिर Urdu Shayari Shabd Ghalib Shayari Parveen Shakir Shayari Top Urdu Shayari Ghalib Ke Khat Ghalib Ke Baare Mein

Ghalib ka khat- मीर मेंहदी के नाम मिर्ज़ा ग़ालिब का ख़त जाने-ग़ालिब ! अब की ऐसा बीमार हो गया था कि मुझको ख़ुद अफ़सोस था. पांचवें दिन ग़िज़ा खायी. अब अच्छा हूँ. तंदरुस्त हूँ, ज़िलहिज्ज १२७६ हिजरी तक कुछ खटका नहीं है. मुहर्रम की पहली तारीख़ से अल्लाह मालिक है. मीर नसीर उद्दीन आये कई … Read more

दो शा’इर, दो ग़ज़लें(3): मुनीर नियाज़ी और गुलज़ार…

Munir Niazi Gulzar Ghazal ~ “साहित्य दुनिया” केटेगरी के अंतर्गत “दो शा’इर, दो ग़ज़लें” सिरीज़ में हम आज जिन दो शा’इरों की ग़ज़लें आपके सामने पेश कर रहे हैं वो हैं मुनीर नियाज़ी और सम्पूर्ण सिंह कालरा “गुलज़ार”. दोनों ही बहुत मो’अतबर नाम हैं. पढ़िए ग़ज़लें.. मुनीर नियाज़ी की ग़ज़ल: “बैठ जाता है वो जब … Read more

दो शा’इर, दो ग़ज़लें(2): मनचंदा बानी और मजाज़…

Manchanda Bani Majaz Shayari ~ आज हम जिन दो शा’इरों की ग़ज़लें आपके सामने पेश कर रहे हैं उनके नाम हैं राजिंदर मनचंदा ‘बानी’ और असरार उल हक़ ‘मजाज़’. राजिंदर मनचंदा ‘बानी’ की ग़ज़ल:  चली डगर पर कभी न चलने वाला मैं चली डगर पर कभी न चलने वाला मैं नए अनोखे मोड़ बदलने वाला मैं … Read more

दो शा’इर, दो ग़ज़लें(1): जिगर मुरादाबादी और साहिर लुधियानवी….

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आज से हमने “साहित्य दुनिया” पर एक नयी सीरीज़ शुरू करने की सोची है. हम अब लगातार अपने पाठकों के लिए मशहूर शा’इरों की ग़ज़लें भी साझा किया करेंगे. इस सिलसिले को शुरू करते हुए हम आज दो ग़ज़लें आपके सामने पेश कर रहे हैं, एक ग़ज़ल जिगर मुरादाबादी की है जबकि दूसरी ग़ज़ल साहिर … Read more

वज़ीर आग़ा की ग़ज़ल: “ऐसे गए कि फिर न कभी लौटना हुआ…”

Javed ya Zaved असग़र गोंडवी अल्लामा इक़बाल Mohabbat Shayari Nazm Mohabbat Shayari Nazm हिन्दी व्याकरण ए और ऐ Urdu Shayari Meter Zehra Nigah Shayari Best Urdu Shayari Abdul Hamid Adam Shayari wazeer aagha ghazal aise Usne Kaha Tha Hindi Ki Pahli Kahani Satyajeet Ray Ki Kahani Sahpathi Urdu Shayari Tree

wazeer aagha ghazal : बादल छटे तो रात का हर ज़ख़्म वा हुआ आँसू रुके तो आँख में महशर बपा हुआ ऐसे बढ़े कि मंज़िलें रस्ते में बिछ गईं ऐसे गए कि फिर न कभी लौटना हुआ ऐ जुस्तुजू कहाँ गए वो हौसले तिरे किस दश्त में ख़राब तिरा क़ाफ़िला हुआ पहुँचे पस-ए-ख़याल तो देखा … Read more

हंस के बोला करो बुलाया करो

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Abdul Hamid Adam Shayari हंस के बोला करो बुलाया करो, आपका घर है आया जाया करो हद से बढ़कर हसीन लगते हो, झूठी क़समें ज़रूर खाया करो हुक्म करना भी एक सख़ावत है हमको ख़िदमत कोई बताया करो बात करना भी बादशाहत है बात करना ना भूल जाया करो हम हसद से “अदम” नहीं कहते, … Read more

तुझसे अब और मुहब्बत नहीं की जा सकती

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Noshi Gilani Shayari तुझसे अब और मुहब्बत नहीं की जा सकती, ख़ुद को इतनी भी अज़ीयत नहीं दी जा सकती हब्स का शहर है और उसमें किसी भी सूरत, साँस लेने की सहूलत नहीं दी जा सकती रौशनी के लिए दरवाज़ा खुला रखना है, शब से अब कोई इजाज़त नहीं ली जा सकती इश्क़ ने … Read more

सिकंदर की दूसरी किताब रिलीज़- ‘बदन से पहली मुलाक़ात याद है तुमको…. हमारा इश्क़ है उस वाक़ये से पहले का’

Doosra Ishq Review

Doosra Ishq Review ~ मौजूदा दौर में अच्छी शा’इरी करने वालों की तादाद कम हो गयी है लेकिन अभी भी मंज़र-ए-आम पर कुछ ऐसे शा’इर मौजूद हैं जो अपनी शानदार शा’इरी से लोगों का मन-मोह रहे हैं. ऐसे ही एक शा’इर हैं इरशाद ख़ान ‘सिकंदर'(Irshad Khan Sikandar) , सिकंदर की किताब ‘दूसरा इश्क़’ मंज़र-ए-आम पर आ चुकी है. राजपाल प्रकाशन से प्रकाशित हुई ‘दूसरा इश्क़’ किताब का रस्म-ए-इजरा ‘विश्व पुस्तक मेला’ में हुआ. 10 जनवरी को विश्व पुस्तक मेले में किताब का रस्मे-इजरा गौहर रज़ा,कुलदीप सलिल और मीरा जौहरी जी के हाथों हुआ. इसके पहले सिकंदर की ‘आंसुओं का तर्जुमा’ भी मंज़र-ए-आम पर आ चुकी है. ये किताब अमेज़न पर भी उपलब्ध है.

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Birthday Special: इस दौर के सबसे मक़बूल शायरों में से एक राहत इन्दौरी; ‘हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा’

Rahat Indori Birthday Special इस दौर के सबसे मक़बूल शायरों में से एक राहत इन्दौरी साहब का आज जन्मदिन है. राहत साहब का जन्म 1 जनवरी, 1950 को मध्यप्रदेश के इंदौर में हुआ. राहत साहब ने देश-विदेश के कई शहरों में मुशा’इरे पढ़े हैं और इसके अलावा उन्होंने कई फ़िल्मों में गीत भी लिखे हैं. उर्दू लिटरेचर में पीएचडी करने वाले डॉ राहत इन्दौरी युवाओं के पसंदीदा शायर तो हैं ही, साथ ही उन्हें अदब के ख़ास जानकार भी ख़ूब पसंद करते हैं. उनके जन्मदिन के मौक़े पर हमने कुछ लोगों से बात की.

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मौजूदा दौर में ग़ालिब सिर्फ़ स्टेटस सिम्बल की तरह है: पराग अग्रवाल

Ghalib Ke Baare Mein Parag Agrawal Ghalib Aur Zauq ki Ghazalen Baazeecha E Atfal Ghalib Aaina Kyun Na Doon Aah Ko Chahiye Ik

Ghalib Ke Baare Mein Parag Agrawal

“हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और” ~ ग़ालिब

उर्दू शा’इरी में यूँ तो मिर्ज़ा ग़ालिब से बड़ा कोई नाम नहीं है लेकिन आजकल के दौर में देखें तो ग़ालिब को समझने वाले कम और उनका नाम बतौर फैशन इस्तेमाल करने वाले ज़्यादा हैं. आज ग़ालिब की 220वीं सालगिरह है, इस मौक़े पर हमने एनीबुक पब्लिकेशन के निदेशक और शा’इर पराग अग्रवाल से बात की. पराग अग्रवाल हमसे बात करते हुए कहते हैं कि आजकल के दौर में ग़ालिब को सिर्फ़ स्टेटस सिंबल की तरह से ही लिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि साहित्य में ग़ालिब एक स्तम्भ हैं लेकिन आजकल लोगों ने ग़ालिब को भुला दिया है.

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