Romantic Shayari
दिल मुहब्बत में मुब्तला हो जाए
जो अभी तक न हो सका हो जाए
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ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं उससे जीत गया हूँ कि मात हो गई है
तहज़ीब हाफ़ी
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जब उसकी तस्वीर बनाया करता था
कमरा रंगों से भर जाया करता था
तहज़ीब हाफ़ी
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मैं तेरे दुश्मन लश्कर का शहज़ादा
कैसे मुमकिन है ये शादी शहज़ादी
तहज़ीब हाफ़ी
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अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
उबैदुल्लाह अलीम
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वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
परवीन शाकिर
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दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं
कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
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नज़र मिलायी नज़र से कि दिल पे आयी चोट,
दिखायी तूने किधर और किधर लगायी चोट
शाद अज़ीमाबादी
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दिल अपना सीने में रह-रह के गुदगुदाने लगा,
किसी ख़याल से हमने अगर छुपायी चोट
शाद अज़ीमाबादी
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इश्क़ कहता है कि आलम से जुदा हो जाओ,
हुस्न कहता है जिधर जाओ नया आलम है
शाह अब्दुल अलीम ‘आसी’ ग़ाज़ीपुरी
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इतना तो जानते हैं कि आशिक़ फ़ना हुआ,
और इससे आगे बढ़के ख़ुदा जाने क्या हुआ
शाह अब्दुल अलीम ‘आसी’ ग़ाज़ीपुरी
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दिल ग़म से जो कहता है मुहब्बत का बुरा हो,
ऐसे में तेरी याद जो आ जाए तो क्या हो
~ हसरत मोहानी
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पास आओ तो कुछ दिल की तपिश और सिवा हो
हरचंद कि तुम दर्दे जुदाई की दवा हो
~ हसरत मोहानी
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इश्क़ इक ‘मीर’ भारी पत्थर है
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है
मीर तक़ी मीर
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क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़
जान का रोग है बला है इश्क़
मीर तक़ी मीर
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हम हुए तुम हुए कि ‘मीर’ हुए
उसकी ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए
मीर तक़ी मीर
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नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
मीर तक़ी मीर
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ज़ब्त अपना शेआर था, न रहा,
दिल पे कुछ इख़्तियार था, न रहा
मीर तक़ी मीर
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उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
मीर तक़ी मीर
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पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
मीर तक़ी मीर
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राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या
आगे आगे देखिए होता है क्या
मीर तक़ी मीर
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हज़ारों क़ुर्बतों पर यूँ मेरा महजूर हो जाना,
जहाँ से चाहना उनका वहीं से दूर हो जाना
~ जिगर मुरादाबादी
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मुहब्बत क्या है? तासीर ए मुहब्बत किसको कहते हैं,
तेरा मजबूर कर देना, मेरा मजबूर हो जाना
~ जिगर मुरादाबादी
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नज़र मिला के मेरे पास आके लूट लिया,
नज़र हटी थी कि फिर मुस्कुरा के लूट लिया
~ जिगर मुरादाबादी
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बड़े वो आए दिलो जाँ के लूटने वाले,
नज़र से छेड़ दिया, गुदगुदा के लूट लिया
~ जिगर मुरादाबादी
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इक लफ़्ज़े मुहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिले आशिक़ फैले तो ज़माना है
~ जिगर मुरादाबादी
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ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना तो समझ लेना,
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
~ जिगर मुरादाबादी
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मुझको आदत है रूठ जाने की
आप मुझको मना लिया कीजे
जौन एलिया (Jaun Elia)
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किस लिए देखती हो आईना
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो
जौन एलिया (Jaun Elia)
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बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना
तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है
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कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था
मज़ाज
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तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
मज़ाज
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हुस्न को शर्मसार करना ही
इश्क़ का इंतिक़ाम होता है
मज़ाज
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तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो
आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना
शकील बदायूनी (Shakeel budayuni)
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कुछ इस अदा से आपने पूछा मिरा मिज़ाज
कहना पड़ा कि शुक्र है परवरदिगार का
जलील मानिकपूरी (Jaleel Manikpuri)
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ये जो सर नीचे किए बैठे हैं
जान कितनों की लिए बैठे हैं
जलील मानिकपूरी (Jaleel Manikpuri)
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जान लेनी थी साफ़ कह देते
क्या ज़रूरत थी मुस्कुराने की
अज्ञात (Unknown)
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गुल हो महताब हो आईना हो ख़ुर्शीद हो मीर
अपना महबूब वही है जो अदा रखता हो
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नाज़ है गुल को नज़ाकत पे चमन में ऐ ‘ज़ौक़’
उसने देखे ही नहीं नाज़-ओ-नज़ाकत वाले
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ (Zauq Ibrahim Zauq)
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हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है,
दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है
_________ Romantic Shayari
उस हुस्न का शेवा है जब इश्क़ नज़र आए
पर्दे में चले जाना शरमाए हुए रहना
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घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियाँ
छतों पर खिले फूल बरसात के
मुनीर नियाज़ी (Munir Niazi)
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उग रहा है दर-ओ-दीवार से सब्ज़ा ‘ग़ालिब’,
हम बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई है
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यार से छेड़ चली जाए ‘असद’
गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही
मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib)
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गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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झुकी झुकी सी नज़र बेक़रार है कि नहीं
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं
कैफ़ी आज़मी
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तू अपने दिल की जवाँ धड़कनों को गिन के बता
मिरी तरह तिरा दिल बेक़रार है कि नहीं
कैफ़ी आज़मी
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मिलना तिरा अगर नहीं आसाँ तो सहल है,
दुश्वार तो यही है कि दुश्वार भी नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib)
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फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं,
फिर वही ज़िंदगी हमारी है
मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib)
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हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने,
ग़ैर को तुझसे मुहब्बत ही सही
मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib)
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इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा,
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib)
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