फिर उसी रहगुज़ार पर शायद
Phir usi rah guzaar par shaayad फिर उसी रहगुज़ार पर शायद हम कभी मिल सकें मगर शायद जिन के हम मुंतज़िर रहे उन को मिल गए और हम-सफ़र शायद जान-पहचान से भी क्या होगा फिर भी ऐ दोस्त ग़ौर कर शायद अज्नबिय्यत की धुँद छट जाए चमक उठ्ठे तिरी नज़र शायद ज़िंदगी भर लहू रुलाएगी … Read more